Litchi Cultivation: लीची की खेती ने बदली इस गांव की तस्वीर, ऐसा कोई घर नहीं जहां लीची का पौधा नहीं, जानें- पूरी वजह
Litchi Cultivation: छत्तीसगढ़ के जशपुर में लीची की खेती ने एक गांव की तस्वीर बदल दी है. दरअसल, जिले में एक ऐसा गांव है जहां ऐसा कोई घर नहीं है जहां लीची की पौधे नहीं हो.
Jashpur Litchi Cultivation: छत्तीसगढ़(Chhattisgarh) के जशपुर(Jaspur) में लीची की खेती ने एक गांव की तस्वीर बदल दी है. दरअसल, जिले में एक ऐसा गांव है जहां ऐसा कोई घर नहीं है जहां लीची की पौधे नहीं हो. लीची की खेती ने गांव के लोगों कें जीवन में बहार लाया है. वर्तमान में इस गांव में निवास करने वाला हर परिवार लीची की खेती कर हर साल लाखों रुपए आमदनी कर रहा है. यहीं नहीं जशपुर की लीची बाहरी प्रदेशों को भी बेची जाती है.
दूसरे प्रदेशों में होती है सप्लाई
जशपुर जिले के बगीचा विकासखंड मुख्यालय से लगभग 7 किलोमीटर दूर पर झिंकी नाम का एक गांव है. इस गांव की आबादी लगभग एक हजार और 200 के करीब मकान है. यहां निवास करने वाले लोग लीची की खेती कर खूब लाभ कमा रहे है. इस गांव में हर घर में 40 से 50 लीची के पौधे है. किसी किसी घर में ज्यादा भी है. यहां के किसान लीची की खेती कर हर साल लाखों रुपए आमदनी करते है. इस गांव की लीची ज्यादातर अम्बिकापुर के ठेकेदार खरीदते है और दूसरे राज्यों में सप्लाई करते है. इसके अलावा छत्तीसगढ़ कोरबा, बिलासपुर और अन्य जिले से लोग झिंकी गांव में ही लीची खरीदने पहुंचते है.
हर सीजन में 40 से 50 हजार कमाई
झिंकी गांव के किसान भारत गुप्ता बताते है कि उनके पास 60 से 70 पौधें हैं और गांव के हर घर में कुछ न कुछ संख्या में पौधे जरूर है. लीची का फल गर्मी के मौसम में पककर तैयार हो जाता है. मई से लेकर 10 जून तक ज्यादा फल रहता है. इससे एक सीजन में 40 से 50 हजार रुपए की कमाई आराम से हो जाती है. गौरतलब है कि इस गांव में लीची के पेड़ों से प्रतिवर्ष हजारों क्विंटल लीची का उत्पादन होता है. लीची की खेती से यहाँ के ग्रामीणों की आर्थिक स्तिथि में भी काफी सुधार आया है.
दो प्रकार की लीची का होता है उत्पादन
वैसे तो लीची की कई प्रजातियां होती हैं. मगर झिंकी गाँव में आमतौर पर सिर्फ दो प्रकार की प्रजातियों की खेती होती है अरली और माल्टा. गांव के लीची उत्पादन करने वाले किसान पूनमचंद गुप्ता बताते है कि गांव में लीची की कई प्रजातियों का उत्पादन करने के प्रयास किये गए लेकिन इन दोनों प्रजातियों की खेती में ही सफलता मिली. बताया जाता है कि इन दोनों प्रजातियों की खेती के लिए इस क्षेत्र का वातावरण अनुकूल है.
एक इंसान की मेहनत ने बदल दी गांव की तस्वीर
लीची की खेती के बारे में जब ग्रामीणों से चर्चा की गई तो ग्रामीणों ने बताया कि आज से लगभग चालीस साल पहले गांव के आनंद साहू ने कलकत्ता से लीची के तीन पौधे लाकर अपनी बाड़ी में लगाया. लेकिन उस समय आवागमन एवं संचार के साधन नहीं होने की वजह से लीची का व्यापार ज्यादा नहीं था. इसके बड़ा जैसे ही संचार क्रान्ति आई. वैसे ही विगत 12 से 15 सालों में लीची के व्यापार में एक बड़ी क्रान्ति आई. जिसके बाद यहां के लोगों ने लीची की खेती बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया.
हर घर में चार पहिया वाहन
लीची की खेती के बाद से ग्रामीणों के जीवन स्तर में भी काफी परिवर्तन आया है. आज झिंकी गांव में लीची उत्पादन करने वाले हर किसान के घर में चार पहिया वाहन एवं लक्जरी कारें खड़ी हैं. लीची की खेती के बाद से इनके जीवन स्तर में बदलाव को देखते हुए आसपास के अन्य गांवों के ग्रामीण भी अब इनका अनुशरण करते हुए लीची की खेती को प्राथमिकता देते हुए बड़े पैमाने पर लीची की खेती शुरू कर चुके हैं.
सरकारी मदद का इंतजार
झिंकी के लीची उत्पादन करने वाले किसानों ने बताया की गांव में कई किसानो की भूमि लीची की खेती के अनुकूल है. लेकिन बाउंड्रीवाल एवं सिंचाई सुविधाओं की कमी की वजह से कई किसान आज भी लीची की खेती नहीं कर पा रहे है. शासन की तरफ से यदि इन किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध हो जाए. तो कई और किसान लीची की खेती कर पाएंगे. साथ ही और बड़े पैमाने पर लीची की खेती शुरू हो सकती है.
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