Surajpur News: छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में स्थित प्रसिद्ध खोपा धाम में सोमवार को हैरान करने वाला नजारा सामने आया. यहां जब एक श्रद्धालु की मन्नत पूरी हुई तो उसने एक पिकअप वाहन में 1051 नारियल का चढ़ावा चढ़ाया. जब नारियल से भरी गाड़ी धाम के पास पहुंची तो वहां मौजूद लोग दंग रह गए. बता दें कि जिले के भैयाथान ब्लॉक अंतर्गत ग्राम खोपा में एक ऐसा धाम है जहां देवता कि नहीं, बल्कि दानव की पूजा की जाती है. खोपा धाम से लोगों की गहरी आस्था है. यहां मांगी हर मन्नत पूरी होती है, और मन्नत पूरी होने के बाद बकरे की बलि दी जाती है.
सोमवार की सुबह खोपा धाम में एक व्यक्ति पिकअप में भरकर काफी ज्यादा मात्रा में नारियल लाया. ये नजारा देखकर पहले तो लोगों को लगा कि शायद ये व्यक्ति कोई दुकानदार है, जो यहां नारियल बेचने के लिए आया है, लेकिन जब एक-एक करके नारियल फोड़ा जाने लगा, तब जाकर उन्हें यकीन हुआ कि किसी भक्त ने मनोकामना पूरी होने पर एक गाड़ी भरकर नारियल चढ़ाया है। इस श्रद्धालु का नाम विजयलाल मरकाम है, जो बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर ब्लॉक अंतर्गत रजखेता गांव का रहने वाला है.
विजयलाल मरकाम ने बताया कि असुरों ने उसकी इच्छा पूरी की है, इसलिए वो 1 हजार 51 नारियल यहां लेकर पहुंचा है। उसने कहा कि इस धाम में उसकी बहुत आस्था है और पहले भी कई मनोकामनाएं इस धाम ने पूरी की हैं. खोपा धाम में रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए किसी देवी-देवता नहीं बल्कि दानवों की पूजा-अर्चना करते हैं.
रोचक है खोपा धाम की कहानी
बता दें कि सूरजपुर जिले के भैयाथान ब्लॉक अंतर्गत खोपा गांव है. यहां खोपा धाम में देवी-देवताओं की जगह दानव की पूजा होती है. खोपा नाम के गांव में धाम होने के कारण यह खोपा धाम के नाम से प्रसिद्ध है. यहां छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के लोग भी पूजा करने आते हैं। नारियल और सुपाड़ी चढ़ाकर पहले लोग पूजा कर मन्नत मांगते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां चढ़ाया हुआ प्रसाद भी घर नहीं लाया जाता. मन्नत पूरी होने के बाद मुर्गे-बकरों की बलि देने के साथ ही शराब भी चढ़ाया जाता है. पहले यहां महिलाओं के पूजा करने पर पाबंदी थी, लेकिन अब महिलाएं भी पूजा करने आती हैं.
बैगा द्वारा होती है राक्षस की पूजा
खोपा धाम में पूजा कराने वाले बैगा ने बताया कि दानव की पूजा करने के पीछे की मान्यता है कि खोपा गांव के पास से गुजरे रेण नदी में बकासुर नाम का राक्षस रहता था. बकासुर गांव के ही एक बैगा से प्रसन्न हुआ और वहां रहने लगा, तब से यहां दानव की पूजा होने लगी. यही कारण है कि यहां पंडित या पुजारी नहीं बल्कि बैगा ही पूजा कराते हैं. खोपा धाम में पिछले कई दशक से दूर-दराज से श्रद्धालु पूजा करने आते हैं, इसके बावजूद यहां मंदिर नहीं बनाया गया. इस संबंध में यहां के लोगों का कहना है कि बकासुर ने उसे किसी मंदिर या चारदीवारी में बंद करने के लिए नहीं कहा था. उसने खुद को स्वतंत्र खुले आसमान के नीचे ही स्थापित करने की बात कही थी. यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मन्नत के लिए लाल कपड़ा बांधते हैं. कोपा धाम के बैगा भूत-प्रेत और बुरे साए से बचाने का दावा भी करते हैं. यहां भूत-प्रेत बाधा से छुटकारा पाने के लिए लंबी लाइन लगी रहती है.