रायपुर में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में 10 हजार से ज्यादा नेताओं के जुटने की संभावना, पार्टी के लिए क्यों अहम है यह सम्मेलन?
कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि राष्ट्रीय सम्मेलन का होना छत्तीसगढ़ के लिए सम्मान की बात है.
कांग्रेस देश में सबसे ज्यादा मजबूत स्थिति में छत्तीसगढ़ में है और यह राज्य वर्तमान दौर में कांग्रेस के लिए मिसाल भी है. यही कारण है कि कांग्रेस का तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन यहां होने जा रहा है. भारत जोड़ो यात्रा के बाद के बड़े आयोजन के जरिए कांग्रेस यहीं से अपनी एकजुटता का नारा भी बुलंद करेगी. कांग्रेस का राष्ट्रीय सम्मेलन 24 से 26 फरवरी तक राजधानी रायपुर में हो रहा है, संभावना इस बात की जताई जा रही है कि इस आयोजन में तमाम बड़े नेताओं के साथ 10 हजार से ज्यादा नेताओं का यहां जमावड़ा रहने वाला है.
यह अधिवेशन पार्टी के लिए काफी अहम है
कांग्रेस के लिए यह अधिवेशन काफी अहम है क्योंकि छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के साथ कुल पांच राज्यों में इस साल विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं. वहीं अगले साल 2024 में लोकसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं. कांग्रेस की कोशिश है कि अगले चुनाव से पहले केंद्र सरकार को घेरने की पुख्ता रणनीति बनाई जाए. इस लिहाज से यह अधिवेशन पार्टी के लिए काफी अहम है.
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा छत्तीसगढ़ से तो नहीं गुजरी, मगर राज्य के नेताओं की हिस्सेदारी रही है. कांग्रेस यहां एकजुट नजर आती है, लेकिन गाहे-बगाहे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी सरकार के मंत्री टी.एस. सिंहदेव के बीच अनबन भी सामने आती रहती है. कई मर्तबा दोनों के बयान ऐसे आए हैं जिन्होंने पार्टी के भीतर आपसी सामंजस्य गड़बड़ होने की आशंकाओं को भी जन्म दिया है.
कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि राष्ट्रीय सम्मेलन का होना छत्तीसगढ़ के लिए सम्मान की बात है क्योंकि अविभाजित मध्यप्रदेश में आजादी से पहले जबलपुर के करीब राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था.
शुक्ला का दावा है कि राष्ट्रीय सम्मेलन से कांग्रेस को मजबूती मिलेगी, साथ ही छत्तीसगढ़ और उसके आसपास के सात राज्यों में भी कांग्रेस को लाभ होगा.
राहुल गांधी की भारत जोड़़ो यात्रा में मुख्यमंत्री बघेल और सिंहदेव काफी सक्रिय रहे, इस दौरान ऐसा कहीं भी नजर नहीं आया जिससे देानों नेताओं के बीच बढ़ती दूरी का संदेश मिला हो. यात्रा के दौरान जरुर सिंहदेव के कुछ बयान ऐसे आए, जिन्होंने सियासी हलचल पैदा कर दी. इसके चलते कयास भी लगाए जाने लगे.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य के दो प्रमुख नेताओं के बीच बढ़ती दूरियां कभी कभी अन्य नेताओं के लिए मुसीबत का कारण भी बन जाती है, मगर अभी तक ऐसा कोई भी मामला सामने नहीं आया है, जिससे यह जाहिर हो कि राज्य में सरकार मुसीबत में पड़ने वाली है. हां, इतना जरुर है कि सियासी गलियारों में बघेल और सिंहदेव के रिश्ते बेहतर न होने की बात आम हो गई है.
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