नक्सली भय से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पलायन करने वाले बस्तर के आदिवासियों के मकानों पर दोनों सरकारें बुलडोजर चला रही है. अब तक 100 से अधिक मकानों को तोड़ दिया गया है और आदिवासियों को खदेड़ा जा रहा. ऐसे में अब सलवा जुडूम के विस्थापित आदिवासी परिवार बेघर हो गए हैं और सुध ना छत्तीसगढ़ सरकार ले रही है और ना ही दूसरे राज्य की सरकारें. आदिवासी आयोग से मिली रिपोर्ट के मुताबिक तेलंगाना के खम्मम जिले में ही विस्थापितों के 5 हजार परिवार बसे हैं.


दरसअल नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए सलवा जुडूम अभियान के दौर में नक्सली भय की वजह से सैकड़ों आदिवासी गांव छोड़ पड़ोसी राज्यों में मकान बनाकर रह रहे हैं. लेकिन आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकार ने बस्तर के आदिवासियों के मकान पर बुलडोजर चला दिया. छत्तीसगढ़ के सैकड़ों आदिवासी परिवार बेघर हो गए हैं. इतनी बड़ी संख्या में आदिवासियों को बेदखल करने के पीछे दोनों सरकारें वन भूमि पर कब्जा करना बता रही हैं. आदिवासियों को उजाड़ने के पीछे वैध दस्तावेज नहीं होना भी बताया जा रहा है.


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सैकड़ों आदिवासी परिवार कर दिए गए बेघर 


नक्सलियों के भय से साल 2006 से विस्थापित सोढ़ी सुकैय्या ने बताया कि तेलंगाना और आंध्र सरकार ने वन विभाग के कर्मियों से कह दिया है कि रेंज अधिकारी से अनुमति लेकर आओ. तब रहने की इजाजत दी जाएगी. गुहार लगाने के बावजूद कोई जिम्मेदार अधिकारी या छत्तीसगढ़ सरकार से मदद नहीं मिल पा रही है. ऐसे में सैकड़ों आदिवासी परिवार बेघर हो चुके हैं. आदिवासियों में महिलाएं और बच्चे भी बड़ी संख्या में शामिल हैं. दरअसल दक्षिण बस्तर के 3 जिले दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर में साल 2005 में नक्सल विरोधी आंदोलन सलवा जुडूम चला था और 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने हथियारबंद दस्तों पर रोक लगाते हुए सलवा जुडूम को अवैध करार दिया था.


आंदोलन के बंद होने पर सलवा जुडूम में शामिल रहे युवाओं के परिवार के लिए तत्कालीन सरकार ने नक्सल गढ़ इलाके से दूर अलग विस्थापित किया. लेकिन इस दौरान नक्सली भय की वजह से कई आदिवासी परिवार बस्तर की सीमा से लगे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी बस गए. अब दोनों ही सरकारें विस्थापित हुए इन आदिवासियों को बेजा कब्जा करने का आरोप लगाकर खदेड़ रही हैं.


ग्रामीण सोढ़ी सुकैया ने बताया कि विस्थापित आदिवासी बेहद बुरी स्थिति में जीवन गुजार रहे हैं. उन्हें ना यहां आरक्षण का लाभ मिलता है, ना जॉब कार्ड बनाया जाता है और बहुत ही कम मजदूरी दी जाती है. उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी जरूरत तक का कोई इंतजाम नहीं है. ग्रामीण कहते हैं कि पुलिस भी उन्हें संदेह की नजर से देखती है. इन विस्थापितों के बीच काम कर रही संस्था नई शांति प्रक्रिया के संयोजक शुभ्रांशु चौधरी ने बताया कि साल 2019-20 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पुनर्वास योजना बनाकर ब्रू आदिवासियों का त्रिपुरा और मिजोरम में पुनर्वास कराया है. साथ ही वन अधिकार कानून की धारा 3.1 एम में इन सीटू या अदला-बदली पुनर्वास का प्रावधान है. इसके अनुसार कोई व्यक्ति अगर अपनी वन भूमि से विस्थापित हुआ है तो सरकार दूसरी जगह भूमि देगी. इस बारे में 2019 से आवेदन दिया जा रहा है पर कार्यवाही नहीं हो रही है. विस्थापितों में अधिकांश बस्तर के मुरिया और गोंड जनजाति के लोग हैं. ये नक्सलियों के कब्जे वाले गांवों से पलायन कर गए हैं. डर है कि अगर गांव वापस लौटे तो नक्सली मार देंगे.


छत्तीसगढ़ की सरकार भी नहीं ले रही है सुध


बीजापुर के विधायक विक्रम मंडावी ने भी सीएम को पत्र लिखकर आदिवासियों की बदहाल जिंदगी की जानकारी दी है कि. उन्होंने बताया कि उनके विधानसभा क्षेत्र से करीब 5 हजार आदिवासी परिवार तेलंगाना के कोत्तगुड़म और मुलगु इलाके में विस्थापित हैं. फिलहाल दोबारा छत्तीसगढ़ वापसी के लिए सरकार की ओर से कोई कवायद अब तक शुरू नहीं की गई है और ना ही कोई मंत्री या जिम्मेदार अधिकारी का आदिवासियों की इस स्थिति पर बयान सामने आया है.


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