Koriya News: कोरिया जिले के वनांचल इलाकों में रहने वालों का जीवन रेशमी धागों से सुनहरा होता जा रहा है. टसर कृमि पालन योजना ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका का महत्वपूर्ण माध्यम बनकर उभरी है.  रेशम केन्द्रों में समूहों को कोसा उत्पादन के कार्य से जोड़ा गया है. रेशम प्रभाग की तरफ से योजना चलाई जा रही है. प्रथम फसल में 10 लाख से अधिक कोसे का उत्पादन हुआ है. वनांचलों में निवास करने वालों को रोजगार से जोड़कर सामाजिक और आर्थिक स्थिति मजबूत की जा रही है. वर्तमान में तीन प्रजातियों शहतूत (मलबरी), टसर (डाबा), नैसर्गिक रैली कोसा कीटपालन का कार्य किया जा रहा है. रेशम केन्द्रों में बहुत से समूह रेशम कीटपालन का कार्य कर रहें हैं.


ग्रामीण क्षेत्रों में रेशम उद्योग ने खोले रोजगार के द्वार 


विकासखंड बैकुंठपुर के ग्राम उरूमदुगा में रेशम कृमिपालन समूह काम करता है. कुमार सिंह रेशम कृमिपालन समूह समिति के सदस्य हैं. उन्होंने बताया कि रेशम विभाग से प्रशिक्षण लेकर रेशम कीटपालन का कार्य कर रहा हूं. इस वर्ष एक हजार डिम्ब समूह पालन कर 95 हजार 200 नग कोसा फल प्राप्त किया है. कोसा की अनुमानित राशि 2 लाख 9 हजार 440 रुपए है. उन्होंने बताया कि द्वितीय फसल में भी एक हजार डिम्ब समूह पालन का कार्य अभी प्रगति में है. रेशम विभाग के सहायक संचालक ने बताया कि वनखंडों और शासकीय टसर केन्द्रों में कीटपालन योजना के माध्यम से डाबा ककून का उत्पादन किया जा रहा है.


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9 हजार 178 रोजगार मानव दिवस का हुआ है सृजन


वर्ष 2022-23 में 65 हजार स्वस्थ डिम्ब समूह के लक्ष्य की तुलना में अब तक प्रथम और द्वितीय फसल में कुल 47 हजार 322 स्वस्थ डिम्ब का पालन किया गया है. उन्होंने बताया कि प्रथम फसल से 10 लाख कोसे का उत्पादन हुआ है और द्वितीय फसल का उत्पादन प्रगति में है. इस वित्तीय वर्ष में टसर, खाद्य, पौध संधारण एवं कृमिपालन कार्य से 9 हजार 178 रोजगार मानव दिवस का सृजन हुआ है. 147 हितग्राहियों को योजना का फायदा पहुंचाया गया है. मनरेगा योजनान्तर्गत रेशम कीटपालन में उपयोगी अर्जुन, साजा पौधरोपण कार्य, नर्सरी कार्य, ग्रीन फेसिंग कार्य, कंटूर निर्माण के जरिए हितग्राहियों को रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है.


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