Chhattisgarh Bhujia Janjati: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का गरियाबंद (Gariyaband) विशेष पिछड़ी जनजातियों का जिला है. तीन नदियों के संगम राजिम को छोड़ दिया जाए तो जिले का बाकी हिस्सा में जनजातियों के अनोखे रंग दिखेंगे. इस जिले में केंद्र सरकार द्वारा घोषित विशेष पिछड़ी जनजाति कमार रहते हैं. इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा घोषित विशेष पिछड़ी जनजाति भुंजिया का प्रमुख रहवास क्षेत्र है. लेकिन आज बात करेंगे सिर्फ भुंजिया जनजाति (Bhunjia Janjati) के बार में उनके कल्चर के बारे में आखिर क्यों भुंजिया जनजाति भुंजिया जनजाति की परंपरा अनोखी है.


कैसे हुई भुंजिया जनजाति की उत्पत्ति
भुंजिया जनजाति की उत्पत्ति और उनकी पंपराएं दिलचस्प है. इन कहानियों को समझने के लिए आपको धैर्य रखना पड़ेगा. थोड़ा समय देना पड़ेगा और एक छोटी तो नहीं लेकिन एक छोटी किताब जैसी कहानी पढ़िए कुछ नया जानने को मिलेगा. भुंजिया जनजाति को राज्य सरकार ने विशेष पिछड़ी जनजाति घोषित किया है. इस लिए संरक्षण की कोशिश की जा रही है. पहले बात करते है भुंजिया जनजाति की उत्पत्ति की तो एक प्रमुख किवदंती सामने आई.


कैसे नाम पड़ा भुंजिया
दरअसल, भुंजिया जनजाति भगवान शिव और माता पार्वती से अपनी उत्पत्ति मानते हैं. इसके पीछे एक कहानी सुनाई जाती है और इनकी मान्यता भी है. जब भगवान शिव और माता पार्वती इस क्षेत्र में आए थे. एक झोपड़ी में रहते थे जहां तब एक पुतला और पुतली भी झोपड़ी में रखे गए थे. भगवान शिव जब प्रसाद ग्रहण करते है तो चिलम की आग से उस झोपड़ी में आग लग जाती है और पुतला पुतली जल जाते हैं. जलना को स्थानीय बोलचाल में भुंजना कहा जाता है. पुतली के जलने से ही इस जनजाति का नाम भुंजिया पड़ा है. हालाकि वास्तविक आधार कह पाना अभी संशय का विषय है.


कितने हैं समुदाय
भुंजिया जनजाति दो समुदायों में बंटा हुआ है. इसमें एक चौखुटिया और दूसरा चिंदा भूंजिया. इन दोनों समुदायों की उत्पत्ति के पीछे यह कहा जाता है कि चिन्दा भुजिया में गोंड और हलबा का संकरण है. इसे ऐसे समझ सकते है पुरुष और महिला अलग-अलग जाति के है. दूसरा चौखुटिया में गोड़ और बिंझवार, मराठी हलबी का प्रभाव दिखता है. ओरिजन कांसेप्ट में देखा जाए तो एक वर्ग बैगानी क्षेत्र और गोंड दूसरा हल्बा की तरह दिखता है. कद काठी जीवन शैली हालबा से मैच खाते दिखते है. 


कैसे रहते हैं
ये जनजाति समूह के रूप में रहना पसंद करते है. 30 -40 लोगों का छोटा- छोटा समूह रहता है. लेकिन उस समूह में कई अलग अलग टुकड़ों में बटे हुए है. घांस पुस या खदर के प्रयोग से घर बनाते है. जब नवदम्पत्ति आए या उनकी जनसंख्या बढ़ जाने की स्थति में नए घर बनाते है. भुंजिया जनजाति के घर बनाने के पीछे एक और अच्छी और अनोखी कहानी है.


क्यों रखते हैं उपवास
घर बनाने के कार्य प्रारंभ करने में भी इनकी एक परंपरा है. मान्यता है कि पुरुष उपवास के दौरान ही लकड़ी काटने का काम करते. महुआ के लड़की का विशेष रूप से घर बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है. इस दौरान इनके प्राकृतिक प्रेम भी दिखाई पड़ता है. पेड़ काटने से पहले उपवास रहते है और वहां चावल के दाने अर्पण करते है और कहते है मैं पेड़ काट रहा हूं. इसके लिए मुझे क्षमा कर दीजिए. मुझे जरूर है इस लिए पेड़ काट रहा हूं.


