(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Dokra Boat: पीएम मोदी ने डेनमार्क के क्राउन प्रिंस को भेंट की छत्तीसगढ़ की ढोकरा नाव, जानें इस आर्ट का इतिहास?
Chattisgarh News: पीएम मोदी ने डेनमार्क के क्राउन प्रिंस को तोहफे में छत्तीसगढ़ की ढोकरा नाव दी. जानकारी के मुताबिक, इसे चार हजार साल पुरानी पद्धति से तैयार किया गया है.
Dhokra Art: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डेनमार्क का दौरा किया. डेनिश राजघराने से मुलाकात में प्रधानमंत्री ने वहां के क्राउन प्रिंस फ्रेड्रिक को 4 हजार साल पुराने पद्धति से बनी छत्तीसगढ़ की ढोकरा नाव उपहार के तौर पर भेंट की. इसकी तस्वीर भी सामने आई है. सोशल मीडिया पर इस तस्वीर की चर्चा होने लगी. ऐसे में ये ढोकरा आर्ट क्या है, कहां बनता है, ये सवाल होना लाजमी है.
दरअसल छत्तीसगढ़ जनजातीय प्रधान राज्य है. राज्य की इतिहास भी भारत की सबसे पुरानी सभ्यता मोहनजोदड़ो से जुड़ी हुई है. क्योंकि मोहनजोदड़ो की खुदाई में जो प्रतिमा मिले थे, वो सभी ढोकरा आर्ट से बनाई गई थी और छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले को देश में सबसे पुरानी ढोकरा आर्ट के लिए प्रसिद्धि हासिल है. यहां बनाई गई प्रतिमाएं देश विदेश में भारी डिमांड में रहता है. कई देशों में ढोकरा आर्ट से बनाई गई मूर्तियों की बिक्री होती है.
PM gifts a Dokra boat from Chattisgarh to Crown Prince Fredrik of Denmark. Dokra is non–ferrous metal casting using the lost-wax casting technique. This sort of metal casting has been used in India for over 4,000 years and is still used. pic.twitter.com/Nh5ALuGFDc
— ANI (@ANI) May 4, 2022
कोंडागांव में घर बनाई जाती है ढोकरा मूर्ति
कोंडागांव के भेलवापारा में हर घर में आपको मूर्ति बनाते हुए लोग दिख जाएंगे. ढोकरा शिल्पकला में अधिकांश तौर पर आदिवासी संस्कृति की मूर्तियां बनाई जाती हैं. देवी-देवताओं की मूर्ति, पशु-पक्षियों की मूर्ति, नाव, मछली और कछुए की प्रतिमा बनाई जाती है. बता दें कि ढोकरा शिल्प की मूर्तियां जितनी खूबसूरत होती हैं उससे कहीं ज्यादा समय इससे बनाने में लगते हैं. शिल्पकार बताते हैं कि ढोकरा आर्ट में तैयार की जाने वाली मूर्तियों को कम से कम 10 से 14 प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है.
कैसे बनाई जाती है मूर्ति?
ढोकरा आर्ट की ऐतिहासिक महत्व के अलावा इसकी बनावट काफी रोचक है. सबसे पहले मिट्टी का एक ढांचा तैयार किया जाता है. इसमें काली मिट्टी को भूसे के साथ मिलाकर बेस बनाया जाता है और पूरी तरह से सूखने के लिए धूप में रखा जाता है. सूखने के बाद दरार भरने में लिए लाल मिट्टी का लेप लगाया जाता है. इसके बाद मोम का लेप लगाया जाता है. मोम के सूखने के बाद आगे उसे पतले धागे से बारीक डिजाइन बनाई जाती है. जब ये सूख जाता है तो फिर इसे मिट्टी से ढंक देते हैं.
सूखने के बाद पीतल और टीन जैसी धातुओं को गर्म करके पिघलाया जाता जाता है. इसके साथ जो मिट्टी मोम से बनाया गया ढांचा है उसे भी भट्टी में गर्म करते हैं. इससे मिट्टी के ढांचे के बीच जो मोम लगाई गई होती वो पिघल जाती है और मोम की जगह खाली होते जाती है. इसके बाद गर्म धातु को ढांचे के अंदर डाला जाता है. इसके बाद जो मोम की जगह है, उसे पूरी तरह से धातु को भर दिया जाता है. इसके बाद करीब 6 घंटे तक ठंडा किया जाता है. फिर हथौड़ा से मिट्टी निकलाते हैं. आखिर में ये मूर्ति पूरी तरह से तैयार हो जाती है. इसकी चमक बढ़ाने के लिए ब्रश से सफाई की जाती है और पॉलिश भी किया जाता है.