Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कोरिया (Korea) जिला मुख्यालय बैकुंठपुर (Baikunthpur) में संचालित शासकीय हैचरी अब सिर्फ नाम का हैचरी बन कर रह गया है. यहां होने वाले प्रजनन और विक्रय में सालों से कोई वृद्धि नहीं हुई. सूत्रों की मानें तो उक्त शासकीय हैचरी में पिछले 5-10 वर्षों के दौरान हुए क्रय विक्रय के रिकार्ड और खर्चों की जांच की जाए, तो कई अनियमितताएं उजागर हो सकती हैं. यही कारण है कि अब उक्त शासकीय कुटकुट हैचरी अपनी पहचान खोता जा रहा है. 


कभी यह हैचरी जिले में ही नहीं बल्कि, संभाग में बेहतर उत्पादन और पक्षियों के विक्रय और वितरण के लिए पहचाना जाता था. इस हैचरी की स्थापना को लेकर तत्कालीन मंत्री दिवंगत डॉ रामचन्द्र सिंहदेव का प्रमुख योगदान रहा है. कोरिया जिले में सभी वर्गों का विकास हो. पूर्व वित्त मंत्री डॉ सिंहदेव हमेशा इसकी चिंता करते रहे. कड़कनाथ मुर्गे को लेकर जिस तरह की सोच पूर्व मंत्री दिवंगत डॉ रामचंद्र सिंहदेव की थी, वह जिले में पूरा नहीं हो सकी. अविभाजित मध्य प्रदेश में मंत्री रहने के दौरान डॉ. रामचंद्र सिंहदेव कड़कनाथ प्रजाति का मुर्गा बैकुंठपुर लाए थे. 


दुर्लभ किस्म का होता है कड़कनाथ मुर्गा
ये मुर्गा स्थानीय हैचरी में रखा गया था. आज भी कड़कनाथ मुर्गा स्थानीय हैचरी में है, लेकिन इस दुर्लभ किस्म के मुर्गे को लेकर जिले की पहचान नहीं हो पाई है. राज्य के दंतेवाडा में बड़े स्तर पर कड़कनाथ मुर्गे का उत्पादन होता है. जानकारी के अनुसार वहां कई फार्मों को मिलाकर करीब चार लाख उत्पादन होता है. डॉ रामचंद्र सिंहदेव मध्य प्रदेश के मंत्री रहने के दौरान कड़कनाथ मुर्गे की विशेषता देखकर इसको यहां लाए थे, जिससे कि यहां के लोगों को रोजगार और जिले को एक नई पहचान मिल सके.


इसके पेटेंट का भी प्रयास किया जा रहा प्रयास
इस दिशा में प्रशासनिक पहल की कमी के चलते कड़कनाथ मुर्गे की पहचान आज स्थानीय हैचरी तक ही सीमित रह गई है. लोगों का रुझान इस प्रजाति के मुर्गे को लेकर न तो खाने में है और ना ही इसके प्रचनन में. जिले में इससे लोगों को पूरी तरह से व्यवसायिक लाभ न पहुंचने की वजह विभागीय लापरवाही भी है.  मध्य प्रदेश सरकार का मानना है कि कड़कनाथ मुर्गे की उत्पति मध्य प्रदेश के झाबुआ में है.


औषधी गुणों के लिए भी मशहूर है कड़कनाथ मुर्गा
वहीं छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि कड़कनाथ मुर्गे का संरक्षण और प्राकृतिक रूप से प्रजनन दंतेवाडा में होता है. इसके लिए दंतेवाडा जिला प्रशासन द्वारा आनन फानन में एक निजी कंपनी की मदद से दावा पेश किए जाने की भी जानकारी है. साथ ही जीआई टैग के लिए छत्तीसगढ़ सरकार चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय में दस्तक भी दे चुकी है. जानकारी के अनुसार कड़कनाथ मुर्गा अपने विशेष स्वाद और औषधीय उपयोगिता के लिए मशहूर है. 


कड़कनाथ मुर्गे का मांस के साथ खून भी काला होता है, लेकिन इसमें विटामिन भरा हुआ है. रक्त की कई बीमारियों में इसका उपयोग होता है. साथ ही यह नर्वस डिसऑर्डर को भी ठीक करने में सक्षम है. इसके चलते देश ही नहीं विदेशों में भी इसकी मांग ज्यादा है.


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