Mahashivratri 2024 in Bastar: आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर (Bastar) आदिकाल से ही कई परंपराओं को समेटे हुए हैं. रियासत काल से ही बस्तर का काफी महत्व रहा है. वनवासियों की भगवान के प्रति श्रद्धा और अटूट आस्था की वजह से ही आज भी लोग दशहरा और शिवरात्रि के मौके पर इसे उत्सव की तरह मनाते हैं. कहा जाता है कि बस्तर के आदिवासी शिव के उपासक हैं. भगवान शिव को बस्तर में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. आदिवासी उन्हें यहां बूढ़ादेव, भैरव बाबा, मावली और भोले बाबा के नाम से पुकारते हैं.
सबसे खास बात यह है कि पूरे छत्तीसगढ़ में केवल बस्तर में ही उमा-महेश्वर की एक साथ प्राचीन प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं. पूरे बस्तर संभाग में उमा महेश्वर की सैकड़ों की संख्या में पुरानी शिला (पत्थर) से बनी प्रतिमाएं मौजूद हैं. बताया जाता है कि इन प्रतिमाओं को बस्तर में छठवीं शताब्दी में बनाया गया था. छठवीं शताब्दी से लेकर 1300 ई. तक बस्तर के कई स्थानों पर अनेकों प्रतिमाएं बनाई गईं. साथ ही मंदिरों का निर्माण किया गया. इसमें सबसे ज्यादा मंदिर उमा माहेश्वर के मौजूद हैं.
बस्तर को माना जाता है आदिम संस्कृति का क्षेत्र
उसके बाद भगवान गणेश का मंदिर और प्राचीन प्रतिमाएं बस्तर में सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं. इतिहासकार हेमंत कश्यप ने बताया कि बस्तर को आदिम संस्कृति का क्षेत्र माना जाता है, लेकिन बस्तर की सबसे बड़ी विशेषता है कि प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस जगह को शिव का धाम कहा जाता है. संभाग के सातों जिलों में भगवान उमा माहेश्वर के सबसे ज्यादा मंदिर और प्रतिमाएं हैं.
पुरातत्व विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, पूरे बस्तर संभाग में उमा माहेश्वरी की सैकड़ों प्रतिमाएं जगह-जगह बिखरी पड़ी हैं. उसी नाम से यहां के लोगों के द्वारा पूजा अर्चना की जाती है.
छिंदक नागवंश के राजा शिव के उपासक
हेमंत कश्यप ने बताया कि, बस्तर के संग्रहालय में उमा महेश्वर की नौ अद्भुत प्रतिमाएं रखी हुई हैं. बस्तर में छिन्दक नागवंश के राजाओं का शासन था. छठवीं शताब्दी से लेकर 1300 ई. तक छिंदक नागवंश के राजाओं ने बस्तर के कई स्थानों पर अनेकों उमा माहेश्वरी की प्रतिमाएं बनवाईं और मंदिरों का निर्माण कराया. छिंदक नागवंश के राजा शिव के उपासक थे. उपासक होने के कारण उन्होंने शिव पार्वती, भगवान गणेश, स्कंदमाता कार्तिक की अलग-अलग प्रतिमाएं बनवाईं. छिंदक नागवंश के राजाओं ने अलग-अलग प्रकार के शिवलिंग की भी स्थापना कराई, इसलिए इसकी संख्या ज्यादा मानी गई है.
महाशिवरात्रि पर संभाग के 200 से अधिक जगहों पर लगता है मेला
हेमंत कश्यप ने बताया कि, बस्तरवासी अपने उमा माहेश्वर इष्ट देवताओं को अलग-अलग नाम से पुकार कर पूजा करते हैं. खास बात यह है कि महाशिवरात्रि के मौके पर बस्तर संभाग के 200 से अधिक जगहों पर मेला लगता है और शिवरात्रि के तीन दिनों तक चलता है. हजारों की संख्या में आदिवासी ग्रामीण शिवालयों में पूजा करने पहुंचते हैं.
उन्होंने बताया कि बस्तर में ऐसे बहुत सारे स्थान हैं, जहां उमा माहेश्वरी की आस्था में आदिवासी समर्पित हैं. दंतेवाड़ा, बारसूर, भैरमगढ़, जगदलपुर, मधोता , चपका, नागफनी , कुरुसपाल, नारायणपाल, नेतानार जैसे 100 से भी अधिक गांव हैं, जहां आज भी उमा माहेश्वरी की प्रतिमाएं विराजमान है.
यह प्रतिमाएं सैकड़ों साल पुरानी
हेमंत कश्यप ने बताया कि इसकी आदिवासियों के द्वारा पूजा अर्चना की जाती है. यह प्रतिमाएं सैकड़ों साल पुरानी हैं. ग्रामीण इनकी पूजा करते हैं, इसलिए इन प्राचीन प्रतिमाओं को संग्रालय में नहीं रखा जा रहा है. वहीं उमा माहेश्वरी की उपासना करने वाले राजाराम तोड़ेम ने बताया कि छत्तीसगढ़ में केवल बस्तर में सबसे ज्यादा उमा महेश्वरी की प्रतिमाएं स्थापित हैं. ग्रामीण अंचलों के देवगुड़ियों में शिवलिंग के साथ-साथ उमा माहेश्वरी की सैकड़ों साल पुरानी प्रतिमाएं मिलती हैं.
राजाराम तोड़ेम ने बताया कि यहां की आदिवासी महिलाएं और पुरुष दोनों ही सदियों से शिव और पार्वती की आराधना करते आ रहे हैं, यही वजह है कि महाशिवरात्रि के मौके पर पूरे बस्तर संभाग में अलग ही उत्सव देखने को मिलता है, और यह उत्सव एक नहीं दो नहीं बल्कि पूरे तीन दिनों तक चलता है, जहां हजारों आदिवासी उमा माहेश्वरी की पूजा पाठ करने आते हैं, बस्तर के आदिवासी अपने इष्ट देवता भगवान शिव को बुढ़ादेव के नाम से पुकारते हैं और उनकी पूजा पाठ करते हैं.
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