Ambikapur News: एमपी से पहुंची घड़ों की खेप, गर्मी बढ़ने के साथ ही बढ़ी 'देसी फ्रिज' की डिमांड
Chhattisgarh: मध्य प्रदेश के चंदिया क्षेत्र से एक दर्जन से अधिक परिवार मिट्टी के घड़े लेकर सरगुजा जिले के अम्बिकापुर शहर में पहुंचा है. इन घड़ों की बिक्री की जा रही है.
Ambikapur Latest News: गर्मी के सीजन में देशी फ्रिज मिट्टी के घड़े के कारोबार में चंदिया से बड़े पैमाने पर आवक होने के साथ ही सरगुजा के कुंभकारों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के चंदिया क्षेत्र से एक दर्जन से अधिक परिवार मिट्टी के घड़े लेकर सरगुजा जिले के अम्बिकापुर शहर में पहुंचा है और एमजी रोड सहित विभिन्न मार्गों में इन घड़ों की बिक्री की जा रही है. चंदिया से पहुंचे परिवारों के बीच ही सरगुजा के कुंभकार भी अपने घड़ों को बेचने ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं.
अम्बिकापुर शहर के मिशन चौक निवासी राजेन्द्र प्रजापति ने बताया कि पिछले साल घड़ा सहित अन्य मिट्टी के पात्र बनाने के लिए मिट्टी एक हजार रूपए में एक ट्रैक्टर मिल जाता था, जबकि इस वर्ष एक ट्रैक्टर मिट्टी की कीमत बढ़कर 1700 रूपए हो गई है. एक घड़ा निर्माण की मजदूरी और पकाने के लिए ईंधन का खर्च बढ़कर लगभग 60 रूपए का खर्च आता है. इसके अलावा बाजार तक ले जाने के लिए भी परिवहन खर्च भी देना पड़ता है.
जिससे मुनाफा के साथ एक घड़े की कीमत सौ से डेढ़ सौ रूपए तक होती है, मगर चंदिया से आए परिवारों के द्वारा 70 से 80 रूपए तक में एक-एक घड़े की बिक्री की जा रही है. जिसके चलते सरगुजा के कुम्हारों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
सौ रूपए कीमत बताने पर ग्राहक चंदिया से आए परिवारों के पास चले जाते हैं, जहां से उन्हें कम कीमत में घड़ा मिल जाता है. यदि सरगुजा के कुंभकार भी 70-80 रूपए में घड़ा बेचेंगे तो केवल लागत निकलेगी मुनाफा नहीं. ऐसी स्थिति में स्थानीय कुंभकारों को कड़ा प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.
एक दिन में दस घड़ा बना लेते हैं
शहर के मिशन चौक निवासी राजेन्द्र प्रजापति ने बताया कि अभी भी अधिकांश कुंभकार परंपरागत पुराने हाथ चक्की पर निर्भर हैं. वे एक दिन में लगभग दस से ग्यारह घड़े का निर्माण कर लेते हैं. दो-तीन दिन सूखने और पकने के बाद यह बिक्री के लिए तैयार हो जाता है. उन्होंने बताया कि आधूनिक संसाधनों की कमी होने के कारण मिट्टी के पात्र निर्माण की क्षमता उनकी काफी कम है. यदि शासन स्तर पर उन्हें संसाधन उपलब्ध कराया जाए तो यह परंपरागत कारोबार उनके लिए फायदेमंद बन सकता है.
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