Pendra News: छत्तीसगढ़  के जीपीएम  जिले में जिला प्रशासन के द्वारा गुरुकुल परिसर में कम्पोजिट बिल्डिंग और कलेक्ट्रेड भवन बनाने के लिए पेड़ो  की कटाई शुरू कर दी है. जिसका विरोध भी अब पर्यावरण प्रेमी  करना शुरू कर दिए है. पर्यावरण प्रेमियों के द्वारा अनोखा प्रदर्शन करते हुए मौके पर पहुचकर कटे हुए पेड़ो को कफ़न ओढ़ाया और पेड़ो का अंतिम संस्कार करते हुए उनकी रक्षा नहीं कर पाने पर अफसोस जाहिर किया है. आगे पेड़ो को बचाने के लिए हर तरह की लड़ाई लड़े जाने की बात कह रही है.



कम्पोजिट बिल्डिंग बनाने के लिए प्रशासन ने काटा पेड़
दरअसल गुरुकुल परिसर सेनेटोरियम परिसर से लगा हुआ है. जहां पर कभी गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर आकर लंबे समय तक रुके थे. जिस सेनेटोरियम परिसर में गुरुदेव अपनी पत्नी का इलाज कराने आए थे उस सेनेटोरियम परिसर के सौ से डेढ़ सौ साल पुराने हरे औषधीय वृक्षों को काटा जा रहा है. क्योंकि यहां गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का कंपोजिट बिल्डिंग बनाना है. सेनेटोरियम में पेड़ों की कटाई शुरू होने से पर्यावरण प्रेमियों में शोक की लहर है. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि विकास की ऐसी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी. 


अनुकूल वातावरण को देखते हुए ब्रिटिश काल में एशिया का प्रसिद्ध टीवी हॉस्पिटल बनाया गया था
इसी वर्ष सेनेटोरियम परिसर में गुरुदेव की मूर्ति की भी स्थापना हुई है जो इस विनाश लीला को अपनी आंखों से देख रहे हैं. पेड़ काटने वालों ने यह भी नही सोचा कि गुरुदेव की आत्मा पर क्या गुजर रही होगी. गौरेला से पेंड्रा जाने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित विश्व प्रसिद्ध सैनिटोरियम अपने प्राकृतिक वातावरण एवं आबोहवा के लिए प्रसिद्ध है. यहां की औषधीय युक्त हवाओ एवं वातावरण को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश शासन में एशिया का प्रसिद्ध टीवी हॉस्पिटल बनाया गया था. जिसका प्रमुख कारण था कि साल सरई के वृक्षों के बीच यह इलाका उत्तम जलवायु के लिए ऑक्सीजोन कहलाता है.


100 से 150 साल पुरानी पेड़ों को प्रशासन ने काटा
यह वही इलाका है जहां राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर अपनी पत्नी का इलाज कराने सेनेटोरियम आए थे. मुख्य मार्ग पर दोनों ओर साल सरई के घने जंगल किसी का भी मन मोह लेते हैं. लेकिन पर्यावरण प्रेमीयो के लिए दुखद बात यह है कि अब यह साल, सरई के पेड़ भी काटा जा रहा है जिसका कारण जिला प्रशासन ने गौरेला पेंड्रा मरवाही का जिला मुख्यालय के लिए कलेक्ट्रेट एवं संयुक्त भवन निर्माण के लिए इस स्थल का चयन किया है. नतीजा कलेक्ट्रेट के ड्राइंग डिजाइन के लिए साल सरई के लगभग 100से 200 साल पुराने दर्जनों पेड़ों को इस की बलि देनी होगी. प्रशासन ने उन पेड़ों को चिन्हित कर काटने की तैयारी कर ली है. शुरुआती तौर पर अभी हर्रा, बहेरा, पीपल, इमली एवं महुआ के पेड़ों को काटा जा रहा है फिर धीरे-धीरे उन पेड़ों को काटा जाएगा जिनको तैयार होने में सालों साल लग जाते है. 


पर्यावरण प्रेमियों ने किया विरोध और कहीं यह बातें
जिसे लेकर जिले के पर्यावरण एवं वृक्षों के प्रेमियों ने इस बात पर कड़ी आपत्ति जताई है. उन्होंने वृक्ष काटने का विरोध तो किया ही साथ ही शासन – प्रशासन का ध्यान इस ओर अवगत कराया की इस जमीन के आसपास भी ऐसी कई एकड़ जमीन रिक्त पड़ी है जहां बिना वृक्षों को काटे यह भवन बनाया जा सकता है. लेकिन शासन-प्रशासन अपनी जिद पर अड़ा हुआ है वृक्ष की बलि देकर विकास और भवन निर्माण कितना जायज है.


कटे पेड़ों को कफन पहना कर मंत्रों के साथ किया गया अंतिम संस्कार
पेड़ों को कटता दे पर्यावरण प्रेमियों ने अनोखा प्रदर्शन किया है पर्यावरण प्रेमियों ने कटे पेड़ों के ऊपर कफ़न पैदा कर पंडित को बुलवाकर पूरे विधि विधान से कटे हुए पेड़ों का अंतिम संस्कार किया है इस दौरान पंडित के द्वारा मंत्र भी पड़ेगा हैं पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि वहीं पेड़ों को कटने से नहीं बचा पाए इसलिए इनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं उन्होंने कहा कि जिन पेड़ों की वजह से हम आज जिंदा है उन पेड़ों की कटाई करने से उनको बहुत दुख हुआ है वहां स्थित विशाल बरगद के पेड़ की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधकर उसकी रक्षा करने का संकल्प लिया है.


जानिए पीडब्ल्यूडी के एसडीओ डी एस जैन ने क्या कहा
वही इस मामले में पीडब्ल्यूडी के एसडीओ डी एस जैन का कहना है कि इस स्थान पर कम्पोजिट बिल्डिंग बनना है जिसके लिए एसडीएम ने 8 पेड़ काटने की अनुमति दी है. उसी के परिपालन में यहां पेड़ों की कटाई की गई है. जिन पेड़ों को काटा गया है वह पेड़ 100 से 150 साल पुराने हैं. यह पेड़ बिल्डिंग जहां बन रही है उस इलाके में है. इस वजह से इन पेड़ों की कटाई की जा रही है. यहां सिर्फ आठ ही पेड़ काटने की अनुमति एसडीएम द्वारा दी गई है. हम आठ ही पेड़ काट रहे हैं.


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