Chhattisgarh News: सरगुजा लोकसभा आजादी के बाद 1952 में अस्तित्व में आई. इस लोकसभा में तीन जिले की 8 विधानसभा शामिल है. अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सरगुजा लोकसभा के लिए 17 बार आम चुनाव हो चुके हैं. जिसमें 9 बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव जीता है. जबकि 8 बार बीजेपी और जनता पार्टी ने अपना परचम लहराया है, लेकिन छत्तीसगढ़ बनने के बाद से हुए सभी चार आम चुनाव में बीजेपी के अलग-अलग प्रत्याशी ने इस सीट पर जीत हासिल की है. 


छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिसमें उत्तरी छत्तीसगढ़ की सरगुजा लोकसभा सीट भी संसदीय चुनाव में काफी अहम स्थान रखती है. ऐसे में अब तक 17 लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि रही सरगुजा लोकसभा का राजनीतिक इतिहास जानना जरूरी है. इस लोकसभा में सरगुजा, सूरजपुर और बलरामपुर जिले की सभी आठ विधानसभा शामिल है. जिसमें सरगुजा जिले की अंबिकापुर, लुंड्रा और सीतापुर विधानसभा है. बलरामपुर जिले की सामरी और रामानुजगंज लोकसभा के साथ सूरजपुर की प्रेम नगर, भटगांव और प्रतापपुर विधानसभा शामिल है. 


छग बनने के बाद बीजेपी का परचम


सरगुजा लोकसभा में अब तक 17 बार आम चुनाव हुए हैं और 2024 में 18वीं बार चुनाव होने हैं. इस सीट पर 9 बार कांग्रेस ने और 8 बार बीजेपी ने कब्जा जमाया है. बात करें छत्तीसगढ़ बनने के बाद इस आरक्षित सीट में हुए चार चुनाव की तो चारों बार बीजेपी ने बाजी मारी है. 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नंद कुमार साय सांसद चुने गए.  2009 में मुरारी लाल सिंह, 2014 में कमलभान सिंह और 2019 में हुए 17वीं लोकसभा चुनाव में बीजेपी की रेणुका सिंह चुनाव जीतकर सरगुजा लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. फिलहाल रेणुका सिंह सांसद के साथ भरतपुर सोनहत से विधायक भी हैं. विधायक बनने के पहले रेणुका सिंह केंद्रीय राज्य मंत्री रह चुकी हैं. सरगुजा लोकसभा आदिवासी बहुल इलाका है. 


समस्याओं से जूझता सरगुजा


सरगुजा विधानसभा में आने वाली 8 विधानसभा में 5 अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व है. जबकि परिसीमन के बाद 3 विधानसभा अंबिकापुर, प्रेमनगर और भटगांव सामान्य वर्ग के लिए है. सरगुजा लोकसभा ट्रेन सुविधाओं और एयर कनेक्टिविटी जैसी जरूरी सुविधाओं से अब तक वंचित है. एयर स्ट्रिप और एयरपोर्ट बनने के बाद भी अब तक यहां से हवाई सेवा शुरू नहीं हो सकी हैं. जबकि रेल मार्ग की बात करें. तो यहां से एक सप्ताह में एक दिन दिल्ली और रोजाना रायपुर की ट्रेन के अलावा कोई ऐसी ट्रेन नहीं है. जो इस इलाके को सीधे पड़ोसी राज्यों से जोड़ सके. इतना ही नहीं कई संघर्ष समितियों के आंदोलन के बाद अंतिम स्टेशन अंबिकापुर से ना ही रेनुकूट रेल मार्ग पर सकरात्मक बात आगे बढ़ी है और ना ही बरवाडीह से जोड़ने की तीन दशक पुरानी मांग पर किसी ने नजरें इनायत की है. 


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