Chhattisgarh: झीरम घाटी जांच रिपोर्ट से मचा सियासी बवाल, जांच आयोग ने राज्यपाल को सौंपे दस्तावेज
झीरम कांड पर 8 वर्ष बाद परदा उठने का जा रहा है. शनिवार शाम यानी 6 नवंबर को झीरम घाटी जांच आयोग के सचिव संतोष कुमार तिवारी ने 4 हजार 184 पेज की रिपोर्ट को राज्यपाल को सौंप दी है.
छत्तीसगढ़ के इतिहास में काले सियासी से लिखे गए झीरम कांड पर 8 वर्ष बाद परदा उठने का जा रहा है. शनिवार शाम यानी 6 नवंबर को झीरम घाटी जांच आयोग के सचिव संतोष कुमार तिवारी ने 4 हजार 184 पेज की रिपोर्ट को राज्यपाल को सौंप दी है. इसके बाद राज्य में रिपोर्ट को लेकर हड़कंप मच गया है. कांग्रेस ने राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपने पर आपत्ति जताई है.
25 मई 2013 में घटी थी घटना
दरअसल, 25 मई 2013 को दक्षिण छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर सुकमा जिले के झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सलियों ने हमला किया और कांग्रेस के तत्कालिक अध्यक्ष नंदकुमार पटेल समेत काग्रेस के शीर्ष नेताओं और सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई थीं. इसकी जांच के लिए 28 मई 2013 को जांच आयोग गठन किया गया. इस आयोग का गठन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा के अध्यक्षता में गठित की गई. प्रशांत कुमार मिश्रा वर्तमान में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश है. इसके साथ केंद्र सरकार ने इस मामले को एनआईए से भी जांच करवाई गई. इसपर कांग्रेस ने कई बार सवाल उठाए लेकिन इसकी रिपोर्ट आजतक सार्वजनिक नहीं हुई है. वहीं 2018 में जब राज्य की सत्ता में कांग्रेस आई तब सरकार ने एसआईटी गठन किया. लेकिन एसआईटी भी पुराने जांच रिपोर्ट एनआईए से लेने में सफल नहीं हुई तब कांग्रेस ने केन्द्र सरकार आरोप लगाया गया था.
8 साल के बाद जांच आयोग ने तैयार की रिपोर्ट
अब लंबे अंतराल के बाद जब झीरम जांच आयोग ने रिपोर्ट तैयार कर ली है तो छत्तीसगढ़ में सियासत एक बार फिर गरमा गई है. झीरम के अधूरे सच को सार्वजनिक करने से पहले नेताओं की जुबानी जंग देखने को मिल रही हैं. सबसे पहले बात करते है मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तो उनका मानना है की ये रिपोर्ट आधी अधूरी है. ये गुमराह करने वाली बात है, उन्होने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया है की केन्द्र सरकार आधी अधूरी जांच से षड्यंत्रकारियों बचाना चाह रही है.
सीएम ने कहा- राज्यपाल को सौंपी गई आधी अधूरी रिपोर्ट
जांच आयोग के इतने लंबे समय के बाद रिपोर्ट आने पर सीएम ने कहा कि आधी अधूरी रिपोर्ट को राज्यपाल को सौंपी गई है. केन्द्र सरकार किस तथ्य को छिपाना चाहती हैं, गवाही के लिए कुछ लोगों को बुलाया गया, कुछ ने गवाही नहीं दी है,वे षड्यंत्र पर जांच क्यों नहीं कर रहे? क्यों नाम पूछ पूछ कर मारा गया, क्या ये राजनीतिक षड्यंत्र हैं? हमने आयोग को कई बिंदुओं पर पत्र लिखा है कि नंद कुमार को सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं दी गई? महेंद्र कर्मा को सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं दी गई? कांग्रेस की ओर से लगातार सवाल उठाते रहे लेकिन केंद्र सरकार जवाब ही नहीं दे रही है, ये गुमराह करने वाली बात है, वे किसे बचाना चाह रहे सवाल इस बात का है. केंद्र सरकार राज्य सरकार को जांच करने क्यों नहीं दे रही, ये लोग षड्यंत्रकारियों को बचा रहे. यह लोग जानते हैं कि षड्यंत्र के पीछे कौन है लेकिन सच को छुपाया जा रहा है.
बीजेपी ने कहा- राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपना कानूनन सही
सीएम भूपेश बघेल के बयान पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि, राज्यपाल को रिपोर्ट सौपना संवैधानिक रूप गलत नहीं है. सरकार के पास तो बड़े बड़े कानूनविद है. कौनसे संविधान की किस धारा के अनुच्छेद के अंतर्गत राज्यपाल को रिपोर्ट सौपना गलत है हमे बता दें. आगे उन्होने कांग्रेस सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि, ये कांग्रेस डर क्यों रही है. आयोग पर संदेह करना देश के कानून व्यवस्था पर संदेह करना हैं. संदेह कर कर कांग्रेस सरकार शर्मनाक काम कर रही है. ऐसा काम तो कोई हिटलर भी नहीं करता. यें सरकार हिटलरशाही सरकार हो गई है.
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