दिल्ली ही नहीं देश के इस हिस्से में भी है राष्ट्रपति भवन, जानिए क्या है डॉ. राजेंद्र प्रसाद से इसका कनेक्शन
दिल्ली ही नहीं देश के छत्तीसगढ़ राज्य में भी एक राष्ट्रपति भवन है. देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से इसका खास कनेक्शन है. छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में ये राष्ट्रपति भवन स्थित है.
ये बात तो सभी को पता ही होगी कि देश की राजधानी दिल्ली में राष्ट्रपति भवन है, लेकिन दिल्ली के अलावा देश के एक और हिस्से में राष्ट्रपति भवन है इस बात की जानकारी हर किसी को नहीं होगी. जी हां, छत्तीसगढ़ में भी एक राष्ट्रपति भवन है. 69 साल पुराने इस राष्ट्रपति भवन मे हर साल 3 दिसंबर को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद का जन्मदिन मनाया जाता है. ये राष्ट्रपति भवन क्यों बना? यहां पर देश के पहले राष्ट्रपति का जन्मदिन क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे कई वास्तविक तथ्य हैं.
ये राष्ट्रपति भवन सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले के पंडोनगर गांव मे स्थित है. इस राष्ट्रपति भवन में दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के तरह ना ही 340 कमरे हैं और ना ही इसकी सुरक्षा के लिए सैकड़ों सुरक्षाबलों की जरूरत पड़ती है. इस राष्ट्रपति भवन में एक कमरा और एक बरामदे के साथ एक छोटा सा आंगन है. जिसकी देखरेख गांव के ही पंडो जनजाति के लोग करते हैं जिन्हें राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र भी कहा जाता है.
देश का ये दूसरा राष्ट्रपति भवन आखिर कब अस्तित्व में आया इस सवाल का जवाब भी जानना जरूरी है. दरअसल, देश के पहले राष्ट्रपति 22 नवंबर 1952 के दिन सूरजपुर के पंडोनगर आए थे और उस समय जंगलों से घिरे इस गांव मे पहुंचकर वो एक रात यहां रुके थे. उनके साथ उस दौर की सरगुजा रियासत के महाराजा रामनुजशरण सिंहदेव भी थे. गांव के जिस कच्चे और घास-फूस की छप्पर से बने घर मे राजेंद्र प्रसाद रुके थे, उस घर को बाद मे गांव के लोगों ने कुछ अधिकारियों की मदद से राष्ट्रपति भवन का नाम दे दिया. तब से लेकर आज 69 वर्षों से इस भवन को राष्ट्रपति भवन कहा जाता है. गांव के बड़े-बुजुर्गों के मुताबिक राष्ट्रपति यहां जब आए थे तब उन्होंने दो पौधे लगाए थे. जिनमें एक खैर का था और एक इमली था. जिसमें खैर का पेड़ आज भी है, लेकिन इमली का पेड़ सूख कर गिर गया है. इसके अलावा एक तस्वीर जो इस राष्ट्रपति भवन के भीतर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने रामानुजशरण सिंहदेव के साथ खिंचाई थी. वो तस्वीर आज भी उनके आने की याद के रूप मे इस भवन मे संजो कर रखी गई है.
दत्तक पुत्र कहे जाते हैं पंडो जनजाति के लोग
आजादी के समय देश के आदिवासी वर्ग के लोगों की स्थिति काफी खराब थी. इन आदिवासी वर्ग मे पंडो जनजाति के लोग काफी तंग हाल जीवन जी रहे थे. समाज से हटकर वो जंगल मे रहना पसंद करते थे. पंडो जनजाति के लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए राजेंद्र प्रसाद यहां आए थे. उस समय इस समाज को उन्होंने गोद लिया था. जिसके बाद से पंडो विशेष संरक्षित जनजाति के रूप मे मानी जाती है. इस आदिवासी समाज को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जता है. पंडो समाज के लोगों का दावा है कि उस समय पूर्व राष्ट्रपति ने इन लोगों को समाज में मुख्य धारा से जोड़ने और जंगल की जगह बस्तियों में रहने के लिए 10-10 एकड़ जमीन भी दी थी.
त्योहार की तरह मनाया जाता है जन्मदिवस
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार राज्य के सिवान जिले मे हुआ था. चूंकि छत्तीसगढ़ के पंडोनगर मे डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पंडो जनजाति के लोगों को गोद लिया था और उनको समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया था. इसीलिए पंडो समाज के लोग 3 दिसंबर को राजेंद्र प्रसाद के जन्मदिवस को त्योहार की तरह मनाते हैं. इस दिन राष्ट्रपति भवन का रंग-रोगन किया जाता है. उसके साथ ही इस दिन जिला, प्रदेश और देश मे जहां-जहां पंडो जनजाति के लोग हैं उस दिन यहां पर इकट्ठा होते हैं. फिर किसी बड़े और भव्य आयोजन की तरह डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्मदिन मनाया जाता है.
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