छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और नारायणपुर सीमा क्षेत्र में मौजूद अबूझमाड़ के इलाके में लगभग 30 गांव के हजारों ग्रामीणों ने अपने जल जंगल जमीन को बचाने के लिए 5 किलोमीटर की विशाल रैली निकाली और हांदावाड़ा में एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया. ग्रामीणों ने कहा कि सरकार बस्तर के वनवासियों के जल,जंगल,जमीन का दोहन कर रही है और आमदई लौह अयस्क खदान को इस क्षेत्र में खोलने की अनुमति भी दे दी है, जिसके विरोध में ग्रामीण आंदोलन कर रहे हैं.


ग्रामीणों का कहना है कि वे नहीं चाहते कि उनके गांव में कोई खदान या उद्योग स्थापित किया जाए और कॉरपरेट घराने के लोग उनके जल,जंगल,जमीन का दोहन करें और यह भी नहीं चाहते कि प्रसिद्ध हांदावाड़ा वाटरफॉल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए क्योंकि इस वाटरफॉल यहां तक पहुंचने के लिए सड़क, पुल, पुलिया बनने से ज्यादा से ज्यादा पर्यटक पहुंचेंगे और जिसके बाद सरकार यहां उद्योग स्थापित करने के नाम पर उनके हरे भरे जंगलों को काटेगी, जमीन हड़प लेगी. ऐसे में वे नहीं चाहते कि हांदावाड़ा वाटरफॉल को कोई भी पर्यटक देखने आए और इसे सरकार पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करें.


ग्रामीणों का आरोप- कारपोरेट घरानों को फायदा पहुंचा रही सरकार


दरअसल ग्रामीणों ने अबूझमाड़ के धारा डोंगरी में लगभग 5 किलोमीटर की रैली निकालकर सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. ग्रामीणों ने वन संरक्षण अधिनियम 2022 को भी रद्द करने की मांग की. उन्होंने  कहा कि सरकार पिछले कुछ सालों से विकास के नाम पर लगातार उनके जंगल काट रही है. उनके जमीन हड़प रही है और आदिवासियों का शोषण कर रही है. रोजगार देने के नाम पर ग्रामीणों से छलावा किया जाता है और उसके बाद धीरे-धीरे उनके जल ,जंगल ,जमीन को हड़प कर कारपोरेट घराने के लोगों से सांठगांठ कर उद्योग स्थापित किया जाता है जिससे केवल सरकार और बाहरी लोगों को ही आर्थिक लाभ होता है, जबकि ग्रामीण की स्थिति वहीं की वहीं रहती है,


ऐसे में वे नहीं चाहते कि उनके क्षेत्र में कोई भी नया खदान स्थापित हो. उन्होंने कहा कि सरकार ने बिना ग्रामसभा के अनुमति लिए आमदई लौह अयस्क खदान को भी खोल दिया है और आदिवासियों की संस्कृति और संपत्ति दोनों को नुकसान पहुंचा रही है.


 ग्रामीणों ने कहा कि गांव में जरूरी सेवाओं को छोड़कर किसी भी प्रकार के दोपहिया और चार पहिया वाहनों का आवागमन अब उनके क्षेत्र में ग्रामीण बर्दाश्त नहीं करेंगे, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हांदावाड़ा वाटरफॉल घूमने के नाम पर यहां लोग आ रहे हैं और यहां की संस्कृति को फोटो और वीडियो के माध्यम से बाहर भेज रहे हैं.


पर्यटन स्थल के नाम पर बाहरी लोग यहां आते  हैं और हंदवाड़ा गांव की छवि खराब कर रहे हैं. ग्रामीणों का यह भी कहना है कि बस्तर की खनिज संपदाओं पर सरकार और कॉर्पोरेट सेक्टर यहां नजर जमाए हुए हैं. हांदावाड़ा वाटरफॉल को विकसित करने के नाम पर सड़क बनाया जाएगा और उसके बाद यहां के खनिज संसाधनों को सरकार और कॉर्पोरेट घराने दोहन कर यहां के आदिवासियों को खदेड़ दिया जाएगा.


 इस वजह से आदिवासी नहीं चाहते कि उनके गांव में कोई भी खदान खुले या फिर हांदावाड़ा वाटरफॉल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करें, ग्रामीणो के इस आंदोलन में दंतेवाड़ा, नारायणपुर और बीजापुर जिले के सीमावर्ती गांव से लगभग 40 हजार से ज्यादा आदिवासी ग्रामीण अपने पारंपरिक हथियार तीर धनुष लिए पारंपरिक वेशभूषा में पहुंचे हुए थे और पुलिस कैंप और सड़क निर्माण को लेकर सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.


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