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Chhattisgarh: दो रात जंगल में गुजार लोगों ने किया मेडिकल कैंप का इंतजार, जरूरी दवाइयों के भी मोहताज अबूझमाड़ के ग्रामीण

आजादी के 75 साल बाद भी अबूझमाड़ इलाके में प्रशासन पूरी तरह नहीं पहुंच पाया है. यहां ना स्कूल भवन है, ना स्वास्थ्य केंद्र हैं और ना ही शासन की योजनाओं का लाभ मिल पाता है.

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ (Abujmarh) में स्वास्थ्य सुविधाओं (Health Facilities) के लिए किस तरह ग्रामीणों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है इसकी बानगी नारायणपुर (Narayanpur) और बीजापुर (Bijapur) जिले के सीमावर्ती इलाके में मौजूद माड़ में दिखी, जहां आसपास के ग्रामीण मेडिकल कैंप (Medical Camp) लगने की जानकारी मिलते ही इक्कठे हो गए और कई किलोमीटर पैदल चलकर कैंप लगने वाली जगह पर पहुंचे. बकायदा कैंप लगने से पहले 2 रात तक ग्रामीणों ने कड़कड़ाती ठंड में खुले आसमान के नीचे समय बिताया. ग्रामीणों ने अपने साथ घर से लाए बर्तन और राशन  से खाना बनाकर रात गुजारा. 

स्वास्थ्य सुविधा का अभाव 
दरअसल राज्य गठन के 22 साल बाद भी इन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आजतक अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र नहीं खुल पाए हैं और ना ही बाइक एंबुलेंस और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं की कोई व्यवस्था है. इसकी वजह से कई महीनों बाद केवल एक बार लगने वाले इस मेडिकल कैंप में गांव वालों का हुजूम उमड़ पड़ता है और सभी ग्रामीण अपना इलाज करवाने के लिए डॉक्टर्स और नर्सों से गुहार लगाते हैं. बस्तर में पड़ रही कड़कड़ाती ठंड के बावजूद ग्रामीण स्वास्थ्य कैंप में अपना इलाज कराने कई मुश्किलों का सामना करके पहुंचते हैं.
Chhattisgarh: दो रात जंगल में गुजार लोगों ने किया मेडिकल कैंप का इंतजार, जरूरी दवाइयों के भी मोहताज अबूझमाड़ के ग्रामीण

नहीं पहुंचीं शासन की योजनाएं
दरअसल बस्तर संभाग के अबूझमाड़ को काफी पिछड़ा हुआ क्षेत्र माना जाता है. नक्सलियों का गढ़ कहे जाने की वजह से आजादी के 75 साल बाद भी अबूझमाड़ इलाके में प्रशासन आज तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पाया है और ना ही यहां स्कूल भवन है, ना ही स्वास्थ्य केंद्र हैं और ना ही शासन की योजनाओं का लाभ इन ग्रामीणों को मिल पाता है. हालांकि कुछ साल पहले कुछ इलाकों में खुले पुलिस कैंप की वजह से नक्सलियों का दहशत कम हुआ है लेकिन शासन की योजना और सुविधाएं आज तक नहीं पहुंच पाई हैं. 

रहते हैं झाड़-फूक के भरोसे
यही वजह है कि यहां कई गंभीर बीमारी से जूझते ग्रामीण अपने इलाज के लिए देसी दवाई और झाड़-फूंक के भरोसे ही रहते हैं. क्षेत्र में अज्ञात बीमारी से लगातार हो रही हो मौत को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने मेडिकल कैंप लगाया. हालांकि यह मेडिकल कैम्प बीजापुर जिले के एक गांव में लगाया गया था लेकिन इस मेडिकल कैंप में अपना इलाज करवाने के लिए नारायणपुर क्षेत्र के 6 से अधिक गांव के लगभग 120 से ज्यादा ग्रामीण माड़ इलाके से कई किलोमीटर पैदल चलकर मेडिकल कैम्प तक पहुंचे. 

मेडिकल कैंप ही एक सहारा 
कैंप लगने से करीब 2 दिन पहले ही यहां ग्रामीण जंगल में आग जलाकर अपने साथ लाये राशन और बर्तन में खाना पकाकर मेडिकल टीम का इंतजार करते रहे. ग्रामीणों ने बताया कि इलाज के लिए केवल मेडिकल कैंप ही एक सहारा है, जैसे ही उन्हें कहीं से सूचना मिली कि कैम्प लग रहा है तो वे अपना और अपने परिवार के इलाज के लिए कई कठिनाइयों का सामना कर पहुंचे. 

जूझ रहे गंभीर बीमारी से
इधर बीजापुर में लगे मेडिकल कैंप में इलाज के लिए ग्रामीणों का हुजूम लग गया जिसके चलते इस मेडिकल कैंप को 3 दिनों तक गांव में ही रहने को कहा गया. हालांकि मेडिकल कैम्प में सर्दी बुखार जैसी अन्य बीमारियों का ही इलाज किया गया. मेडिकल कैंप के प्रभारी ने बताया कि ग्रामीण कई गंभीर बीमारी से भी जूझ रहे हैं और उन्हें शहर के अस्पतालों में इलाज की जरूरत है. हालांकि कुछ ग्रामीणों को इंद्रावती नदी पारकर अस्पताल पहुंचाने की कोशिश जरूर मेडिकल टीम कर रही है, लेकिन अगर सही समय पर गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों को इलाज नहीं मिल पाया तो उनके जान के लिए भी खतरा बन सकता है.

जरूरी दवाइयों के मोहताज
गौरतलब है कि मूलभूत सुविधाओं में ग्रामीणों के लिए सबसे जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं होती हैं लेकिन नक्सलवाद का दंश झेल रहे अबूझमाड़ इलाके के ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधा उनके गांव तक मिल पानी तो दूर मामूली सर्दी जुखाम की दवाइयां तक नहीं मिल पाती हैं, लिहाजा कई ग्रामीणों की इलाज के अभाव में जान चली जाती है.

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