Assembly Elections 2023: मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है. इन चुनावों का न सिर्फ लोकसभा चुनाव पर असर पड़ेगा बल्कि बीजेपी और कांग्रेस के छत्रपों का भविष्य भी तय होगा.
भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो सबसे पहला नाम सीएम शिवराज सिंह चौहान का नाम आता है. प्रत्याशियों की चौथी लिस्ट में बुधनी विधानसभा सीट से जगह पाने वाले शिवराज सिंह चौहान के लिए भी यह चुनाव अहम है. शिवराज सिंह चौहान 17 सालों से राज्य के सीएम हैं और वह बीजेपी का बड़ा ओबीसी चेहरा भी हैं. अगर बीजेपी को राज्य में पूर्ण बहुमत मिलता है तो शिवराज सिंह चौहान के भविष्य पर कोई सवालिया निशान नहीं है.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर साल 2018 के विधानसभा चुनाव के परिणाम फिर से दोहराए गए तो बीजेपी हाईकमान कुछ अहम निर्णय ले सकती है. जानकारों का मानना है कि विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान की इमेज ब्रांडिंग पर काफी फोकस किया गया है. सोशल वेलफेयर की योजनाओं के जरिए, शिवराज ने सभी मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश की है.
छत्तीसगढ़ और राजस्थान में क्या होगी बीजेपी की रणनीति?
वहीं छत्तीसगढ़ में रमन सिंह 15 सालों तक सीएम रहे और साल 2018 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की. बीजेपी की कोशिश है कि वह कांग्रेस के पांच साल बनाम रमन सिंह के 15 साल की लड़ाई को जनता तक पहुंचाए और बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंच सके. पार्टी अगर राज्य में बहुत के आंकड़े हासिल करती है तो पार्टी के लिए भी राज्य में फैसला करना मुश्किल नहीं होगा.
इसके अलावा राजस्थान में चुनाव से पहले ही वसुंधरा राजे नाराज बताई जा रहीं थीं लेकिन पार्टी हाईकमान ने उनके साथ बैठकें की और अब माना जा रहा है कि परिस्थितियां सामान्य हो गईं हैं. दरअसल, चुनाव के तारीखों के एलान से पहले राजे पार्टी की यात्राओं में शामिल नहीं हुईं, जिससे यह संदेश गया कि वह कुछ मामलों पर असंतुष्ट हैं. अभी तक वसुंधरा राजे के टिकट का भी एलान नहीं हुआ है. हालांकि माना जा रहा है कि अगली सूची में उनका नाम आ सकता है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जमीनी स्तर पर उनकी पकड़ चुनाव में बीजेपी को लाभ पहुंचा सकती है. अगर ऐसा हुआ तो पार्टी बहुमत के जादुई आंकड़े को भी छू सकती है. इसके अलावा पार्टी यह मान कर चल रही है राज्य में रिवाज नहीं राज बदलेगा. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनाव वसुंधरा के लिए क्या नया लेकर आते हैं.
कांग्रेस के छत्रपों के लिए भी राह आसान नहीं?
दूसरी ओर कांग्रेस में अशोक गहलोत और भूपेश बघेल, क्रमशः राजस्थान और छत्तीसगढ़ के सीएम हैं और उनकी अगुवाई में पांच साल तक सरकार चली. वहीं मध्य प्रदेश में साल 2018 में सरकार बनाने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.
शुरुआत राजस्थान से करें तो यहां हर पांच साल पर राज बदलने का रिवाज रहा है. ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए मुश्किलें आसान नहीं हैं. इसके अलावा पार्टी में कथित तौर पर गुटबाजी का भी उन्हें सामना करना पड़ सकता है. बावजूद इसके कि पार्टी और गहलोत दोनों दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस चुनाव जीतेगी लेकिन जनता के अलावा सीएम को सचिन पायलट को भी साधना होगा. अगर पार्टी चुनाव परिणामों में बहुमत का आकंड़ा पार कर लेती है तो भी यह फैसला आसान नहीं होगा कि भविष्य में किसकी अगुवाई में राजस्थान सरकार चलेगी.
कमलनाथ और भूपेश बघेल का भी भविष्य होगा तय
एमपी में कमलनाथ और कांग्रेस, दोनों के लिए राह फिलहाल आसान दिख रही है. दिग्विजय सिंह ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह सीएम फेस नहीं हैं और न ही रेस में हैं. इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पार्टी छोड़ चुके हैं. ऐसे में अगर एमपी में कांग्रेस को बहुमत मिलता है तो पार्टी के लिए फैसला लेना मुश्किल नहीं होगा. हालांकि बहुमत के मोर्चे पर कमलनाथ को भी जमकर मेहनत करनी होगी. अगर साल 2018 के चुनाव परिणाम दोहराए गए तो फिर से स्थिति पुरानी वाली हो सकती है.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने सीएम भूपेश बघेल को चेहरा बनाया है. हालांकि बघेल को भी अपने सहयोगी और डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव से मुकाबला करना पड़ सकता है. अगर पार्टी को बहुमत मिलता है तब भी भरोसे का नारा लगाकर चल रही पार्टी के लिए फैसला आसान नहीं होगा. ऐसे में छत्तीसगढ़ के चुनाव भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव, दोनों के भविष्य के लिए निर्णायक हो सकते हैं. अगर बघेल की अगुवाई में कांग्रेस 75 पार का नारे को सच कर के दिखाती है तो हाईकमान के लिए फैसला लेना आसान होगा.