Independence Day 2022: देश इस साल स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) को आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) के रूप में मना रहा है. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में भी स्वतंत्रता दिवस को धूमधाम से मानने की तैयारी की गई है. लेकिन, क्या आपको पता है कि छत्तीसगढ़ में पहली बार कहां और किसने तिरंगा फहराया था? इसकी जानकारी शायद ही किसी के पास हो, लेकिन आज एबीपी न्यूज़ अपको बताएगा मध्य प्रांत और बरार के छत्तीसगढ़ संभाग में किसने तिरंगा फहराया था.

 

दरअसल छत्तीसगढ़ विषय के विशेषज्ञ और शिक्षाविद मुरली मनोहर देवांगन से एबीपी न्यूज़ ने खास बातचीत की है. उन्होंने बताया है कि जब ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारतीय स्वाधीनता विधेयक को राजकीय स्वाधीनता प्राप्त हुई, तब न सिर्फ दिल्ली, बल्कि पूरे भारत के कोने-कोने में आजादी की जयघोष गुंज उठी और हर आंखें नम थीं. क्योंकि, यह एक ऐसा समय था जो इतिहास में बहुत कम आता है. आज ही के दिन हम पुराने युग से एक नये युग में कदम रख रहे थे. जब गुलामी के उस काले अध्याय का अंत हो रहा था और जब राष्ट्र के हर जन मानस में अरसे से दबी आत्मा बोल रही थी 'जय हिंद' और हर भारतीय सौगंध ले रहा था.

 

18 जुलाई को शुरू हो गया था जश्न

 

उन्होंने आगे बताया कि इस उत्साह और स्वर्णिम समय में मध्य प्रांत और बरार का छत्तीसगढ़ संभाग भी कदम से कदम मिलाकर आजादी का जश्न मना कर अपने पुर्वजों के बलिदान को याद कर रहा था. चाहे वह रायपुर हो या बिलासपुर, चाहे उत्तर हो या दक्षिण, चारों ओर सिर्फ जय हिंद के नारे लग रहे थे. उत्सव की तैयारियां शासकीय सूचनाओं के आदेश की मोहताज नहीं थीं. 3 अगस्त के सूचना प्रसारित होने से पहले ही 18 जुलाई से ही जश्न प्रारंभ हो चुका था. संभाग के हर जिले रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग के प्रमुख अधिकारियों और जिला कांग्रेस समितियों को समारोह की भव्यता और गरिमा का दायित्व सौंपा गया था.

 


 

नागपुर से हुई थी तिरंगा फहराने की शुरुआत

 

मुरली मनोहर देवांगन ने बताया कि सभी तहसीलदारों को राष्ट्रीय ध्वज और पम्पलेटों को अपने क्षेत्र के सभी गांवों में वितरण की जवाबदारी दी गई थी. जहां रायपुर में तत्कालिन जिलाधिकारी आई.सी.एस. जेडी कारावला ने जिम्मेदारी संभाली तो वहीं बिलासपुर और दुर्ग में यह जिम्मेदारी नसरुद्दीन और डी.ए.वी. व्हाइट ने संभाली. उन्होंने ने बताया कि तिरंगा फहराने की शुरुआत माध्य प्रांत की राजधानी नागपुर में देखने को मिली. यहां ऐतिहासिक सीताबर्डी किले में तत्कालीन मुख्यमंत्री रवि शंकर शुक्ल ने तिरंगा फहराया. इसी दिन तत्कालिन कमिश्नर के. बी. एल. सेठ ने 200 से अधिक बंदियों को जेल से रिहा किया.

 

गांधी चौक पर लगभग 3 बजे फहराया गया था तिरंगा 

 

मुरली मनोहर देवांगन ने आगे बताया कि रायपुर में गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी वामन बलीराम लाखे ने गांधी चौक पर लगभग 3 बजे तिरंगा फहराया. उनके साथ रायपुर पुलिस ग्राउंड में आर. के. पाटिल ने तिरंगा फहराया. इस अवसर पर जय स्तंभ चौक की नींव रखी गई. दुर्ग में ध्वजारोहण की जिम्मेदारी तत्कालिन स्पीकर और संविधान निर्मात्री सभा के हिंदी प्रारूप समिति के अध्यक्ष घनश्याम सिंह गुप्त को थी. इन सब कार्यक्रमों को सफल बनाने में नेता ठाकुर प्यारेलाल का योगदान अद्वितीय रहा. इसके अलावा बिलासपुर मे मुंगेलीवासी राम गोपाल तिवारी ने ध्वजारोहण किया. साथ यहां भी कमिश्नर के आदेशानुसार जेल से कुछ कैदियों को रिहा किया गया.

 

आजादी के समय ये थी छत्तीसगढ़ की चर्चित कहावत

 

मुरली मनोहर देवांगन ने उस समय के चर्चित छत्तीसगढ़ी कहावतों के बारे में भी बताया. उन्होंने कहा कि आजादी के अंतिम संघर्ष के पड़ाव में देश को विभाजन का दर्द भी झेलना पड़ा. तब हर छत्तीसगढ़ी की जुबां पर एक ही वाक्य गूंज रहा था. 'गेयेव बाजार बिसायेव गोभी पान, मैं तो गावथों ददरिया झन जाबे पाकिस्तान.' उन्होंने ये भी बताया कि आजादी के 48 घंटे बाद बंगाल और पंजाब में साम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गए, लेकिन हम छत्तीसगढ़ियों ने न तो अपना आपा खोया, न ही बंधुत्व और सौहाद्रता के वचन को आंच आने दिया. तब राज्य में एक और छत्तीसगढ़ी कहवात काफी चर्चा में थी. 'हमर देश आजाद करे बर, बनीस कतको बलिदानी अब हमर बारी हे संगी, बनबो अब बड़ अभिमानी.'