Jashpur: आदिवासी शिक्षक ने कुड़ुख भाषा में बनाई देश की पहली फिल्म, विदेश में भी होगी रिलीज
Chhattisgarh: यह फिल्म आज सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है. साथ ही इसे दूसरे देशों में भी रिलीज करने की तैयारी चल रही है. जानिये स्थानीय कलाकारों से बनी इस फिल्म की कहानी.
Chhattisgarh News: एक शिक्षक अगर बेहतर समाज का निर्माण कर सकता है तो वो समाज को राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का हौसला भी रखता है. जशपुर के सरकारी स्कूल के शिक्षक ने ऐसा ही कर दिखाया है. उन्होने अपने समाज और अपनी परंपरागत भाषा में एक फिल्म बना डाली जो 21 अक्टूबर को अंबिकापुर (Ambikapur) समेत कई सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. इसके साथ ही कुछ दिनों में ये फिल्म दूसरे देशों में भी रिलीज होने वाली है.
फिल्म में महिलाओं का दर्द दर्शाया
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के पत्थलगांव के सरकारी शिक्षक ईनुश कुजूर आदिवासी उरांव समाज से आते हैं. ईनुश ने वो कर दिखाया जो किसी दूसरे सरकारी शिक्षक के लिए बड़ी बात हो सकती है. दरअसल ईनुश कुजूर ने अपनी समाज की महिलाओं के दर्द को समझते हुए, इस फिल्म का निर्देशन किया.
इस फिल्म में स्थानीय कलाकार के साथ स्थानीय लोकेशन का भरपूर उपयोग किया गया. करीब 6 महीने और कम लागत में बनी फिल्म का उरांव भाषा में 'जहन जिनगी गही' नाम है. इसका हिंदी भाषा में 'जहर जिंदगी का' नाम दिया गया है. उरांव समाज की कुड़ुख भाषा में फिल्माई गई ये फिल्म देश ही नहीं पूरे विश्व में पहली फिल्म है.
दो अंतरजातीय प्रेमी युगल की कहानी
फिल्म के डायरेक्टर ईनुश कुजूर का कहना है कि शिक्षक का दायित्व निभाना, किसी को शिक्षा देना दोनों समान बातें हैं. शिक्षा बच्चों को देना हो या समाज को, दोनों में ही नवनिर्माण छिपा हुआ होता है. उन्होंने कहा कि मुझे गर्व है कि बच्चों के साथ समाज को नई दिशा देने का पहल करने की कोशिश किया हूं. फिल्म की कहानी का सार बताते हुए उन्होंने कहा कि फिल्म दो अंतरजातीय प्रेमी युगल के ऊपर आधारित है. हर मानव समाज में विभिन्न प्रकार की कमियां पाई जाती है. वैसे ही इस फिल्म के माध्यम से एक अंतरजातीय प्रेमी जोड़े के प्रेम संबंध के बाद जो समस्याएं उपजती है, उसे दिखाया गया है.
कोविड काल में लड़के की मृत्यु हो जाने के बाद विधवा के रूप में कम उम्र की लड़की को संघर्ष का जीवन जीना पड़ता है. साथ ही उन्होंने कहा कि समाज मे मॉब लिंचिंग या अनापेक्षित हत्याएं या अपराध कैसे होते है, उन्हें चित्रित करने का प्रयास किया है.
फिल्म की कहानी डायरेक्टर की जुबानी
फिल्म के डायरेक्टर ईनुश कुजूर और फिल्म के मीडिया सलाहकार संतोष चौधरी ने बताया कि फिल्म में उरांव समाज की एक लड़की अंतर जातीय विवाह कर लेती है. जिसमें पति-पत्नी कमाने खाने के लिए मायानगरी मुंबई चले जाते हैं, लेकिन कोविड के समय उन्हें छत्तीसगढ़ के जशपुर जिला स्थित अपने घर जाना पड़ता है. घर लौटते समय पति की सड़क हादसे में मौत हो जाती है और जब गर्भवती पत्नी घर आती है तो उसको परिवार और समाज वाले बहिष्कृत कर देते हैं. तभी वो बच्ची को जन्म देती है और किसी की मदद ना लेना पड़े इसलिए वो गांव के जमींदार के यहां काम करती है.
ईनुश कुजू आगे बताते हैं कि रजमींदार की बुरी नजर विधवा पर पड़ती है. एक दिन उससे शारीरिक संबंध बनाने के प्रयास में जब वो असफल हो जाता है, तो उसे चोर-चोर कह कर घर से दौड़ाता है. गांव वाले भी उसे चोर समझने लगते हैं. गांव वाले भी उसे दौड़ाना शुरू कर देते हैं. तभी मॉब लिंचिंग के इस मामले में एक भिखारी उसे लोगों की मार से बचाता है और फिर उसका खुद का घर बनाकर वो चला जाता है. कुल मिलाकर फिल्म में उरांव समाज की महिला के स्वाभिमान, संस्कार और त्याग को दिखाया गया है. वहीं इस फिल्म को लेकर डायरेक्टर और अन्य लोगों को ये उम्मीद है कि इस फिल्म से उरांव समाज को एक नई दिशा मिलेगी.
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