Korba: इंतजार में दशक बीते लेकिन अब तक नहीं मिली नौकरी, युवाओं ने कोयला खदानों को बंद करने की दी चेतावनी
कोरबा: कोरबा में रोजगार और पुनर्वास की मांग को लेकर पिछले 3 महीने से 12 गांव के युवा धरने पर बैठे है. इनका कहना है कि कई दशक के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिली है. ये सभी अब धरने की चेतावनी दे रहे हैं.
Korba News: छत्तीसगढ़ के ऊर्जाधानी कोरबा जिले में रोजगार और पुनर्वास की मांग को लेकर पिछले 3 महीने से 12 गांव के युवा धरने पर बैठे है. अब लंबे समय से आंदोलन कर रहे युवाओं की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है. अब चंदा मांग कर इनका गुजारा भत्ता चल रहा है. ऐसे में युवाओं ने चेतावनी दी है कि मार्च में क्षेत्र के कोयला खदानों को बंद किया जाएगा.
बड़ी संख्या में युवाओं को नहीं मिली नौकरी
दरअसल कोरबा जिले के कुसमुंडा क्षेत्र में एसईसीएल ने कोयला खदान के लिए 1978-79 के मध्य 12 गांव के जमीनों का अर्जन किया गया था. इसके बदले ग्रामीणों को मुआवजा, बसाहट और रोजगार दिया जाना था. मुआवजा तो मिला लेकिन बड़ी संख्या में युवाओं को नौकरी नहीं मिली है. इसके चलते युवा 1 नवंबर 2021 से नौकरी के लिए एसईसीएल के कुसमुंडा मुख्यालय के बाहर धरने पर बैठे हैं. एबीपी न्यूज़ ने युवाओं से बातचीत की है.
कोयला खदान के लिए 1978-79 में भूमि अधिग्रहण हुआ
कोसमुंडा क्षेत्र के 12 गांव की जमीन 1978-79 में कॉल बेरिंग एक्ट से जमीन का अर्जन किया गया. इसके बाद मुआवजा दिया गया और पुनर्वास मिलना था. लेकिन अभी तक नहीं मिला है. गांव के अतिरिक्त जमीन को 1983 में फिर मध्य प्रदेश पुनर्वास नीति के तहत अर्जन किया गया. इसमें कुल 12 गांव में 2810 खाताधारक में से कुल 2049 लोगों को नौकरी दी गई. बाकी बचे लोग अबतक नौकरी के लिए कई दशक से इंतजार में हैं. जरहा जेल गांव के निवासी दामोदम श्याम ने कहा कि 1993 से नामांक जमा किया गया है. लेकिन अबतक नौकरी नहीं मिली है. नौकरी के लिए 2014 में आंदोलन किया गया था तब राज्य शासन के द्वारा डिप्टी कलेक्टर को आदेशित किया गया था. तब 187 खाताधारक को पात्र किया गया था.
नौकरी के इंतजार में 15 से 30 साल बीत गए
कुसमुंडा क्षेत्र के भूविस्थापीत ग्रामीणों को नौकरी के लिए 18 से 19 साल की उम्र में नामांक आवेदन दाखिल किया गया था. अब उनकी उम्र 30 से 35 साल हो गई है. कई युवाओं की शादी हो गई लेकिन नौकरी किसी को नहीं मिली.
बच्चों को पढ़ाने के लिए कर रहे मजदूरी
30 वर्षीय दामोदर श्याम जरहा जेल के रहने वाले हैं. 1980 में जमीन अर्जन के बाद घर छोड़ना पड़ा. इसके बाद धामोदार श्याम का 11 लोगों का परिवार गेवरा बस्ती में जाकर बस गया. पिता ने मेहनत से घर बनाया है. इस बड़े परिवार को चलाने का बोझ दामोदर श्याम के कंधे पर है. खुद की पढ़ाई को बीच में छोड़ना पड़ा. अब बच्चों को पढ़ाने के लिए मजदूरी करते हैं.
नौकरी नहीं मिलने से भुखमरी की स्थिति
कोयला खदान के लिए जमीन देने वाले 12 गांव में भैसमाखार गांव भी शामिल हैं. इसी गांव के 31 साल के आदिवासी अनिल बिंझवार का परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. इनका 2 एकड़ जमीन पहले अर्जन किया गया था. इसके बाद जब गांव के चारों तरफ से कोयला निकाल लिया गया तो अनिल के घर को भी तोड़कर कोयला निकाला गया. अनिल बिंझवार ने बताया कि जमीन का मुआवजा नहीं मिल रहा था. हमने घर नहीं छोड़ा था लेकिन 2009 में पुलिस की मौजूदगी में घर तोड़ दिया गया. 2010 में नौकरी के लिए नामांक हुआ लेकिन अबतक नौकरी नहीं मिली है. पिछले साल मां बीमार हो गई थी तब दूसरे जगह की जमीन को गिरवी रखकर इलाज करना पड़ा. अब घर में भुखमरी की स्थति है.
कोयला उत्खनन बंद करने और धरने की दी चेतावनी
जरहा जेल गांव के रहने वाले सोहरिक लाल ने बताया कि जब जमीन अधिग्रहण हुआ तब पिताजी अनपढ़ थे तो नौकरी नहीं मिली. मैंने पढ़ाई करने के बाद 1995 में नामांक किया लेकिन नौकरी नहीं मिली. पिछले 3 महीने से धरने पर घर चलाने के लिए लोगों से चावल सब्जी-चंदा मांग रहे हैं. इससे अच्छा जेल में रहते तो कम से कम खाना और इलाज तो मिलता. सोहरीक लाल ने आगे चेतावनी के लहजे में कहा कि मार्च महीने में क्षेत्र के खदानों को बंद किया जाएगा. फरवरी के बाद कोयला उत्खनन पूरी तरह से क्षेत्र में बंद करने जा रहे हैं. अब पूरा परिवार धरने पर बैठेगा.
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