Chhattisgarh Holi 2024: आगामी दो दिनों के बाद होली है. लोग त्योहार की खुशियां मनाने में जुटे है. इधर पुलिस विभाग सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने में जुटा है. दो दशक पहले तक शहर समेत आसपास के गांव में भाई चारे के माहौल में होली मनाई जाती थी, लेकिन साल दर साल त्योहार पर दुश्मनी निकालने की बढ़ती घटनाओं ने पर्व की खुशियों में खटास मिला दी है. समय के साथ कैसे बदला होली का स्वरूप? पढ़िए इस रिपोर्ट में-


आज के आधुनिक युग में गुजरे जमाने की होली मनाने की पुरानी परंपरा विलुप्त होती दिख रही है. पहले नगाड़ों की जो थाप महीने भर पहले से सुनाई दे जाती थी, आज त्यौहार में हफ्ते भर से भी कम समय होने के बाद वह आवाज गुम हो गई है.


दो दशक पूर्व फाल्गुन माह प्रवेश करते ही लोग होली त्योहार की तैयारी में जुट जाते थे. लोग बड़े उत्साह के साथ रंगों से खेलते थे. आज होली मनाना तिलक लगाने का रिवाज बन कर रह गया है.


परंपरागत गीत की धुन सुनाई पड़ती है
बुजुर्गों के अनुसार पहले फाल्गुन मास में शाम ढलते ही होली गीत गाने वालों की टोली जुट जाती थी. देर रात तक गीतों का दौर चलता था. देवी देवताओं पर आधारित होली गीत गाए जाते थे. होली के गीतों से पूरा गांव गुंजायमान रहता था.


इसमें बुजुर्ग, युवा व बच्चे एक साथ बैठते थे. यहां तक कि एक परिवार के लोग साथ में होली गीत गाते थे. इस दौरान महिलाएं भी गीत सुनने पहुंचती थी. अभी भी ग्रामीण इलाकों में कुछ जगहों पर परंपरागत गीत की धुन सुनाई पड़ती हैं. 


पुरानी परंपरा समाप्त होने के कगार पर है
आज के दौर में ज्यादातर ध्वनि विस्तारक यंत्र से होली गीत सुनाई पड़ती है. गीत के बोल में अश्लीलता झलकती है. यहां तक की अभी की होली गीत अपने परिवार के सदस्यों के साथ सुना नहीं जा सकता है.


खास कर महिलाओं को अभी की होली गीतों से शर्मसार होना पड़ रहा है. इससे होली की पुरानी परंपरा समाप्त होने के कगार पर है. बुजुर्गों ने बताया कि गुजरे जमाने में गांव के एक स्थान पर होलिका दहन किया जाता था.


इसके लिए माह भर पहले तैयारी की जाती थी फिर होलिका दहन का दिन आते तक यहां लकड़ियां इकट्ठी की जाती थी. अब तो दहन से दो-तीन दिन पहले होलिका तैयार की जाती है.


होलिका की राख का टीका लगाना भूले लोग
पहले देवी देवताओं का सुमिरन करने के बाद ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ होलिका दहन होता था. अगली सुबह लोग होलिका की राख जुटा कर एक दूसरे को टीका लगाते थे. इसके बाद ही रंग खेलने का रिवाज है. आज कल गली-गली में होलिका तो जलाई जाती है, लेकिन अगली सुबह उसकी राख का टीका लगाने की परंपरा भी लगभग विलुप्ति की ओर है. पास-पड़ोस में सभी बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते थे, अब यह नहीं होता. अब तो होलिका दहन के लिए घर से बाहर निकलने में भी लोग डरते हैं.


गीतों की जगह अश्लील गाने
होली पर पहले परंपरागत फाग गीत गाए जाते थे. आज होलिका दहन और होली वाले दिन डीजे का इस्तेमाल किया जाता है. इस पर ऐसे गीत चलाए जाते हैं जिनमें अश्लीलता झलकती है. आज के कई होली गीत तो ऐसे हैं जिन्हें परिवार के साथ बैठकर सुना नहीं जा सकता.


बावजूद इसके युवाओं की टोली ऐसे गीतों को भारी भरकम आवाज पर चलाते हैं. कह सकते हैं कि होली का बदलता स्वरूप आज की पीढ़ी में तेजी से हो रहे संस्कारों के हास का नतीजा है.


ये भी पढ़ें: Balrampur News: 'पीला सोना' इकट्ठा करने के लिए जंगल में डेरा डालते हैं आदिवासी, कितना उपयोगी है महुआ?