Chhattisgarh: बस्तर संभाग में इलाज के लिए झाड़ फूंक के भरोसे लोग! स्वास्थ्य सुविधाओं से आज भी अछूते हैं कई गांव
साल में एक या दो बार ही स्वास्थ्य विभाग की टीम इन गांवों तक काफी मुश्किल से पहुंचकर मेडिकल कैंप लगा पाती है, लिहाजा बीमार पड़ने पर ग्रामीण झाड़-फूंक के भरोसे अपना इलाज करवाने को मजबूर हैं.
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Bastar Division News: छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग बुनियादी सुविधाओं की कमी से लंबे समय से जूझ रहा है. आजादी के 75 साल बाद भी बिजली, सड़क पानी और सबसे ज्यादा जरूरी स्वास्थ सुविधा सैकड़ों गांवों तक नहीं पहुंची है. संभाग के बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिले के ऐसे कई कोर इलाके हैं जहां आज तक ना स्वास्थ्य केंद्र खुले है और ना ही इन गांवों तक कभी एंबुलेंस पहुंची है.
वहीं साल में एक या दो बार ही स्वास्थ्य विभाग की टीम इन गांवों तक काफी मुश्किल से पहुंचकर मेडिकल कैंप लगा पाती है, लिहाजा बीमार पड़ने पर ग्रामीण झाड़-फूंक के भरोसे अपना इलाज करवाने को मजबूर हैं और सड़क नहीं होने की वजह से 40 से 50 किलोमीटर तक मरीज को कावड़ और खाट में स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने को मजबूर हैं, हर चुनावी साल में जनप्रतिनिधियों द्वारा गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने का दावा तो किया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य गठन हुए 22 साल बीत चुके हैं पर बस्तर संभाग के 100 से ज्यादा ऐसे गांव हैं जहां आज तक स्वास्थ सुविधा नहीं पहुंच सकी है.
सैकड़ों गांव में नहीं पहुंची है स्वास्थ्य सुविधाएं
बस्तर संभाग के 4 जिले काफी संवेदनशील हैं, इन चारों जिलों में ऐसे कोर इलाके हैं जहां आज तक प्रशासन की टीम नहीं पहुंच पाई हैं. इन क्षेत्र में पड़ने वाले सैकड़ों गांव में हजारों ग्रामीणों की आबादी है, जिन्होंने कभी अपने क्षेत्र में बिजली, नल और सड़क नहीं देखी है. विकास से अछूते इन गांव के ग्रामीणों को बीमार पड़ने पर काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता है. बीते साल ही सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा के माढ़ इलाके में अज्ञात बीमारी से 60 से अधिक लोगों की मौत हो गई, हालांकि इन मौतों के आंकड़ों के बाद स्वास्थ विभाग की टीम सुदूर अंचलों के गांव में बड़ी मुश्किल से पहुंचकर कुछ दिनों तक मेडिकल कैंप लगाया, लेकिन स्थायी तौर पर स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएं आज तक सरकार यहां नहीं पहुंचा पाई है.
लिहाजा यहां के ग्रामीण बीमार पड़ने पर गांव के सिरहा गुनिया से झाड़-फूंक कराकर अपना इलाज करवाने को मजबूर हैं और कई आपातकालीन स्थिति में गंभीर रूप से बीमार मरीजों को और गर्भवती महिलाओं को खाट में या कावड़ में 50 से 60 किलोमीटर पैदल चलकर स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने को मजबूर होते हैं, खुद स्वास्थ्य मंत्री टी.एस सिंह देव ने भी माना है कि बस्तर संभाग के 4 जिलों के ऐसे कई गांव हैं जो स्वास्थ सुविधाओं से पूरी तरह से अछूते हैं.
इन गांव तक ना स्वास्थ्य केंद्र खुल पाए हैं और ना ही कभी एंबुलेंस पहुंच पाई है, ऐसे हालातों में इन्हें स्वास्थ सुविधा का लाभ नहीं मिल पाता, हालांकि स्वास्थ्य मंत्री ने दावा जरूर किया है कि धीरे-धीरे हालात सुधरेंगे और स्वास्थ सुविधा पहुंचाने की सरकार की पूरी कोशिश होगी.
बस्तर संभाग में डॉक्टरों की है कमी
बस्तर में यह हालात काफी लंबे समय से बने हुए हैं, संभाग मुख्यालय जगदलपुर में भी करोड़ों रुपए के अस्पताल के बिल्डिंग तो बने हैं, लेकिन जिला अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है, वहीं ग्रामीण अंचलों की बात की जाए तो यहां भी स्टाफ नर्स के भरोसे ही इलाज चल रहा है ,पूरे बस्तर संभाग में डॉक्टरों की कमी बनी हुई है ,हालांकि सरकार जरूर यह दावा कर रही है कि यहां आने वाले डॉक्टरों को अच्छी खासी सैलरी दी जाएगी. बावजूद इसके कोई भी डॉक्टर बस्तर में आना नहीं चाहता है.
ऐसे हालात बस्तर संभाग के जिला मुख्यालय में बने हुए हैं लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ सुविधा के नाम पर हालात काफी गम्भीर हैं ,और हर रोज इलाज के अभाव में कई ग्रामीणों की जान भी जा रही है. फिलहाल चारो जिलों के हजारों की संख्या की आबादी वाले गांवो के ग्रामीणों में उम्मीद की किरण जरूर है की कभी ना कभी जरूर उनके भी गांव में स्वास्थ सुविधा पहुंचेगी औऱ स्वास्थ्य केंद्र और एंबुलेंस का लाभ उन्हें भी मिल पाएगा ,फिलहाल वर्तमान में ग्रामीणों की जिंदगी झाड़-फूंक और कावड़ के भरोसे ही चल रही है.
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