कैसे बनाते हैं घर
घर बनाने के लिए दो चीजों का प्रयोग करते है. एक तो लकड़ियों का और दूसरा बांस का करते है. घर बनाने के लिए कार्य विभाजन होता है. लकड़ी काटने का कार्य पुरुष करते है. घर खड़ा करने का काम और अधिकार केवल पुरषों को दिया जाता है. भुंजिया जनजाति में घर बनाने के दौरान आवश्यक रूप से एक बात का ध्यान दिया जाता है की रसोई का कमरा घर के अंदर नहीं बनाते है. इनके घर एक से तीन कमरे के होते है. इसमें माई कुटिया यानी मुख्य कमरा होता और यहां बांगर मिट्टी और पितर को विशेष रूप से रखते है. इसके अलावा डूमा देव और बुधा राजा की बांगर माटी के साथ स्थापना करते है. 


लाल बंगला क्या है  
दरअसल, भुंजिया जनजाति अपने घर के बाहर एक रसोई घर बनाते है. इसे जनजाति लाल बगला के नाम से पुकारते है. लाला बंगला सुनकर आप भी चकित हो गया होंगे कि आखिर रसोई घर को किस आधार पर लाला बंगला कहा जाता है. चलिए आपको यह भी समझते हुए आगे चलते है. रसोई घर का बाहरी हिस्सा गाढ़ा लाल होता है. इसे स्थानीय बोलचाल में बगलाल कहा जाता है. इसी से ही लाल बंगला का शब्द आया है. रसोई घर को अंदर गेरू और बाहर को लाल रंग से पुताई करते है. 


कैसे होती है लाल बंगला की सुरक्षा
भुंजिया जनजाति सबसे रोचक उनका लाल बंगला होता है. इस लिए इसकी सुरक्षा के लिए भगवान राम, सीता माता और लक्षण जी को इस क्षेत्र में आना पड़ा. इसके पीछे की एक और रोचक किदवंती है. भुंजिया जनजाति की मान्यता है कि त्रेता युग से इसकी कहानी जुड़ती है. भगवान राम, सीता और लक्षण जी 14 वर्ष के वनवास पर निकले हुए थे. तब हुआ ये कि दंडकारण्य क्षेत्र के पंचवटी से सीता माता का अपहरण हो जाता है. ये दंडकारण्य छत्तीसगढ़ का वहीं बस्तर है. जब रावण ब्राम्हण के रूप में भिक्षा मांगने आता है तब सीता माता लक्षण रेखा से बाहर आकर भिक्षा देती है. तब रावण सीता माता का अपहरण करता है. जब राम भगवान और लक्षण जी भुंजिया जनजाति के पास पहुंचते है तो अपनी कहानी बताते हैं. तब जनजातियों के मन में डर पैदा हो जाता हैं कि हम रोजाना जंगल में काम करने जाते हैं. ऐसे में हमारी घर की महिलाएं अकेली रहती हैं. इसी भय के बाद लक्ष्मण जी से भुंजिया जनजाति की महिलाए प्रार्थना करतें हैं. कहती हैं कि हमारे लिए भी रेखा खींच दीजिए. इस दौरान लक्ष्मण जी में मांग करते है. आप एक नया घर बनाइए कुटिया की तरह इस कुटिया में तीन लक्ष्मण रेखा खींच देते हूं. उस दिन से प्रथा चलती आ रही है.


क्यों रहते हैं संवेदनशील
लाल बंगला में कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकते. केवल परिवार के सदस्य और उसी गोत्र जाति के लोग लाल बंगला में जा सकते हैं. इसमें एक रूढ़िवादी परंपरा भी है जो केवल आदिवासियों में बल्कि देश कई हिस्सों में प्रचलित है. एक मान्यता यह भी है कि जब किसी महिला का महावारी चल रही होगी. ऐसे वक्त में महिला रसोई घर में प्रवेश नहीं कर सकती और कोई महिला बच्चे को जन्म देने के बाद अगले ढाई महीने तक रसोई घर में प्रवेश नहीं कर सकती. अगर गलती से कोई प्रतिबंधित लोग लाल बंगला का स्पर्स या प्रवेश करते है तो लाल बंगले को तोड़ दिया जाता है. इसके बाद एक नई जगह पर अपना रसोई घर या लाला बंगला स्थापित करेंगे.


