Jashpur News: जशपुर की नई पहचान बने चाय बागान, टी टूरिज्म को मिल रहा बढ़ावा
जब भी चाय की बात की जाती है तो असम और दार्जिलिंग का नाम सबसे पहले आता है लेकिन अब छत्तीसगढ़ के जशपुर में भी चाय की खेती होने लगी है. इसके साथ ही टी टूरिज्म को बढ़ावा भी मिल रहा है.
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की पहचान यहां की विशिष्ट आदिवासी संस्कृति, प्राकृतिक पठारों और नदियों की सुंदरता तथा एतिहासिक रियासत से है. इसके साथ ही पिछले साढ़े तीन वर्षों से जशपुर की पहचान में एक नया नाम जुड़ गया है और ये पहचान अब देशव्यापी हो गयी है. अभी तक चाय की खेती के लिए लोग असम या दार्जिलिंग का ही नाम लेते रहे हैं लेकिन जशपुर में भी चाय की खेती होने लगी है. जो पर्यटकों को भी अपनी तरफ आकर्षित कर रही है. हम सभी यह जानते हैं कि पर्वतीय और ठंडे इलाकों में ही चाय की खेती हो पाती है और छत्तीसगढ़ का जशपुर जिला भी ऐसे ही भौगोलिक संरचना पर स्थित है.
पठारी क्षेत्र होने और लैटेराइट मिट्टी का प्रभाव होने की वजह से जशपुर में चाय की खेती के लिए अनुकूल वातावरण है. इसे देखते हुए जशपुर में चाय की खेती के लिए यहां चाय बागान की स्थापना की गयी है. खास बात ये है कि देश के अन्य हिस्सों में चाय की खेती के लिए कीटनाशक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल होता है लेकिन गोधन न्याय योजना की वजह से जशपुर के चाय बागानों में वर्मी कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल किया जाता है. जो चाय के स्वाद को बढ़ाता ही है साथ ही सेहत का भी खयाल रखता है.
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ग्रीन टी किया जा रहा है तैयार
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने जशपुर जिले के बालाछापर में 45 लाख रूपए की लागत से चाय प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किया है. यहां पर उत्पादन कार्य भी प्रारंभ कर दिया गया है और इस प्रसंस्करण केंद्र से सामान्य चाय और ग्रीन टी तैयार किया जा रहा है. बालाछापर में वन विभाग के पर्यावरण रोपणी परिसर में चाय प्रसंस्करण यूनिट की स्थापना की गई है. इस यूनिट में चाय के हरे पत्ते के प्रोसेसिंग की क्षमता 300 किलोग्राम प्रतिदिन की है.
पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है चाय बागान
जशपुर जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी और जंगल के बीच स्थित सारूडीह चाय बागान एक पर्यटन स्थल के रूप में भी लोकप्रिय होता जा रहा है. यहां रोजाना बड़ी संख्या में लोग चाय बागान देखने पहुंचते है. 18 एकड़ का यह बागान वन विभाग के मार्गदर्शन में महिला समूह द्वारा संचालित किया जा रहा है. सारूडीह के सात ही सोगड़ा आश्रम में भी चाय की खेती के कारण जशपुर जिले को एक नई पहचान और पर्यटकों को घूमने का एक नया स्थान मिला है.