Project for Garbage Free City: जगदलपुर को गार्बेज फ्री सिटी बनाने के लिए नगर निगम ने पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है. डोर टू डोर कचरा उठाने वाली गाड़ियों में रेडियो फ्रिकवेंसी चिप लगाई गई है. इसके जरिए निगम के अधिकारी वाहनों की निगरानी कर सकेंगे. पहले चरण में व्यवस्था की ऑनलाइन निगरानी शुरू करने के लिए निगम 90 हजार रुपये खर्च कर रहा है.


निगम आयुक्त ने बताया कि शहर में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन की व्यवस्था को मजबूत करने और ऑनलाइन निगरानी के लिए योजना की शुरुआत की गई है. प्रेम कुमार पटेल ने बताया कि लंबे समय से नगर निगम को शिकायत मिल रही थी कि रोजाना कचरा उठाने वाली गाड़ी हर वार्ड में नहीं पहुंच पाती है. गाड़ी के नहीं पहुंचने से घर का कचरा घर में ही रह जाता था.


स्वच्छता रैंकिंग में सुधार के लिए निगम ने शुरू किया प्रोजेक्ट


लोग कचरे को चौक चौराहों या नालियों में फेंकने पर मजबूर थे. यही कारण है कि शहर की स्वच्छता रैंकिंग में सुधार नहीं हो रहा था और लगातार जगदलपुर शहर स्वच्छता रैंकिंग में पिछड़ता जा रहा था. इस परिस्थिति से निपटने के लिए नगर निगम ने डोर टू डोर कचरा उठाने वाली गाड़ी में चिप लगाया है. इसके अलावा वृंदावन कॉलोनी के लगभग 50 घरों में भी रेडियो फ्रीक्वेंसी चिप लगाए गए हैं.


अब नगर निगम के अधिकारी दफ्तर में बैठे-बैठे डोर टू डोर कचरा कलेक्शन करने वाली गाड़ी की निगरानी कर रहे हैं. गार्बेज कलेक्शन करने वाली गाड़ी को ट्रैक करते हुए घरों के बाहर कचरा फेंकनेवालों का पकड़ना भी आसान हो गया है. उन्होंने कहा कि इस सिस्टम से घर का कचरा नहीं उठने की जानकारी फौरन नगर निगम अधिकारियों को सर्वर के जरिए मिल जाएगी. इसके बाद निगम के अधिकारी छूटे हुए घरों से कचरा उठाव करना सुनिश्चित करेंगे.


कचरा कलेक्शन गाड़ी के नहीं आने की शिकायत हुई मुश्किल


आयुक्त ने बताया कि चिप की कीमत काफी ज्यादा है. शुरुआती तौर पर शहर के 30 हजार घरों में चिप लगाने के लिए कंपनी के अधिकारियों से दाम कर दाम कम करने को कहा गया है. निगम की कोशिश होगी कि शहर के हर घर में चिप लगाया जा सके. आयुक्त के मुताबिक इस काम की जिम्मेदारी राजधानी रायपुर की इजेन रूट आईटी सॉल्यूशन कंपनी को दी गई है. कंपनी नेक्स्ट जनरेशन आईओटी बेस्ड सिस्टम पर काम कर रही है. इसके तहत घरों के बाहर एक सेंसर बोर्ड लगाया गया है और कचरा गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर के मोबाइल में ऐप डाउनलोड कर दिया गया है. घरों के बाहर लगे सेंसर करीब 50 मीटर की दूरी तक इस ऐप को ट्रेस करते हैं और फिर जीपीएस के माध्यम से वाहन के ड्राइवर की लोकेशन सेंड करते हैं.


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