Chhattisgarh News : बदहाली के आंसू बहा रहा झीरम गांव, घटना के 10 साल बाद भी पोखर का पानी पीने को मजबूर है ग्रामीण....
झीरम घाटी में नक्सलियों ने देश के सबसे बड़े राजनीतिक हमले को अंजाम दिया थाजिसमें 32 लोग मारे गए थेघटना के 10 साल बाद भी झीरम गांव की तस्वीर नहीं बदली है,यहां के ग्रामीण पोखर का पानी पीने को मजबूरहैं..
![Chhattisgarh News : बदहाली के आंसू बहा रहा झीरम गांव, घटना के 10 साल बाद भी पोखर का पानी पीने को मजबूर है ग्रामीण.... Jhiram villager's facing water problem, Hand pump bad for years ANN Chhattisgarh News : बदहाली के आंसू बहा रहा झीरम गांव, घटना के 10 साल बाद भी पोखर का पानी पीने को मजबूर है ग्रामीण....](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/05/24/ce7dbeb1c7113237f593ff8b1b593ec51684917708508658_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Bastar News: देश के सबसे बड़े नक्सली हमलों में से एक झीरम घाटी घटना को 10 साल बीत चुके हैं लेकिन इस हमले में शहीद कांग्रेसियों और जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए करोड़ों रुपए की लागत से शहीद स्मारक बनाए गए हैं. लेकिन घटनास्थल से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित झीरम गांव की कुछ पारा की तस्वीर आज भी जस के तस बनी हुई है. कांग्रेस सरकार आने के बाद पूरे गांव की तस्वीर बदलने की बड़े-बड़े दावे तो किए गए लेकिन यहां के ग्रामीण स्वच्छ पेयजल के अभाव में आज भी पोखर (चुआ) का पानी पीने को मजबूर हैं. आलम यह है कि झीरम गांव के 200 से ज्यादा लोग इसी पोखर के पानी पर ही निर्भर हैं और इस पानी को पीकर बीमार पड़ रहे हैं. गांव में हैंडपंप तो है लेकिन सालों से उससे लाल पानी आ रहा है. लेकिन इसे सुधारने की कोई जिम्मेदार अधिकारी या नेता सुध नहीं ले रहा है. यही वजह है कि यहां के ग्रामीणों को पोखर में 1 दिन में केवल दो गुंडी ही पानी मिल पा रहा है. इस गांव में सिर्फ पानी ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार की पीएम आवास योजना , उज्जवला योजना के साथ-साथ कई ऐसे जनकल्याणकारी योजनाए है जिनका लाभ यहाँ के ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है. और आज भी झीरम गांव का कई इलाका अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है.
200 से ज्यादा ग्रामीण पोखर का पानी पीने को है मजबूर
25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ के दरभा झीरम घाटी में नक्सलियों ने एक बड़े हमले को अंजाम दिया था. जिसमें 32 लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल और बस्तर टाइगर कहे जाने वाले महेंद्र कर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल और कई दिग्गज नेता के साथ जवान और आम आदमी भी मारे गए थे. घटना के 10 साल बीत चुके हैं और इन 10 सालों में सुरक्षा के लिहाज से झीरम घटनास्थल के 200 मीटर की दूरी पर सीआरपीएफ कैंप स्थापित किया गया है. इसके अलावा टहाकावाड़ा में भी सीआरपीएफ कैंप स्थापित किया गया है. सड़क के एक तरफ सोलर लाइट लगाए गए हैं. नेशनल हाईवे की भी तस्वीर बदल दी गई है. लेकिन इस घटनास्थल से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित झीरम गांव के कुछ पारा है जहां के ग्रामीण बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. एबीपी न्यूज़ ने झीरम गांव की ग्राउंड रिपोर्टिंग की, इस दौरान गांव के एक पारा जो कि नेशनल हाईवे से लगा हुआ है. यहां के लगभग 130 घर के 200 से ज्यादा लोग पोखर का पानी पीने को मजबूर हैं. जिसे ग्रामीण (चुआ )कहते हैं. यहां के स्थानीय ग्रामीण महादेव ने बताया कि गांव में हैंडपंप है वह भी मंत्री कवासी लखमा के आने के ठीक 4 दिन पहले ही ठीक कराया गया है. यह सालो से बंद पड़ा हुआ था. और ठीक होने के बाद भी इससे लाल पानी निकलता है. फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने की वजह से ग्रामीण इस पानी को नहीं पी पाते हैं. इसलिए उन्हें पोखर पर ही निर्भर रहना पड़ता है.
गर्मी के दिनों में एक परिवार को एक से दो गुंडी ही पानी मिल पाता है. आलम यह है कि कई बार पोखर पूरी तरह से सूखा रहता है. महादेव ने बताया कि इस पारा से ही कुछ दूरी पर झीरम गांव के दूसरे पारा में नल जल योजना के तहत नल तो लगाया गया है. लेकिन वहां भी पानी नहीं आता है, एक मोहल्ले में हैंडपंप जरूर है लेकिन काफी दूर होने की वजह से वहां कोई पानी लेने नहीं जाता है, यही वजह है कि आसपास के 130 घर के ग्रामीण पोखर का ही पानी पीते हैं, और बीमार भी पड़ते हैं, लेकिन मजबूरन उन्हें अपनी प्यास बुझाने के लिए यही पानी पीना पड़ता है. यही नहीं गांव में केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना पीएम आवास का लाभ भी ग्रामीणों को नहीं मिल पाया है. इस वजह से झोपड़ी नुमा मकान में वह रहने को मजबूर हैं. कई ग्रामीणों के राशन कार्ड तक नहीं बने हैं. ऐसे में उन्हें पीडीएस प्रणाली के तहत सरकारी चावल भी नहीं मिल पाता है. इसके अलावा कई ऐसी योजनाएं जिसका लाभ पाने के लिए ग्रामीण तरस रहे है. लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. हैंडपंप को लेकर भी कई बार शिकायत करने के बावजूद इसे सुधारा नहीं गया है. लाल पानी आने की वजह से ग्रामीण इस पानी को नहीं पी पा रहे हैं.
शासन की योजनाओं का नहीं मिल पा रहा लाभ
दरअसल झीरम गांव को सुकमा जिले में शामिल किया गया है और यह सुकमा जिले के सबसे आखरी छोर पर मौजूद है. इस वजह से यहाँ प्रशासन की टीम कभी कभार ही पहुंचती है हालांकि झीरम गांव में घटना के बाद स्कूल बनाया गया है और झीरम गांव को पंचायत बनाने की तैयारी भी शुरू करने की बात कही जा रही है. लेकिन झीरम घटना के 10 साल बीत चुके हैं और इन ग्रामीणों को आज भी सरकार की कई ऐसे योजनाए है जिसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. और यह कब तक मिलेगा इसको लेकर भी कोई अधिकारी कुछ जवाब नही दे रहा है. कुल मिलाकर शहीदों की याद में करोड़ों रुपए के शहीद स्मारक तो बना दिए गए हैं, लेकिन जिस गांव के नाम से झीरम घाटी हमला जाना जाता है उस गांव की तस्वीर आज भी जस के तस बनी हुई है और कोई भी यहाँ के ग्रामीणों का सुध लेने वाला नहीं है, लिहाजा गर्मी के दिनों में यहां के ग्रामीण पोखर का पानी पीकर अपने और अपने बच्चों की प्यास बुझाने को मजबूर रहे हैं.
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