Chhattisgarh: इस शहर में है छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा आम बगीचा, जहां मिलती हैं फल की 800 प्रजातियां
छत्तीसगढ़ के बस्तर में प्रदेश का सबसे बड़ा आम का बगीचा है और यहां आम की 800 से ज्यादा प्रजातियों के फल मिलते हैं. ग्रामीण इसको स्थानीय आम के बाजारों के अलावा फूटकर व्यापारियों को भी बेचते हैं.
Chhattisgarh News: भारत में कुछ दिनों में फलों का राजा आम का सीजन आने वाला है. आम खाने के शौकीनों को बेसब्री से इस फल का इंतजार है. आम का सीजन आते ही छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के आम के बाजारों में दूसरे राज्यों से बड़ी मात्रा में आम बेचने के लिए लाए जाते हैं. छत्तीसगढ़ के बस्तर (Bastar) से ही बड़ी मात्रा में आम पड़ोसी राज्य ओड़िसा और प्रदेश के अन्य जिलों में बिकने के लिए जाता हैं.
दरअसल छत्तीसगढ़ के बस्तर में प्रदेश का सबसे बड़ा आम का बगीचा है और यहां आम की 800 से ज्यादा प्रजातियों के फल मिलते हैं. इनमें 95 फीसदी देसी आम होते हैं. आम के सीजन में आसपास के ग्रामीणों के लिए यह आय का मुख्य स्त्रोत भी है. सीजन में लगभग 200 से ढाई सौ परिवार इस बगीचे में फलने वाले आम पर निर्भर रहते हैं.
200 एकड़ में फैला है आम का बगीचा
जगदलपुर शहर से लगे इंद्रावती नदी तट के किनारे डोंगाघाट गांव में सैकड़ों साल पुराना आम का बगीचा है. यह बगीचा 150 से 200 एकड़ में फैला हुआ है. यहां लगे आम के पेड़ करीब 300 से 400 साल पुराने हैं. आम के सीजन में इन पेड़ों में पत्ते कम और आम ज्यादा दिखते हैं. जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि इस बगीचे में लगभग 800 प्रजातियों के आम मिलते हैं. इनमें 95 फीसदी आम देसी होते हैं. इसके अलावा बैगनपल्ली, तोताफल्ली, कमली ,दशहरी ,सुंदरी और अल्फाजो जैसे कई तरह के आम यहां मौजूद पेड़ों में फलते हैं. डोंगाघाट गांव के आसपास रहने वाले करीब 200 से ढाई सौ परिवार आम के सीजन में इस बगीचे पर ही निर्भर हैं. यहां फलने वाला आम ग्रामीणों के लिए आय का मुख्य स्रोत भी होता है.
डोंगाघाट और आसपास के गांव के ग्रामीण आम तोड़कर स्थानीय आम के बाजारों के अलावा फूटकर व्यापारियों को भी बेचते हैं. साथ ही उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों में भी वो इस आम की बिक्री करते हैं. खास बात यह है कि बस्तर के इस बगीचे के देसी आम की मिठास काफी ज्यादा होती है, इस वजह से सीजन आते ही बस्तर के आम की डिमांड बढ़ जाती है. डोंगाघाट के रहने वाले स्थानीय ग्रामीण कमलू नाग ने बताया कि इस आम के बगीचे में आम तोड़े नही जाते हैं. प्राकृतिक रूप से नीचे गिरने पर ही ग्रामीण इसे उठाकर बेचते हैं. आम के सीजन में यहां हर पेड़ में केवल आम ही आम नजर आता है.
आम के सीजन तक होती अच्छी कमाई
इस आम बगीचे के एक मालिक और पेशे से किसान कमलेश कुंदन बताते हैं कि लगभग 150 से 200 एकड़ में फैला ये आम का बगीचा 60 से 70 किसानों का है. हर साल उन्हें इस बगीचे से आम बेचकर अच्छी खासी आमदनी भी होती है. वहीं आसपास के लगभग 200 से ढाई सौ परिवार आम के सीजन में इसी बगीचे पर निर्भर रहते हैं. उन्हें भी आम के सीजन तक अच्छी कमाई होती है. उन्होंने बताया कि इस बगीचे से आम न तोड़ने की मुख्य वजह यह है कि यहां किसी भी किसान को नहीं मालूम कि आम के पेड़ में कैसे चढ़ा जाता है. इन बगीचे के पेड़ों से आम न तोड़े जाने की वजह से अधिकतर आम सड़कर नीचे गिर जाते हैं.
आम से तैयार किए जा सकते हैं कई खाद्य पदार्थ
कमलेश कुंदन ने बताया कि कई बार कृषि विभाग से इन आम के पेड़ों पर चढ़ने और उन्हें तोड़ने की ट्रेनिंग देने की भी मांग की गई, लेकिन कृषि विभाग ने इस ओर कोई रुचि नहीं दिखाई है. उन्होंने बताया कि बस्तर में प्रदेश का सबसे बड़ा आम बगीचा होने के बावजूद इसको लेकर स्थानीय प्रशासन और सरकार उदासीनता बरत रही है. जिस तरह से बस्तर में लघु वनोपज काजू ,महुआ, कोदो, कुटकी और रागी पर सरकार विशेष ध्यान दे रही है. सरकार इन वनोपज के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाती है. वैसे ही अगर सरकार आम के सीजन में बस्तर के आम पर भी ध्यान दे तो कच्चे आम तोड़कर अचार, आमचूर, मैंगो कैंडी, आम जूस और इससे बनने वाले कई खाद्य पदार्थ बस्तर में ही तैयार किये जा सकते हैं.
उन्होंने कहा कि इससे बस्तर के सैकड़ों ग्रामीणों को रोजगार मिल सकेगा, लेकिन स्थानीय प्रशासन और सरकार के द्वारा इस और अब तक कोई पहल नहीं की गई है. वहीं आम के पेड़ों पर चढ़ने से लेकर तोड़ने के लिए भी नई -नई टेक्नोलॉजी आ गई है. इस टेक्नोलॉजी को लेकर यहां के किसान पूरी तरह से अंजान है. यही वजह है कि आम न तोड़ पाने के चलते हजारों आम पेड़ों में सड़कर नीचे गिरकर खराब हो जाते हैं.
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