Chhattisgarh News: रायगढ़ जिले में धीरे-धीरे जमीनें कम हो रही हैं. जंगल से पेड़ काटे जा रहे हैं. अब तेंदूपत्ता का टारगेट भी पूरा नहीं होता है. बीते तीन साल से तेंदूपत्ता का टारगेट शासन ने नहीं बढ़ाया है. कीमत बढ़ने के साथ तेंदूपत्ता तोड़ने वालों की होड़ मची है. इस साल रायगढ़ को 58 हजार मानक बोरा खरीदी का टारगेट मिला है. तेंदूपत्ता की खरीदी 53 समितियों के माध्यम से की जाएगी. 53 समितियां करीब 416 गांवों को कवर करती हैं. फड़ में खरीदी के बाद डंप किया जाता है.
अभी तेंदूपत्ता तोड़ने का काम चल रहा है. तोड़ने के बाद 50 पत्ते का बंडल बनाकर सूखाया जाता है. इसके बाद फिर 100-100 पत्ते का बंडल बनाया जाता है. 100 बंडल का पांच सौ रुपये मिलता है. एक दिन में अमूमन एक आदमी पांच से सात हजार के आसपास तेंदूपत्ता तोड़ सकता है. हालांकि तेंदूपत्ता का पेड़ अभी काफी कम हो चुका है. ऐसे में भारी दिक्कत हो रही है. जंगल के पेड़ में पत्ता देरी से आता है, लेकिन टिकरा में लगे पेड़ का पत्ता जल्दी आ जाता है. ऐसे में पहले टिकरा में पेड़ से पत्ता तोड़ा जाता है.
बारिश से तेंदूपत्ता तोड़ने वालों की परेशानी
तेंदूपत्ता तोड़ने के बाद 50-50 पत्ते का एक-एक बंडल बनाया जाता है. उसे 100-100 बंडल के हिसाब से सूखाया जाता है. इस बीच बारिश होने पर तेंदूपत्ता तोड़ने वालों की मेहनत बेकार चली जाती है. फिर से एक-एक पत्ते को निकाल कर सूखाना पड़ता है. पूरी तरह सूखा नहीं होने की स्थिति में पत्ता सड़ने या दीमक लगने का डर रहता है. तेज धूप में पत्ता जल्दी सूखता है. हालांकि दिन में कम से कम तीन बार पलटना पड़ता है.
जंगली एरिया में आसानी से होता है उपलब्ध
जंगली एरिया में तेंदूपत्ता का पेड़ आसानी से मिलता है. पठारी क्षेत्र में टिकरा जैसी जमीन पर तेंदूपत्ता का पेड़ नजर आ जाता है. इसलिए जंगली इलाकों में तेंदूपत्ता तोड़ने वालों को ज्यादा मुनाफा होता है. हर घर से तीन-चार लोग रोजाना तेंदूपत्ता तोड़ने जाते हैं. तेंदूपत्ता तोड़ने के बाद बिक्री करने तक काफी मेहनत करनी पड़ती है.
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