छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक मंदिर 1200 साल से अधूरा है. ये मंदिर रायपुर जिले के चंदखुरी गांव में है. जिसे गांव वाले फूटहा मंदिर और छैमासी मंदिर के नाम भी पुकारते हैं. इस मंदिर निर्माण की कहानी सबको हैरान कर देने वाली है. इसके अधूरेपन की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. आज इसी मंदिर की कहानी आपको बताएंगे. आखिर इस मंदिर के निर्माण को पूरा क्यों नहीं किया गया?
छैमासी अंधेरे में हुआ है शिव मंदिर का निर्माण
दरअसल रायपुर शहर के केवल 30 से 35 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद चंदखूरी गांव पड़ता है. इस गांव के बीच में प्राचीन शिव मंदिर है. इसे पुरातत्त्व विभाग ने खोज कर निकला है. इसके साथ आसपास की खुदाई के बाद ढेर सारी खंडित मूर्तियां भी पुरातत्व विभाग को मिली है. मंदिर को सोमवंशी राजाओं ने निर्माण करवाया है. लेकिन उस समाज सोमवंशी राजा ने इस मंदिर को केवल रात के अंधेरे में ही बनाया गया है. दिन होने पर निर्माण का काम रोक दिया गया जो आजतक अधूरा है.
क्या मंदिर निर्माण की कहानी
मंदिर 3 खंडों में है और बड़े बड़े वजनी पत्थरों को जोड़कर मंदिर का निर्माण किया गया है. उस समय सोमवंशी राजा ने हाथियों की मदद से इतने बड़े बड़े पत्थर लाए और इस मंदिर निर्माण में लगाया गया है. मंदिर के पास ही डोमन पटेल का घर है. डोमन बचपन से इस मंदिर को देखते आ रहे है. उन्होंने एबीपी न्यूज को इस मंदिर की कहानी बताई है. उन्होंने कहा कि इस मंदिर का नाम छैमासी मंदिर है. हमारे पूर्वजों ने इसकी कहानी सुनाई है. जिसके अनुसार 6 महीने की रात के अंधेरे में मंदिर का निर्माण कराया गया है. जब सूर्योदय हुआ तो मंदिर बनाने का काम बीच में ही रोक दिया गया. इसलिए आज भी ये मंदिर आधा अधूरा है.
मंदिर से 3 तालाबों के लिए जमीन नीचे सुरंग
डोमन पटेल ने बताया कि गांव में कई खंडित मूर्तियां पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिली है. गांव के तालाब के पास एक मूर्ति मिली है. कई सारी मूर्तियों इसी मंदिर के आस पास खुदाई से मिली है. यहां एक सुरंग भी जमीन के अंदर जो तीनों तालाब में जाता है. एक रानी तालाब है जहां रानी-राजा नहाते थे. उसी तालाब के पास एक मूर्ति मिली है. ये सभी मूर्तियां खंडित है. लेकिन सभी बड़े बड़े पत्थर को तोड़कर बनाया गया है.
बाली और सुग्रीव के युद्ध का पत्थर में नक्कासी
सोमवंश कालीन शिव मंदिर 8वीं ईस्वी का है. इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर गंगा और यमुना नदी देवियों का अंकन है. जिसमें एक ओर बाली और सुग्रीव के मल्लयुद्ध और मृतबाली का सिर गोदपर रखकर विलाप करती हुई तारा का पत्थर में नक्कासी की गई है. इस मंदिर की बनवाट के बारे में बात करें तो ये नागर शैली में बने पंचरथ मंदिर हैं. इसमें मंडप नहीं है, इस शिव मंदिर को गांव के लोग इसे फूटहा मंदिर और छैमासी मंदिर के नाम भी पुकारते है. मंदिर के कपाट में गजलक्ष्मी को भी दिखाया गया है. इसके अलावा तारा के रोने का भी चित्रण किया गया है.
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