Chhattisgarh News: देश के कई राज्यों में लंपी वायरस का प्रकोप देखने को मिल रहा है. वहीं छत्तीसगढ़ में पशुओं के लंपी स्किन डिजीज का अभी तक कोई भी मामला सामने नहीं आया है. हालांकि, राज्य में लंपी स्किन डिजीज की आशंका को देखते हुए पशु चिकित्सा विभाग का मैदानी अमला बीते एक महीने से अलर्ट मोड में है. वह गांवों का निरन्तर निरक्षण कर पशुओं को लंपी वायरस से बचाव के उपाय पशु पालकों को बता रहे हैं.


सरकार ने जारी किया गाइड लाइन
पशुओं में लंपी स्किन डिजीज का मामला देश के राजस्थान, गुजरात सहित अन्य राज्यों में प्रकाश में आते ही छत्तीसगढ़ में पशुओं को इस रोग से बचाने के लिए अगस्त महीने के पहले सप्ताह में ही गाइडलाइन जारी कर विशेष सावधानी बरतने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए थे. छत्तीसगढ़ के 18 जिलों की सीमाएं अन्य राज्यों से जुड़ी हुई है. जहां से बीमार पशुओं के आवागमन की संभावना को देखते हुए सीमावर्ती ग्रामों में चेक पोस्ट लगाकर नियमित चेकिंग में निगरानी रखी जा रही है. इन गांवों में पशु मेला को प्रतिबंधित करने के साथ ही बिचौलियों पर भी निगरानी रखी जा रही है.


क्या है लंपी वायरस और कैसे फैलता है
आपको बता दें कि लंपी स्किन डिजीज गौवंशीय पशुओं में फैलने वाला विषाणुजनित संक्रामक रोग है. इस रोग का मुख्य वाहक मच्छर, मक्खी एवं किलनी है. इसके माध्यम से स्वस्थ पशुओं में यह संक्रमण फैलता है. रोगग्रस्त पशुओं में 2 से 3 दिन तक मध्यम बुखार का लक्षण मिलता है. इसके बाद प्रभावित पशुओं की चमड़ी में गोल-गोल गांठें उभर आती है. लगातार बुखार होने के कारण पशुओं के खुराक पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. 


पशुओं में दूध का उत्पादन हो सकता है कम
इसके वजह से दुधारू पशुओं में दुग्ध उत्पादन और भारसाधक पशुओं की कार्यक्षमता कम हो जाती है. रोगग्रस्त पशु दो से तीन सप्ताह में स्वस्थ हो जाते है. लेकिन शारिरिक दुर्बलता के कारण दुग्ध उत्पादन कई सप्ताह तक प्रभावित होता है. इस रोग से 10 से 20 प्रतिशत पशु प्रभावित होते हैं. इसमें से 1 से 5 प्रतिशत तक के पशुओं की मृत्यु संभावित है.


सरकार के पास वैक्सीन उपलब्ध
वर्तमान में छत्तीसगढ़ में इस रोग के लक्षण नहीं पाये गये हैं. एहतियात के तौर पर जिलों मे पशु हाट-बाजारों के आयोजन पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी गई है. सुरक्षा के दृष्टिकोण से प्रदेश के सीमावर्ती जिलों के ग्रामों में अस्थायी रूप में चेकपोस्ट बनाया गया है. ताकि पड़ोसी राज्यों से प्रवेश करने वाले पशुओं को रोका जा सके. सीमावर्ती ग्रामों मे पशुओं को इस रोग के संक्रमण से बचाने लिए गोट-पास्क वैक्सीन द्वारा प्रतिबंधात्मक टीकाकरण किया जा रहा है.


यहां करा सकते है पशुओं का इलाज
इस रोग से पशुओं के रोगग्रस्त होने की स्थिति में तत्काल चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त मात्रा में औषधियों की व्यवस्था क्षेत्रीय संस्थाओं मे की गई है. इसके अतिरिक्त विषम परिस्थिति से निपटने के लिये जिलों में पर्याप्त बजट उपलब्ध कराया गया है. ताकि टीका समय पर खरीद कर अन्य ग्रामों के पशुओं मे प्रतिबंधात्मक टीकाकरण का कार्य तेजी से  किया जा सके. पशुओं के आवास में जीवाणु नाशक दवा का छिड़काव और पशुओं में जू-कॉलनीनाशक दवा का छिड़काव हेतु सलाह दी गई है ताकि इस रोग पर नियंत्रण रखा जा सके.



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