Chhattisgarh Video Viral: छत्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री और कोंटा विधानसभा के विधायक कवासी लखमा हमेशा से ही अपने राजनीतिक बयानबाजी को लेकर सुर्खियों में बने रहते हैं, साथ ही राज्य में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों और मंडई मेले में भी हमेशा मांदर की थाप पर नृत्य करते हुए भी नजर आते हैं. वहीं एक बार फिर मंत्री कवासी लखमा अपने विधानसभा क्षेत्र में हुए सुकमा मंडई मेले में खुद को कोड़े मारते दिख रहे हैं. मंत्री की खुद को कोड़े मारते यह वीडियो सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रही है.
बताया जा रहा है कि 12 साल में एक बार सुकमा शहर में इस मेले का आयोजन हो रहा रहा है और इस मेले का शुभारंभ मंत्री कवासी लखमा ने किया और यहां पर देवी के छत्र और डोली को नगर भ्रमण कराने के दौरान कवासी लखमा खुद अपने आपको कोड़े मारते हुए नजर आए और स्थानीय मोरी बाजा में मोर पंख लेकर नृत्य भी किया, कवासी लखमा ने कहा कि अपने क्षेत्र में होने वाले हर मंडई मेले में वे शामिल होते हैं और यहां देवी की पूजा पाठ करने के साथ मोरी बाजा में स्थानीय सिरहा पुजारी के साथ नृत्य भी करते हैं.
हर मंडई मेले में होते हैं शामिल
आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि अपने क्षेत्र के देवी-देवताओं के प्रति उनकी काफी गहरी आस्था जुड़ी हुई है. इस वजह से जिन जगहों पर मंडई मेले आयोजित होते हैं. उन जगहों में बकायदा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं और यहां होने वाले पूजा-पाठ में शामिल भी होते हैं.
सुकमा शहर में भी करीब 12 साल के बाद सुकमा राज मंडई मेले का आयोजन किया जा रहा है और इस मेले में 400 गांव के देवी देवताओं के छत्र और डोली पहुंचे हुए हैं, 4 दिन तक होने वाले मंडई मेले में हर दिन अलग-अलग रस्में निभाई जाती है और सभी रस्मो की अपनी खासियत होती है.
मंत्री लखमा ने कहा कि वह भी मेले में शामिल हुए और मेले का शुभारंभ किया जिसके बाद देवी के छत्र और प्रतिमा को नगर भ्रमण कराने के दौरान उनके ऊपर खुद देवी सवार हुईं, जिसके बाद वे अपने आप को खुले बदन में कोड़े मारते रहे और स्थानीय मोरी बाजा में नृत्य भी किया, कवासी लखमा ने कहा कि क्षेत्रवासियों की चिटमिट्टिन माता, रामारामिन माता और मसूरिया माता के प्रति काफी गहरी आस्था जुड़ी हुई है इसलिए मेले के चारों दिन विशेष पूजा पाठ की जाती है, और वह भी इस पूजा पाठ में शामिल होते हैं और बकायदा उनके ऊपर देवी आने के बाद नृत्य करने के साथ खुद को कोड़े भी मारते हैं यह परंपरा पिछले कई सालों से चली आ रही है.
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