देश में पिछले कुछ सालों से एक दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रॉफी’ सुर्खियों में है. छोटे बच्चे इस गंभीर बीमारी के चपेट में आ जाते हैं. इसके इलाज के लिए 16 करोड़ रुपये का इंजेक्शन लगाया जाता है. इस बीमारी के चपेट में छत्तीसगढ़ के कोरबा में रहले वाली सृष्टि आ गई है. सृष्टि के लाचार पिता सतीश कुमार रवि उसके इलाज के लिए एक-एक पाई जमा कर रहे हैं. एसईसीएल ने 2 साल की मासूम बच्ची के इलाज के लिए 16 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं. 


कोयला खदान में काम करते हैं सृष्टि के पिता


दरअसल कोरबा जिले के दीपका कोयला खदान में काम करने वाले सतीश कुमार की दो साली बेटी सृष्टि जन्म के 6 महीने बाद ही काफी बीमार रहने लगी. उसके परिजन उसे दिसंबर 2020 में इलाज के लिए सीएमसी वेल्लोर ले गए. वहां जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि सृष्टि को 'स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रॉफी' (एसएमए) है. इसके इलाज के लिए उसे 'जोलजेंस्मा' इंजेक्शन लगाने की जरूरत होगी, जो भारत में नहीं मिलता है. इसके बाद सृष्टि को एसईसीएल के पैनल में शामिल बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में भर्ती किया गया. वहां काफी समय इलाज चलने के बाद सतीश ने सृष्टि का इलाज दिल्ली एम्स में कराया. फिलहाल बच्ची का इलाज घर पर ही चल रहा है. उसे पोर्टेबल वेंटिलेटर पर रखा गया है.


जब इसकी जानकारी कोयला कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफिल्ड लिमिटेड (एसईसीएल) को हुई तो उसने सृष्टि के इलाज के 16 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की है. 


क्या है स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रॉफी’ (एसएमए) बीमारी?


'स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रॉफी' (एसएमए) दरअसल एक दुर्लभ बीमारी है. अमूमन छोटे बच्चों में होने वाली इस बीमारी में स्पाइनल कॉर्ड और ब्रेन स्टेम में नर्व सेल की कमी से मांसपेशियां सही तरीके से काम नहीं कर पातीं हैं. और धीरे-धीरे यह बीमारी प्राणघातक होती चली जाती है. इसका इलाज बेहद ही महंगा है. इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन 'जोलजेंस्मा' की कीमत 16 करोड़ रुपये है. एसईसीएल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ''सतीश जैसे कर्मी को अपनी बच्ची के इलाज के लिए इतनी ऊंची कीमत पर इंजेक्शन खरीद पाना संभव नहीं था. ऐसे में कंपनी ने न सिर्फ अपने परिवार की बेटी की जान बचाने के लिए यह बड़ी पहल की है, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उपक्रमों और दूसरे संस्थानों के लिए भी एक मिसाल पेश की है, जो इस धारणा पर काम करते हैं कि कर्मी और उनका परिवार उनकी सबसे बड़ी पूंजी हैं. और उनकी जिंदगी बचाना संस्थान का प्राथमिक काम है.''


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