Mahashivratri: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर को धर्म की नगरी कहा जाता है. बस्तर संभाग में सैकड़ों साल पुराने मंदिर हैं और इन सभी मंदिरों की अलग-अलग कहानी है. खासकर बस्तर के आदिवासी सैकड़ों साल से प्रकृति की उपासक रहे हैं और भगवान राम, शिव और माता सीता के प्रति इनकी श्रद्धा खास है. खासकर बस्तर को भगवान शिव का धाम कहा जाता है. यहां सैकड़ों साल पुराने शिव मंदिर हैं. इन प्राचीन मंदिरों से आदिकाल से ही अलग-अलग कहानी जुड़ी हुई हैं. चित्रकोट का शिवधाम हो या फिर गुप्तेश्वर और देवड़ा का शिवधाम, यह सभी सैकड़ों साल पुराने तीर्थ स्थल हैं.
यहां शिवरात्रि के मौके पर हजारों की संख्या में भक्तों का तांता लगा रहता है. इन्हीं प्रसिद्ध शिवधामों में से एक है तुलार गुफा का शिवधाम, हजारों साल पुराने इस तुलार गुफा में भगवान शिव का लिंग है और खास बात यह है कि इस शिवलिंग में प्राकृति पूरे साल भगवान शिव का जलाभिषेक कराती है. इस वैज्ञानिक युग में भी आज तक कोई नहीं जान पाया कि शिवलिंग के ऊपर जल कहां से आता है, गुफा के अंदर मौजूद शिवलिंग में पत्थरो से पानी रिसकर लिंग के ऊपर गिरता रहता है. जल का रिसाव अलग-अलग मौसम में अलग-अलग तरह से होता है.
पूरे साल शिवलिंग पर रिसता है पानी
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर के घने जंगल और पहाड़ों के बीच मौजूद भगवान शिव का धाम तुलार गुफा का रास्ता अब आम पर्यटकों के लिए पूरी तरह से खुल गया है. दरअसल. नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से यहां श्रद्धालु कम संख्या में पहुंचते थे, लेकिन जैसे-जैसे इन इलाकों में नक्सली बैकफुट पर आये हैं तब से तुलार गुफा में हर साल शिवरात्रि के मौके पर श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है. संभाग के सभी जिलों से श्रद्धालु यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं. इस तुलार गुफा में सैकड़ों साल से शिवलिंग मौजूद है, जिस पर साल के 365 दिन प्राकृतिक रूप से केवल शिवलिंग पर ही पानी रिसता रहता है.
यह कहा जा सकता है कि साल भर प्राकृति भगवान शिव का जलाभिषेक करती रहती है. यह पानी गुफा के अंदर कैसे पहुंचता है और कहां से आता है, अब तक इसकी जानकारी किसी को भी नहीं लगी है. ये पानी का रिसाव सिर्फ शिवलिंग के ऊपर ही होता है. यहां के पुजारी बताते हैं कि हजारों साल पुरानी इस गुफा में पहले जंगली जानवर रहा करते थे. धीरे-धीरे इस इलाके में वन वासियों की आबादी बढ़ी और उसके बाद इस गुफा में उनके पूर्वजों के द्वारा शिवलिंग देखा गया और फिर यहां पर पूजा पाठ शुरू हो गई.
राक्षस बाणासुर ने यहां की सालों तक तपस्या
इस गुफा से जुड़ी एक और कहानी मशहूर है. बताया जाता है कि इस गुफा में बाणासुर नाम के राक्षस ने खुद को महान बनाने के लिए कई सालों तक तपस्या की थी. तपस्या के लिए बाणासुर ने इस गुफा की रचना की थी. पुजारी बताते हैं कि इस तुलार गुफा के शिवलिंग से बस्तर के वनवासियों की काफी आस्था जुड़ी हुई है. यहां के ग्रामीणों का मानना है कि भगवान शिव से जो भी मन्नत मांगता है, उसकी मन्नत जरूर पूरी होती है.
हालांकि नक्सलवाद की वजह से तुलार गुफा में भगवान शिव के दर्शन करने के लिए आज से 5 साल पहले बेहद कम या फिर आसपास के लोगों ही पहुंचते थे, लेकिन पिछले 3 से 4 सालों में लगातार शिवरात्रि के मौके पर यहां श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है. घने जंगलों और दुर्गम रास्तों के बाद पहाड़ियों के बीच हजारों साल पुराने तुलार गुफा की खूबसूरती देखते ही बनती है. इसके अलावा यहां पर मौजूद शिवलिंग को प्राकृति के द्वारा जलाभिषेक कराने को सैकड़ों लोग देखने पहुंचते हैं.
रायपुर से कैसे पहुंचे तुलार गुफा?
इस प्रसिद्ध शिवधाम तक पहुंचने के लिए राजधानी रायपुर से 300 किलोमीटर का सफर तय कर बस्तर पहुंचने के बाद, यहां से करीब 150 किलोमीटर की दूरी तय कर धर्म नगरी बारसूर पहुंचते हैं. यहां मोटरसाइकिल के माध्यम से कुछ दूरी तक पहुंचा जा सकता है. हालांकि एक तय जगह तक ही मोटरसाइकिल से पहुंचा जा सकता है, जिसके बाद दुर्गम रास्तों से होते हुए करीब 8 से 10 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है.
रास्ते में तीन नाले पड़ते हैं, जिन्हें पारकर इस तुलार गुफा तक पहुंचा जा सकता है. हर साल बड़ी संख्या में बच्चे, बूढ़े, महिलाएं तुलार गुफा में भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. इस साल भी महाशिवरात्रि के मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है, जिसको लेकर स्थानीय ग्रामीणों ने तैयारी शुरू कर दी है.
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