लाल बंगला का कैसे होता है निर्माण
वर्तमान समय में घर बनाने के लिए चार स्तंभ प्रमुख होते है. लेकिन भुंजिया जनजाति 11 सतंभ से घर बनाते है. इनके घरों के दीवार में 8 से 10 फीट ऊंची होती है जो मिट्टी और धान के भूंसा को मिलाकर कर बनाया जाता है. ऊपर की छत बनाने के लिए पाटी- छर्रा के अनुसार तैयार किया जाता है. पाटी मतलब लकड़ी और छर्रा मतलब बांस होता है. इसको बिछाने के बाद घांस पुस से छत को ढक दिया जाता है. 


क्या करती हैं महिलाएं
घर के बाहर का काम पूरा होने के बाद घर के छबाई पुताई का काम महिलाएं करती है. इनकी एक और रूढ़िवादी परंपरा है. इसके अनुसार महिलाएं लकड़ी को लांघ नहीं सकती है. इस लिए घर के दरवाजे में चौखट के नीचे के हिस्से को जमीन में दबा दिया जाता है. इसके पीछे वजह ये बताई जाती है कि,भुंजिया जनजाति में महिलाओं को लकड़ी से क्रॉस करना प्रतिबंधित है. ये अपने लाल बंगले में कोई खिड़की नहीं बनाते है केवल एक प्रवेश द्वार ही बनाए जाते है. 


सिंदुरा और बिंदी का नहीं है उपयोग
भुंजिया जनजाति की एक और अनोखी प्रतिबंध है. इसके अनुसार इस जनजाति की महिला सिंदूर और बिंदी नहीं लगाते है. भुंजिया जनजाति में कांड विवाह प्रचलित है. जिसमें जब बच्ची की उम्र 12 साल हो जाती है. तब धनुष के तीर से विवाह कराया जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि जीवन अच्छा बेहतर हो जाता है और विवाह पांच दिनों का होता है. इनमें फुफेरे विवाह किया जा सकता है. विवाह के दूसरे दिन वर उपवास रखता है. भुंजिया जनजाति में मेंहदी, बिंदी और सिंदूर लगाना पूर्णतः प्रतिबंधित है.


क्या है प्रतिबंध
भुंजिया जनजाति में सफेद वस्त्र का पहनावा होता है. महिलाएं पेटीकोट और ब्लाउज का प्रयोग नहीं करती है, केवल साड़ी पहनती है. इस जनजाति में नाक छिदवाना प्रतिबंधित है. लेकिन कान छिदवाने की परंपरा महिला और पुरुष दोनों में है. इनकी परंपरा है कि छह वर्ष के भीतर किसी भी स्थिति में कान छिदवाया जाता है. इसके अलावा गोदना की परंपरा भी होता है. बिना गोदना के महिलाओं का विवाह नहीं होता है. माना जाता है कि माता पिता के यहां बेटी गोदना बनवाती है. इसके पीछे वजह ये बताई गई है कि जब बेटी को ससुराल में माता पिता की याद आई तो गोदना को देखकर मुस्कुराती है. 


क्या है मृतक संस्कार की परंपरा
भुंजिया जनजाति में मृतक संस्कार भी इनका अनोखा होता है. भुंजिया कभी शव को जलाते नही है.मृतक के शव को दफनाते है. इसमें भी एक परंपरा है. शव को सफेद कपड़े के साथ लपेट दिया जाता है और शव के गर्दन के नीचे तकिया लगा देते है. तकिया लगाने के बाद 7 बाद धान और टांगिया(लकड़ी काटने का हथियार) फेंकने की परंपरा होती है. इसी तरह महिला देहांत होने पर खाने पीने के बर्तन के साथ हल का नीचे वाले हिस्से का लोहा रखा जाता है. उनका मानना है की शव जलाने पर आत्म तड़पेगी. इस लिए कहते है मिट्टी में शव मिल जाते है. 


