Chhattisgarh NIA Court Acquit Soni Sori: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा (Dantewada) जिले में साल 2011 में एस्सार कंपनी और नक्सलियों के बीच पैसे की लेन-देन को लेकर दंतेवाड़ा पुलिस की कार्रवाई पर 11 साल बाद NIA की विशेष अदालत का फैसला आ गया है. इस मामले में पुलिस ने समाजसेवी सोनी सोढ़ी (Soni Sori) समेत उनके भतीजे लिंगाराम कोड़ोंपी, ठेकेदार बी.के लाला और एस्सार कंपनी के महाप्रबंधक रहे डीवीसीएस वर्मा को आरोपी बनाया था, लेकिन इनके खिलाफ कोई ठोस सबूत पुलिस पेश नहीं कर सकी, जिसके बाद NIA कोर्ट ने सभी को दोषमुक्त कर दिया है. विशेष न्यायाधीश विनोद कुमार देवांगन, NIA एक्ट/अनुसूचित अपराध ने अपना फैसला सुनाते हुए पुलिस द्वारा जब्त बताई गई 15 लाख रूपए की राशि भी ठेकेदार बी.के लाला को लौटाने का भी आदेश दिया है.


क्या था पूरा मामला 


जानकारी के मुताबिक साल 2011 में 9 सितंबर को दंतेवाड़ा जिले के कुआकोंडा थाना प्रभारी उप निरीक्षक उमेश साहू ने मुखबिर से मिली सूचना पर एक कार्रवाई को अंजाम दिया था. दरअसल एस्सार कंपनी की ओर से नक्सलियों को लिंगाराम कोड़ोपी और सोनी सोढ़ी के माध्यम से पालनार ग्राम के साप्ताहिक बाजार के पास 15 लाख रुपए देने की जानकारी पर ठेकेदार बी.के लाला, लिंगाराम कोड़ोपी और सोनी सोढ़ी को 15 लाख रुपए निकाल कर देते समय पुलिस ने पकड़ लिया, लेकिन सोनी सोरी अफरा-तफरी का फायदा उठाकर बाजार की भीड़ में कहीं चली गईं.


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मामले के समय एसपी ने भी किया था ये दावा


इस मामले को लेकर दंतेवाड़ा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अंकित गर्ग ने भी दावा किया था कि मौके पर बी.के लाला, एस्सार कंपनी की ओर से नक्सलियों को उनके कारोबार में किसी तरह की कोई रूकावट न आने दें, इसलिए पहले ही बड़ी रकम कंपनी की ओर से नक्सलियों को दिया जा रहा था. इस बार एस्सार कंपनी के जनरल मैनेजर डिवीसीएस वर्मा ने ठेकेदार बी.के लाला को नक्सलियों को पैसा पहुंचाने के लिए कहा था, इसलिए एस्सार कंपनी ने नक्सलियों को दिए जाने वाले कुल पैसों में से एक किश्त की राशि 15 लाख रुपए सोनी सोढ़ी और लिंगाराम कोड़ोपी के माध्यम से नक्सलियों को पहुंचाने आया था और उसे गिरफ्तार कर लिया गया.


बता दें कि इस मामले में दंतेवाड़ा पुलिस ने बी.के लाला, सोनी सोढ़ी और लिंगाराम कोड़ोपी और एस्सार कम्पनी के तत्कालीन जनरल मैनेजर डिवीसीएस वर्मा को गिरफ्तार कर लिया था और इन पर विशेष जनसुरक्षा अधिनियम के तहत मुकदमा भी चला. इस दौरान उन सभी ने जगदलपुर के केंद्रीय जेल में कई सालों तक सजा काटी और क्योंकि यह मामला जन सुरक्षा अधिनियम के तहत था, इसलिए एनआईए की विशेष अदालत में इसकी सुनवाई चल रही थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद इस मामले में चारों को ही सुप्रीम कोर्ट से साल 2014 अक्टूबर माह में जमानत मिल गयी थी. 


11 साल बाद एनआईए की विशेष अदालत ने सुनाया फैसला


आखिरकार अब करीब 11 साल बाद एनआईए की विशेष अदालत ने पुलिस के पास इस मामले को लेकर सोनी सोढ़ी, लिंगाराम कोड़ोपी, बी.के लाला और एस्सार जीएम डिवीसीएस वर्मा के द्वारा नक्सलियों तक पैसे पहुंचाने की कोई पुख्ता सबूत नहीं होने के चलते इस मामले में NIA कोर्ट ने क्लीन चिट देते हुए सभी लोगों को दोषमुक्त  कर दिया है. वहीं सोनी सोढ़ी ने कहा कि इतने सालों बाद आखिर सच्चाई की जीत हुई. इस मामले में उन्हें तमाम तरीके से प्रताड़ित किया गया और उन पर नक्सली समर्थक होने के झूठे आरोप लगाए गए लेकिन वह 11 साल से अपने आप को निर्दोष कहती रहीं और आखिरकार पुलिस ऐसे कोई भी सबूत पेश नहीं कर पाई जिससे यह साबित हो सके कि वह नक्सलियों तक पैसे पहुंचा रहीं थीं, और आखिरकार उन्हें इस मामले में बाइज्जत बरी कर दिया गया.


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