Chhattisgarh News: उतर भारत में पराली सबसे बड़ी मुसीबत बन गई है. हवा जहरीली होते जा रही है. किसानों को पराली (Stubble Burning) जलाने के लिए मना किया जा रहा है लेकिन छत्तीसगढ़ में इस पराली का क्या इस्तेमाल किया जाता है? क्या छत्तीसगढ़ में इससे प्रदूषण (Air Pollution) बढ़ सकता है? इसपर छत्तीसगढ़ की क्या तैयारी है? चलिए इसी के बारे में जानते है. दरअसल छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. यहां 60 फीसदी से अधिक आबादी खेती किसानी करती है. 


राज्य में 30 लाख हेक्टेयर में धान की फसल होती है और 24 लाख से अधिक किसान धान बेचते हैं. इन आंकड़ों से अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी बड़ी मात्रा में राज्य में धान के पौधे का बचा हुआ हिस्सा यानी पराली होता होगा. इसी पराली को जलाने से उत्तर भारत प्रदूषण का सामना कर रहा है तो क्या छत्तीसगढ़ में भी प्रदूषण का खतरा बन सकता है. 


सीएम ने पराली जलाने से किया मना
इस खतरे को भांपते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक बड़ी अपील की है. उन्होंने पंजाब में प्रदूषण का जिक्र करते हुए किसानों को पराली जलाने के लिए मना किया किया है. इसकी जगह खेत के पराली को मवेशियों के लिए दान करने की अपील की है. जांजगीर चांपा में अपने भेंट मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब में प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य की समस्या हो रही. पैरा जलाने से बहुत समस्या होती है. सीएम ने इस समस्या से बचने के लिए गौठान के लिए खेत में बचे पैरा को दान करने अपील की. उन्होंने कहा, पैरा से गांव के मवेशी को चारा मिलेगा, गौ माता की सेवा होगी. पैरा को जलाना नहीं है, गौठान में दान करना है.


कलेक्शन के लिए दिया जाता है पैसा
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में हजारों गौठान हैं जहां मवेशी रहते हैं. गोधन न्याय योजना के बाद गाय के गोबर की बिक्री होती है. इसके साथ ही गोमूत्र की बिक्री हो रही है. इसलिए मवेशियों का पालन-पोषण बढ़ गया है. अब इन मवेशियों को चारे की जरूरत है. इस लिहाजा से अगर खेत के पैरा को जलाने के जगह गौठान के गोधन को दान किया जाता है तो प्रदूषण की बड़ी समस्या दूर हो जाएगी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया कि पैरा संकलन व्यवस्था के लिए हर गौठान को 40 हजार रुपए दिए जाते हैं. 


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