May Day: अधिकारियों और श्रमिकों ने मई दिवस बोरे-बासी के साथ लिया लाल चींटी की चटनी का आनंद
May Day: बोरे-बासी के साथ चापड़ा चटनी (लाल चींटी से बनी चटनी) खाने के बाद अफसरों ने कहा कि अब जिले में जितने भी कार्यक्रम होंगे उनमें नाश्ता के साथ बोरे-बासी भी परोसा जाएगा.
दंतेवाड़ा: 1 मई श्रमिक दिवस के मौके पर पूरे छत्तीसगढ़ में बोरे-बासी की पार्टी मनाई जा रही है. छत्तीसगढ़ के मंत्रियों से लेकर IAS, IPS और प्रशासनिक अधिकारी और नक्सल मोर्चे पर तैनात जवान और पूरे छत्तीसगढ़वासी भी रविवार को बोरे-बासी खाकर इसका लुत्फ उठा रहे हैं. वहीं छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में भी श्रमिक दिवस के मौके पर कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारी, कर्मचारी ने श्रमिकों के साथ मिलकर बोरे-बासी पार्टी मनाई और श्रमिकों के साथ बैठकर बोरे-बासी का आनंद लिया. इस बोरे-बासी की खासियत यह रही कि यहां बोरे-बासी के साथ बस्तर के प्रसिद्ध चापड़ा चटनी (लाल चींटी से बनी चटनी) का भी स्वाद मिला. अफसरों ने यह भी कहा कि अब जिले में जितने भी कार्यक्रम किए जाएंगे उनमें नाश्ता के साथ बोरे-बासी भी परोसा जाएंगा.
बस्तर में प्रसिद्ध है चापड़ा चटनी
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉक्टर नारायण साहू ने कहा कि बोरे-बासी केवल श्रमिकों का खाना नहीं है, यह हर वर्ग के लोगों को खाना चाहिए. उन्होंने बताया कि इसमें विभिन्न तरह के पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर के लिए लाभदायक हैं. उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश रहेगी कि अब हम कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से हर अधिकारियों की डायनिंग टेबल तक बोरे-बासी पहुंचा सकें, क्योंकि जब अधिकारी खाएंगे तभी बोरे बासी का महत्व लोगों को बता पाएंगे, साथ ही, अब बोरे-बासी के लिए लोगों को भी जागरूक किया जाएगा.
श्रमिकों ने कहा, अगल है चींटी की चटनी का मजा
वहीं श्रमिकों ने कहा कि लाल चींटियों से बनी चटनी के साथ बोरे बासी का अलग ही मजा है. लाल चींटी की चटनी बुखार को दूर करती हैं, वैसे तो बस्तर के आदिवासियों के भोजन में चापड़ा चटनी यानी लाल चींटियों से बनी चटनी का अपना एक विशेष महत्व है, आदिवासियों का मानना है कि यह कई तरह की बीमारियों को भी दूर करती है, आम के पेड़ से लाल चींटियों को इकट्ठा किया जाता है. बस्तर के गांवों में लगने वाले हाट बाजारों में भी चापड़ा चींटी आसानी से मिल जाती है, और अब धीरे-धीरे आदिवासियों का यह मुख्य आहार शहर के लोगों को भी पसंद आने लगा है और स्थानीय लोगों के साथ-साथ बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक भी इसका स्वाद चखते हैं.
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