Chhattisgarh Latest News: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले में नक्सलियों का खौफ खत्म नहीं हुआ है. हालात यह है कि अबूझमाड़ इलाके के 30 से अधिक सरपंचों ने पिछले 6 महीनो से अपना गांव छोड़ दिया है. वो नारायणपुर शहर में दहशत भरी जिंदगी जी रहे हैं. दरअसल नक्सलियों ने इन सरपंचों के लिए मौत का फरमान सुनाया है. इस वजह से दहशत के मारे सरपंच अपने परिवार को छोड़ नारायणपुर शहर में रहकर सरपंची का काम कर रहे हैं.
पिछले एक साल में नक्सलियों ने नारायणपुर इलाके में 8 से ज्यादा जनप्रतिनिधियों की हत्या कर दी है. इसके बाद से सरपंचों में डर का माहौल बना हुआ है. उनका कहना है कि नक्सली उन पर कोई भी झूठा आरोप लगाकर उनकी हत्या कर सकते हैं. यही वजह है कि अपना घर परिवार और पंचायत को छोड़ दहशत वाली जिंदगी जीने को मजबूर हैं और कब वे अपने गांव लौटेंगे इसको लेकर वे अभी कुछ नही कह सकते हैं.
30 से ज्यादा सरपंचों को सुनाया मौत का फरमान
गांव के विकास में अहम भूमिका गांव के सरपंच ही निभाते हैं. वहीं गांव के सर्वे सर्वा होते हैं. गांव में मूलभूत सुविधाओं और सरकार की योजनाओं को गांव के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का जिम्मा और गांवों के लोगों की आपसी नोकझोक में समझौता कराने का दायित्व भी सरपंच के पास होता है. ऐसे में नारायणपुर जिले के 30 से अधिक गांव ऐसे हैं, जिनके सरपंच ही सुरक्षित नही हैं. इसकी वजह से इन गांवों के सरपंच नारायणपुर शहर में रहकर सरपंची कर रहे हैं, क्योंकि इनके गांवों में माओवादियों ने इन सरपंचों के नाम मौत का फरमान जारी किया है.
समाज प्रमुख और पद्मश्री वैधराज ने भी छोड़ा अपना गांव
नारायणपुर जिले से 43 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत छोटेडोंगर इलाके के 6 लोगों को बीते 6 महीने से नारायणपुर शहर के डीपीआरसी भवन में सुरक्षा के साए में रखा गया है. गांव के सरपंच सहित 3 अलग-अलग समाज के प्रमुखों और इलाके के वैधराज जिन्हें सरकार ने हाल ही में पद्मश्री से सम्मानित किया है, उन्हें भी डीपीआरसी भवन में रखा गया है. दरअसल माओवादियों ने इन्हें भी मौत का फरमान सुनाया गया है.
कुछ माह पहले छोटेडोंगर इलाके में माओवादियों ने मौत का फरमान सुनाते हुए कई जनप्रतिनिधियों की हत्या कर दी है. माओवादियों की ओर से यहां संचालित लौह अयस्क खदान का लंबे समय से विरोध किया जाता रहा है. बावजूद इसके सरकार सुरक्षा के साए में माइंस का संचालन करवा रही है, ताकि सरकार की आमदनी बढ़े, ऐसे में माइंस खुलने के बाद माओवादी इलाके में दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतारा जा चुका है.
नक्सल पीड़ितों की तरह परिजनों को मिले लाभ
नारायणपुर डीपीआरसी भवन में रह रहे इन जनप्रतिनिधियों का कहना है कि उन्हें तो सरकार की तरफ से सुरक्षा मुहैया करवाई जा रही है. लेकिन, गांवों में उनके परिवार का देख रेख करने वाला कोई भी नही है. खेती किसानी कर वे अपने परिवार का पेट पालते हैं. ऐसे में उन्हें परिवार का देख रेख करने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उनकी मांग है कि उनके परिवारों को नक्सल पीड़ितों के लिए बनाई गई योजनाओ का लाभ दिया जाए.
बता दें कि शहर के पास शांति नगर में उन सरपंचों को रखा गया है जिन्हें धमकी मिली है. वहीं से वे अपने गांवों का कामकाज देखते हैं. वहीं बस्तर में बीते चार दशकों से सरकार और नक्सलियो के बीच चल रही लड़ाई के बीच ऐसे हालात में बहुत से सरपंच, जनप्रतिनिधियों और गांव में रहने वाले कई परिवार माओवादी दहशत के चलते अपना घर बार छोड़ शहर में आकर रह रहे है. सवाल यही है कि लोकतांत्रिक देश के इस हिस्से से कब नक्सलवाद का खात्मा होगा और कब नक्सली दहशत में रहने वाले सरपंच अपने गांव से ही सरपंची कर पाएंगे और अपने परिवार के साथ एक अच्छी जिंदगी बिता पाएंगे.
कृषि मंत्री का दावा- जल्द नारायणपुर होगा नक्सल मुक्त
हालांकि इस मामले में प्रदेश के कृषि मंत्री राम विचार नेताम का कहना है कि पिछले सालों की तुलना में हालात बदले हैं, प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद माओवादियों के कोर इलाके में पुलिस फोर्स पहुंच रही है और नक्सलियों का एनकाउंटर भी कर रही है. नक्सलियों से जरूर जनप्रतिनिधियों को खतरा है, लेकिन नक्सलियों का यह दहशत ज्यादा दिन तक चलने वाली नहीं है. भाजपा ने नक्सल मुक्त बस्तर का संकल्प लिया है और इस संकल्प को पूरा करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रही है.
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