Bastar News: देश की सबसे महंगी सब्जी में शुमार बस्तर की बोड़ा भाजी के बारे में तो आपने सुना होगा और इसका स्वाद भी चखा होगा लेकिन बस्तर की एक और काफी प्रचलित और लजीज व्यंजन है बस्तर की मशरूम. दरअसल कृषि विज्ञान केंद्र और जिला प्रशासन बस्तर की ग्रामीण महिलाओं को मशरूम उत्पादन के लिए पिछले 6 दिनों से प्रशिक्षित कर रहा है. इसके उत्पादन से न सिर्फ ग्रामीण महिलाओ को एक अच्छी आय प्राप्त होगी बल्कि देश दुनिया से बस्तर घूमने वाले सैलानी भी बस्तर के होटलों और ढाबों में देसी मशरूम का स्वाद चख सकेंगे.


महिलाओं को मशरूम उत्पादन के लिए दिया जा रहा प्रशिक्षण पूरा हो चुका है और अब ये ग्रामीण महिलाएं अपने गांव में मशरूम का उत्पादन काफी कम लागत में कर सकेंगी. वही कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक भी इन महिलाओं को मशरूम उत्पादन के लिए सभी जरूरी संसाधन मुहैया करवा रहे हैं.


ऐसे होती है मशरूम तैयार
बस्तर में तरह-तरह के व्यंजन मिलते हैं जो काफी लोकप्रिय हैं. इन व्यंजनों में बोड़ा भाजी के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय यहां की मशरूम है. मशरूम एक फंगस प्रजाति है जिसके बीज को भिगोकर 20 से 25 डिग्री में बंद कमरे में उगाया जाता है. जिसके बाद थैलों में रखी पैरा से मशरूम उगने लगते है और यह फूल की तरह तैयार होते हैं. 25 से 30 दिनों में जब मशरूम पूरी तरह उग जाती है इसके बाद इसे थैलों से बाहर निकाला जाता है और इसकी पैकिंग कर इसे बेचा जाता है.


मसरूम के फायदे
इस मशरूम को तैयार करने के लिए इसमे पूरी तरह से जैविक खाद का इस्तेमाल किया जाता है. जानकार बताते है कि इस मशरूम प्रोटीन ,कार्बोहाइड्रेट, आवश्यक लवण और विभिन्न विटामिन जैसे फायदों से लबरेज होता है. यही नहीं कुपोषण जैसे गंभीर बीमारी को मात देने के लिए मशरूम काफी फायदेमंद है. प्रायः देखा जा रहा है कि बस्तर में मशरूम पड़ोसी राज्य उड़ीसा से बड़ी मात्रा में पहुंच रहा है और यहां के लोग इसे महंगे दामों में लेने को मजबूर हैं. साथ ही बस्तर के ग्रामीण भी मशरूम का उत्पादन कर सकें इसके लिए प्रशिक्षण की शुरुआत की गई और कृषि विज्ञान केंद्र में नक्सल प्रभावित क्षेत्र से पहुंची ग्रामीण महिलाओं को लगभग 7 दिनों तक प्रशिक्षण दिया गया.


कम लागत में अच्छी आय
इस प्रशिक्षण के दौरान कृषि वैज्ञानिक रितिका समरथ ने ग्रामीण महिलाओं को बताया कि किस तरह से मशरूम तैयार किया जाता है और इसे तैयार करने में कितना समय लगता है और किन संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है. रितिका समरथ ने बताया कि मशरूम उत्पादन को लेकर बस्तर में ग्रामीण जागरूक नहीं हैं. मशरुम काफी कम लागत में अच्छी आय दे सकती है. ऐसे में प्रशिक्षण की शुरुआत की गई और जिले के अलग-अलग ग्रामीण क्षेत्रों से पहुंची लगभग 15 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया.


सैलानी भी ले सकते हैं स्वाद
रितिका समरथ ने कहा कि कोशिश यही की जा रही है कि ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को मशरूम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाए. साथ ही बस्तर में दूसरे राज्य की मशरूम नहीं बल्कि बस्तर की ही मशरूम का स्वाद यहां के लोग और बस्तर घूमने पहुंचने वाले सैलानी चख सकें. उन्होंने कहा कि आश्टर मशरूम बस्तर की काफी लोकप्रिय मशरूम है और काफी कम लागत में इसका उत्पादन किया जा सकता है. इस वजह से इसके लिए ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है.


4 से 5 हजार होगी मासिक आय
प्रशिक्षण लेने आई ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि अशिक्षा और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में होने की वजह से उन्हें कहीं काम नहीं मिल पाता और घर चलाना भी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लेकर अब वे ज्यादा से ज्यादा मशरूम का उत्पादन करेंगी ताकि इससे अच्छी आय प्राप्त हो सके. वही कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि मशरूम उत्पादन से ग्रामीण महिलाओं को महीने में 4 से 5 हजार रुपये की आय हो सकती है. मशरूम से केवल सब्जी ही नही बल्कि इससे खाने की पावडर , औषधि और अन्य खाने की चीजें भी तैयार की जाती हैं.


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