(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Janmashtami 2023: सरगुजा रियासत में 12 दिन रहती थी कृष्ण जन्मोत्सव की धूम, जानें- प्राचीन राधा-वल्लभ मंदिर का इतिहास
Janmashtami 2023 Date: छत्तीसगढ़ के सरगुजा (Surguja) रियासत के राजा ने अपनी मां के लिए राधा-कृष्ण मंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर में 12 दिनों तक कृष्ण जन्मोत्सव का जश्न मनाया जाता था.
Janmashtami 2023 Puja: देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) को लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी है. राधा-कृष्ण मंदिरों (Radha-Krishna Mandir) को सजाया जा रहा है. वहीं गुरुवार को जन्माष्टमी के अवसर पर जगह-जगह पर मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है. इस धार्मिक पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर पहले सरगुजा (Surguja) रियासत में भव्य आयोजन किया जाता था, जो 12 दिन तक चलता था. लेकिन अब ऐसा कुछ नजर नहीं आता है. दरअसल, सरगुजा पैलेस (Surguja Palace) के 87 वर्ष पुराने राधा-वल्लभ मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी से लेकर छठी और बारह दिन पूरे होने पर बरही तक भव्य जन्मोत्सव मनाया जाता था. ढोल-नगाड़े, भजन-कीर्तन के साथ सरगुजिहा संस्कृति से जुड़ा प्रमुख वाद्य यंत्र लोहाटी की आवाज कई दिनों तक गूंजती थी.
जन्माष्टमी का यह रियासतकालीन वैभव अब नहीं हो पाता पर परंपरा के निवर्हन के लिए अम्बिकापुर नगर के एकमात्र कृष्ण मंदिर में जन्मोत्सव मनाने बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं. एक दिन पहले से ही चहल-पहल शुरू हो जाती है. अक्सर यहां दो दिन तक कृष्ण लल्ला की पालकी झुलाने लोग पहुंचते हैं.
महाराजा ने मां के लिए बनवाया था मंदिर
बता दें कि, तत्कालीन सरगुजा महाराजा रामानुजशरण सिंहदेव ने अपनी माता माय साहब के लिए पैलेस प्रांगण में राधा-वल्लभ मंदिर का निर्माण वर्ष 1931 में कराया था. इसी मंदिर में राजमाता माय साहब भगवती देवी पैलेस की सुख-सुविधा और भौतिक संसाधनों को त्यागकर अंतिम समय में रहने लगी थीं और लगातार जाप कर पूजा-अर्चना किया करती थीं. माय साहब भगवती देवी यहां 108 घड़े में रखे पानी से स्नान करती थीं और अन्न छोड़ फलाहार कर पंचाग्नि में बैठती थीं. माय साहब वेद पुराण में भी इतनी पारंगत थी कि शंकराचार्य स्वामी के गुरु करपात्री महाराज के यहां आगमन पर जब उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने श्लोक बोला तो संस्कृत और वेद पुराण के जानकार करपात्री महाराज भी दंग रह गए थे.
अंतिम समय में मंदिर में रहने लगी थीं राजमाता
बताया जाता है कि यहां के राधा-वल्लभ मंदिर में जन्माष्टमी के अवसर पर आसपास के कई रियासत से ब्राम्हण और पुरोहित आते थे. यहां संस्कृत विद्यालय भी संचालित होता था. सरगुजा रियासत के इतिहासकार गोविंद प्रसाद शर्मा बताते हैं कि अंतिम समय में माय साहब भगवती देवी पैलेस को छोड़कर मंदिर में ही रहने लगी थीं. तब यहां 6 से 12 दिन तक कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव मनाया जाता था. भजन कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता था. ढोल नगाड़े, लोहाटी से मंदिर गुंजायमान होता था. खटोला लगता था जिसमें कृष्ण लल्ला को झुलाने लोग पहुंचते थे.
आम लोगों के लिए खुला रहता है मंदिर
सरगुजा रियासत के जानकार गोविंद प्रसाद शर्मा के मुताबिक पैलेस के दरबार में शामिल होने से पहले महाराजा रामानुजशरण सिंहदेव राधा-वल्लभ मंदिर पहुंचते थे और कृष्ण लल्ला का दर्शन कर अपनी माता भगवती देवी का दर्शन करते थे. अब वैसा वैभव कृष्ण जन्माष्टमी में नजर नहीं आता, लेकिन पुराने लोग उस वैभव को याद कर उत्साहित हो जाते हैं. अब यह मंदिर आमजनों के लिए कृष्ण जन्माष्टमी में खुला रहता है और लोग आते हैं. दो दिनों के जन्मोत्सव में हिस्सा लेते हैं.
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