Dantewada News: नक्सल पीड़ित रामनाथ को मिला खुद का मकान, CM बघेल ने सौंपी 'उम्मीदों की चाबी'
मोहन मंडावी की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी. इसके बाद उनका परिवार बिखर गया. छोटे भाई की भी हत्या के डर से मां ने उसे 6 साल की उम्र में आश्रम भेज दिया था.
नक्सलवाद का दंश झेल रहे छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) में ऐसी कई कहानियां हैं जो आपको भावुक कर देंगी. नक्सलियों से लोहा लेने के लिए हथियार उठाए गांव के ही नौजवानों को जिन्हें राज्य सरकार ने SPO (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) बनाया लेकिन नक्सलियों ने कई SPO को मौत के घाट उतार दिया. उनमें से एक है मोहन मंडावी जिसकी नक्सलियों ने बेहरमी से हत्या कर दी थी. इसके बाद उनका परिवार बिखर गया और छोटे भाई की भी हत्या के डर से मां ने उसे 6 साल की उम्र में आश्रम भेज दिया, जिसके बाद मोहन मंडावी की मां और उसका छोटा भाई पिछले 17 सालों से नक्सलियों के डर की वजह से साथ नहीं रह सके.
सीएम ने घर की चाबी सौंपी
अब आखिरकार नक्सल पीड़ित परिवारों के लिए जिले के कारली में बने पुनर्वास हब में 17 साल बाद मां और बेटा एक साथ अब इस नये घर मे रहेंगे. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दंतेवाड़ा में भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के दौरान इस आवासीय परिसर में एक घर की चाबी शहीद मोहन मंडावी के भाई रामनाथ मंडावी को सौंपी दी और कहा अब मां के साथ यहीं खुशी-खुशी रहना.
सीएम को पूरी दास्तां बताई
बस्तर में नक्सली दहशत ने कई परिवारों को बिखेर कर रख दिया और इनमें से एक कहानी है नक्सल पीड़ित युवक रामनाथ मंडावी की. रामनाथ ने मुख्यमंत्री को अपनी पूरी दास्तां बताई. रामनाथ ने बताया कि साल 2005 में 6 साल की उम्र में नक्सलियों ने उनके पूरे घर को तबाह कर दिया था. लूट का ऐसा तांडव मचाया कि घर से गाय, बकरी, कपड़े, बर्तन, सभी लूटकर नक्सली ले गए. कुछ महीने बाद 26 फरवरी 2006 में महाशिवरात्रि के दिन उनके बड़े भाई मोहन मंडावी जो SPO थे, और तुलार गुफा मंदिर से दर्शन कर लौट रहे थे, इस बीच नक्सलियों ने उन्हें घेरा और मेले में गोली मारकर हत्या कर दी.
लिपटकर खूब रोते थे-रामनाथ
रामनाथ ने बताया कि इसके बाद डर की वजह से मां ने मुझे पढ़ाई के लिए 2007 में बालक आश्रम बारसूर, फिर भैरमगढ़ पोटाकेबिन इसके बाद मारडूम भेज दिया. रामनाथ ने कहा कि मैं जिंदा रहूं इसलिए क्योंकि मां मुझे घर नहीं आने देती थी. साल भर में एक या दो बार ही दूसरे गांव में लगे साप्ताहिक बाजार में मां से मुलाकात हो पाती थी और लिपटकर खूब रोते थे.
17 साल से अलग हैं मां-बेटा
रामनाथ ने मुख्यमंत्री को बताया कि मैं और मां बीते 17 साल तक ऐसे ही साप्ताहिक बाजार में मिले. दरअसल बड़े बेटे की हत्या के बाद मां ने नक्सलियों के डर से ही उसे पढ़ने के लिए आश्रम भेज दिया था. रामनाथ ने कहा कि घर क्या होता है ये मुझे पता ही नहीं है. उसने कहा कि मैंने 21 साल की उम्र तक सिर्फ डर देखा है. डर की वजह से 6 साल की उम्र से मेरी मां ने घर आने ही नहीं दिया.
रामनाथ को चाबी सौंपी
दंतेवाड़ा के कलेक्टर दीपक सोनी ने बताया कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर नक्सल पीड़ित और नक्सल घटनाओं में शहीद परिवारों के लिए दंतेवाड़ा के कारली में सर्व सुविधायुक्त 36 आवास बनाये गए हैं, जिनमें से 30 आवास नक्सल पीड़ित परिवारों को आवंटित कर दिए गए हैं और उनमें से ही एक है रामनाथ मंडावी का परिवार जिनकी घर की चाबी खुद मुख्यमंत्री ने रामनाथ मंडावी को सौंपी. अब रामनाथ मंडावी और उनकी मां एक साथ इस नये घर में हंसी खुशी से रह सकेंगे.