क्या है एक विशेष प्रथा
इसका मतलब ये है कि जब बच्ची को पहली बार महावारी की शुरुआत होती है. उस समय एक विशेष किस्म की प्रथा की जाती है इसे इंटोला कहते है. जब तक इंटोला की प्रथा नहीं होगी तब तक बच्ची लाल बंगले में प्रवेश नहीं कर सकती. सात दिन के लिए एक विशेष पूजा पाठ किया जाता है. सातवीं दिन बच्ची को एक नई हांडी दिया जाता है. बच्ची इस हांडी को लेकर तालाब चली जाती है. वहीं पर बच्ची आग लगाकर हांडी में पानी गरम करती है. पानी गरम करने के बाद अपने कपड़े को हांडी में डाल देती है. इसके बाद फिर से हांडी में पानी गरम किया जाता है और उसी गरम पानी से बच्ची स्नान करती है. इसके बाद बच्ची उस हांडी को लेकर अग्नि के सात चक्कर लगाएगी. इसके बाद बिना पीछे मुड़े मटकी फोड़ देगी. इसके बाद घर आती है. तब बच्ची को कुसुम तेल और हल्दी का लेपन लगाया जाता है. उसके बाद पानी मांगने का परंपरा होती है. तांबे की अंगूठी पकड़ाई जाति है. पत्ते के दोने से पानी दिया जाता है जिसे बच्चे ग्रहण करती है दोने को घर की छत में फेंक देती है. तब जाके बच्ची को लाल बंगले में प्रवेश दिया जाता है.


क्यों हैं बेहतर
भुंजिया जनजाति के दिनचर्या और इनकी मान्यताओं काफी रोचक है. भुंजिया जनजाति की वर्तमान स्थिति पर जनजातीय मामलों के जानकारी मुरली मनोहर देवांगन से हमने बातचित है. उन्होंने बताया कि, भुंजिया जनजाति बहुत ज्यादा पिछड़े नहीं है. ये अपने ही समूह में संकोचित तो जरूर है लेकिन महिलाओं की स्थति बहुत अच्छी है. 7 दिन महिला को किचन में काम न करने देना एक अच्छी बात है. क्योंकि महावारी के दौरान महिला की स्थति दुर्बल होती है. मानसिक रूप से थकी होती है. ऐसे अधिक श्रम उनके लिए घातक हो सकता है. उस दौरान पुरुष लोग खाना बनाते है. इसके अलावा प्रसूति के बाद महिलाओं को ढाई महीने तक किचन में जाने नहीं दिया जाता है. आराम करने दिया जाता है. इसके साथ बच्चे को माता की विशेष केयर की जरूरत पड़ती है. अपने आप में एक बेहतर बात है.


क्या है निंदा
भुंजिया जनजाति में बांकि समाज की तुलना में स्त्री और पुरुष के बीच बराबरी दिखाई देती है. आर्थिक स्थिति की बात करें तो केवल कंद मूल पर आधारित नहीं है अब ये कृषि कर रहे है. वनोपज का संग्रहण कर रहे है और अपने घर को स्वच्छ रखते हैं. इतना है बाहर का खाना उस रसोई घर में बैठ कर खाना नहीं खाते. संयुक्त परिवार में रहते है भुंजिया जानती.जब घर में नवदप्ति आने पर नया लाल बगला का निर्माण किया जाता है. लेकिन घर अलग नहीं किया जाता है.


क्या है लिंगा अनुपात
साक्षरता और जनसंख्या वृद्धि दर की बात करें तो भुंजिया जनजाति की साक्षरता दर 60 प्रतिशत है जो की अच्छी मानी जाती है. लिंगानुपात काफी बेहतर स्थिति पर है. 1000 पुरुषो के सापेक्ष्य 1029 महिला दिखाई पड़ती है. ये एक संतुष्टिदायक आंकड़ा है. जनसंख्या में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2001 की जनगणना में इनकी जनसंख्या 9 हजार थी और 2011 की जनगणना में इनकी जनसंख्या बढ़कर 10 हजार 600 के आस पास आ गई है.


क्या है विस्तार
गरियाबंद जिल के 138 गांव में भुंजिया जनजाति के लोग रहते है. इन गावों में तकरीबन 2 हजार 130 भुंजिया जनजाति परिवार निवासरत है. सर्वाधिक बहुलता जिले के गरियाबंद और मैनपुर ब्लॉक में दिखता है. विस्तार के रूप में देखा जाए तो बागबाहरा से छुरा ,फिंगेश्वर और धमतरी जिले तक है. मुरली मनोहर देवांगन ने आगे कहा कि,जितना दिखाया गया है उतने पिछड़े नहीं है. सरकारी योजनाएं सुनिश्चित नहीं होने और क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य होने के कारण भले ही पिछड़े हुए दिखते है लेकिन पिछड़े हुए नहीं है.


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