कोंडागांव में लिंगई माता का मंदिर, साल में सिर्फ एक बार खुलते हैं द्वार, मन्नत पूरी करने के लिए है प्रसिद्ध
मंदिर का द्वार साल में बस एक बार ही खुलता है और वह भी नवाखानी महापर्व के बाद. इस गुफा के द्वार खोले गए है जहां सुबह से ही बड़ी संख्या में लिंगई माता के दर्शन के लिए तांता लगना शुरू हो गया है.
Kondagaon News: छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपनी पुरानी परंपरा रीति रिवाज और संस्कृति के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है.यहां की प्राचीन मंदिरे और इन मंदिरों से जुड़ी कहानी भी काफी प्रसिद्ध है.यहां के रहवासियों में भगवान शिव.पार्वती और गणेश के प्रति काफी गहरी आस्था जुड़ी हुई है. यही वजह है कि बस्तर संभाग में सैकड़ो शिव धाम हैं और उनमें से ही एक प्रसिद्ध शिव और पार्वती का धाम है आलोर लिंगई मंदिर. कोंडागांव जिले के फ़रसगांव ब्लॉक के झाटीबन गांव के आलोर पहाड़ में स्थित है यह प्रसिद्ध मंदिर. जिसे लिंगई माता का मंदिर कहा जाता है. यह एक गुफा नुमा मंदिर है.
जिसमें श्रद्धालुओं की काफी गहरी आस्था जुड़ी हुई है. इस मंदिर का द्वार साल में बस एक बार ही खुलता है. और वह भी नवाखानी महापर्व के बाद. बुधवार को इस गुफा के द्वार खोले गए है जहां सुबह 5 से ही बड़ी संख्या में लिंगई माता के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है. वही लिंगई माता के दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के साथ-साथ उड़ीसा और आंध्र प्रदेश से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु के पहुंचते है. भीड़ को देखते हुए इसके नियंत्रण के लिए पूरे मंदिर के आसपास वॉय श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था कोंडागाँव पुलिस के द्वारा की गई है.
हजारों की संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालु
लिंगेश्वरी मंदिर सेवा समिति के सदस्य विष्णु राम मरकाम ने बताया कि आलोर गांव के उत्तर पश्चिम दिशा में एक छोटी सी पहाड़ी है. जिसके ऊपर एक विशाल चट्टान है. बाहर से यह बिल्कुल सामान्य दिखने वाला यह चट्टान अंदर से स्तूपाकार का है.मानो जैसे किसी कटोरे को उल्टा दिया गया हो.इस गुफा का एक ही प्रवेश द्वार है जो सुरंग नुमा है.यहां बैठकर या लेटकर ही प्रवेश किया जा सकता है. वही अंदर एक साथ 15 से 20 लोगों के बैठने की ही जगह है.साल में केवल एक बार खुलने वाले इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. सुबह 5 से ही आलोर मंदिर गुफा के द्वार खोल दिए जाते हैं और माता के दर्शन का यह सिलसिला शाम 7 बजे तक चलता है. इस साल भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे हुए हैं सेवा समिति के सदस्य विष्णु ने बताया कि सुबह 9 बजे तक 1 हजार से ज्यादा श्रद्धालु पहुंच चुके हैं और शाम तक यहाँ श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहेगा. उन्होंने बताया कि मंगलवार शाम से ही श्रद्धालुओं के आलोर मंदिर पहुँचने का सिलसिला शुरू हो गया था और रात से ही दर्शन के लिए श्रद्धालु लंबी कतार लगे हुए थे. बुधवार सुबह 5 बजे मंदिर के पट खोलकर आरती करने के बाद लगातार श्रद्धालु दर्शन कर रहे हैं.
इस मान्यता के लिए प्रसिद्ध है मंदिर
जानकारों ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि इस गुफा के अंदर एक पत्थर से लिंग की आकृति बनी हुई है. इस आकृति को स्थानीय लोग लिंगई माता के नाम से पुकारते हैं. कहा जाता है कि भगवान शिव और पार्वती का एक ही लिंग में रूप है. इसलिए इसे लिंगई माता कहा जाता है.यहां मन्नत मांगने की भी अलग ही रीत होती है.संतान की कामना लेकर आए दंपतियों को यहां खीरा (ककड़ी) चढ़ाना अनिवार्य है.इसी खीरे को पुजारी पूजा के बाद दंपती को वापस देते हैं. जिसके बाद दंपती खीरा को खुद के नाखून से फाड़कर लिंगई माता के समक्ष ही खाते हैं. श्रद्धालुओं ने बताया कि यहां मन्नत मांगने के बाद मनोकामना जरूर पूरी होती है और बकायदा वह दंपति मनोकामना पूरी होने के बाद अपने संतान को लेकर भी लिंगई माता के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं. लिंगई माता के प्रति श्रद्धालुओं की काफी गहरी आस्था जुडी हुई है. यही वजह है कि केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि तेलंगाना. आंध्र प्रदेश और उड़ीसा राज्य से भी बड़ी संख्या में दंपति यहां पहुंचते हैं और संतान की मनोकामना मांगते हैं.