(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Bastar News: बारसर में है भगवान गणेश की विश्व की तीसरी सबसे बड़ी मूर्ति, जानें 11वीं शताब्दी से जुड़ी मंदिर की रोचक कहानी
Chhattisgarh News: देवनगरी बारसर में भगवान गणेश की विश्व की तीसरी सबसे बड़ी पत्थर की मूर्ति मौजूद है, यहां जानें 11वीं शताब्दी से जुड़ी इस मंदिर की रोचक कहानी.
गणेश चतुर्थी महापर्व की पूरे देश में धूम मची हुई है, 31 अगस्त से शुरू हो रहा है. अब अगले 10 दिनों तक विघ्नहर्ता भगवान गणेश के मंदिरों में भक्तों का तांता लगे रहेगा. साथ ही बड़े-बड़े पंडाल में भगवान गणेश की विशाल प्रतिमाएं विराजे जाएंगे. भारत देश में भगवान गणेश के ऐसे कई प्राचीन मंदिर है जिनका अपना अलग ही महत्व है, और इन मंदिरों की अलग अलग रोचक कथाएं जुड़ी हुई हैं.
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के देवनगरी बारसर में भी भगवान गणेश की ऐसी प्राचीन मंदिर है जो 11 वीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी राजा के द्वारा बनाई गई है. यहां विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है और यह विश्व की पहली भगवान गणेश की जुड़वा प्रतिमा भी है. इस गणेश प्रतिमा की खास बात यह है कि यह हजार साल पुरानी है और एक ही पत्थर में बनाई गई विश्व की पहली जुड़वा गणेश की प्रतिमा है. जिसे देखने केवल देश से ही नही बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं.
दंतेवाड़ा शहर से करीब 31 किलोमीटर दूर और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 390 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है देवनगरी बारसूर, दरअसल बारसूर ग्राम को इसलिए देव नगरी कहा जाता है, क्योंकि यहां रियासत काल में 147 तालाब और 147 मंदिरे हुआ करते थे ,जो अपने आप में ऐतिहासिक है, इन मंदिरों में जो विशेष मंदिर है वह आज भी मौजूद हैं,जिन्हें पुरातत्व विभाग ने संरक्षण और संवर्धन कर रखा है, उनमें से ही एक भगवान गणेश का मंदिर है.
इस मंदिर में भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा साढ़े 7 फीट ऊंची है, और दूसरी प्रतिमा साडे साढ़े 5 फीट ऊंची है, यह दोनों मूर्तियां मोनोलिथिक है, यानि कि एक चट्टान को बिना कांटे छांटे और बिना जोड़े तोड़े बनाई गई मूर्तियां है, इन मूर्तियों को बनाने में कलाकार ने गजब कलाकारी दिखाई है, जहां एक मूर्ति में भगवान गणेश ने लड्डू छुपाके या संभाल के रखे हैं, तो वहीं दूसरी मूर्ति में बप्पा इन लड्डुओं का भोग लगा चुके हैं. कलाकार ने एक ही पत्थर में दो अलग-अलग भाव दर्शा दिए हैं, यह दोनों मूर्तियां बालू यानी रेत के चट्टानों से बनाई गई है.
इधर एक ही मंदिर में दो अष्टविनायक की दो प्रतिमाओं का होना अपने आप में ही दुर्लभ है, इस मूर्ति को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्रतिमा माना जाता है, इस मंदिर के पीछे एक दन्तकथा जुड़ी हुई है कि 11वीं शताब्दी में जब बस्तर में छिंदक नागवंशी राजाओं का राज था, ऐसे में बारसूर के राजा बाणासुर ने मंदिर को बनाया था और गणेश मंदिर को बनाने के पीछे भी अलग विशेषता है.
राजा बाणासुर की बेटी उषा और उनके मंत्री कुभांडु की बेटी चित्रलेखा दोनों जिगरी सहेलियां थी और दोनों भगवान गणेश की परमभक्त थी, राजा बाणासुर ने इनके लिए ही एक ही पत्थर में दो विशालकाय गणेश प्रतिमाओं का निर्माण कराया था, जहां हर रोज दोनों पूजा पाठ के लिए आया करती थी, आज हजारों साल बीतने के बावजूद भी यहां आसपास के गांव के साथ ही देश और विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक इस विशालकाय प्रतिमा को देखने बारसूर गणेश मंदिर पहुंचते हैं.
पर्यटकों का कहना है कि इससे पहले उन्होंने कभी रेत की चट्टानों से बने भगवान गणेश की विशालकाय प्रतिमा नहीं देखी और ना ही जुड़वा गणेश की प्रतिमा एक साथ देखे, हालांकि उनका कहना है कि इस जगह को पर्यटन स्थल के रूप में और विकसित किया जाना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक छत्तीसगढ़ के इस अतभुद प्रतिमा और प्राचीन मंदिर को देखने यहां पहुंच सके, और साथ ही जिला प्रशासन को यहां पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए सुविधाओं का भी विस्तार किया जाना चाहिए.
इधर बारसुर के ग्रामीणों का कहना है कि हर साल गणेश चतुर्थी के मौके पर यहां भव्य मेला लगता है, हालांकि यहां बाकी जगह की तरह भगवान गणेश की मिट्टी से बनी प्रतिमा स्थापित नहीं की जाती है केवल बारसूर गणेश मंदिर में कलश स्थापना की जाती है, और 11 दिनों तक उसकी पूजा पाठ की जाती है और जिसके बाद कलश को ही विसर्जन करने की मान्यता है. उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल के बाद इस साल गणेश चतुर्थी को लेकर पूरे ग्रामीण काफी उत्साहित हैं और गणेश चतुर्थी से 11 दिन यहां भक्तों का ताता लगे रहता है, और दूर दराज से पर्यटक भी इस मंदिर को देखने यहाँ पहुंचते हैं.
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