Gandhi Jayanti 2022: छत्तीसगढ़ से जुड़ी है महात्मा गांधी के इस गुरु की कहानी, जानिए-क्यों दिया था गुरु का दर्जा
गांधीजी ने पं. सुदरलाल शर्मा की प्रशंसा करते हुए अपने से बड़ा और गुरु का दर्जा दिया. शर्मा के कहने पर 20 दिसंबर 1920 को महात्मा गांधी रायपुर रेलवे स्टेशन पर उतरे.
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Chhattisgarh News: आज दुनियाभर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती (Gandhi Jayanti 2022) मनाई जा रही है. इस अवसर पर आपके लिए इतिहास के पन्ने से फिर कुछ खास जानकारी लेकर आए हैं. आप सभी महात्मा गांधी के गुरु गोपाल कृष्ण गोखले को जानते ही होंगे लेकिन महात्मा गांधी के एक और गुरु हैं जिन्हे महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने खुद से बड़ा माना है. वे कौन थे जिससे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इतने प्रभावित थे कि उन्हें अपना गुरु मान लिया?
गांधी के गुरु की कहानी छत्तीसगढ़ से जुड़ी
दरअसल ये कहानी छत्तीसगढ़ राज्य से जुड़ी है. छत्तीसगढ़ उस समय आजादी के पहले सीपी एंड बरार का एक हिस्सा हुआ करता था. महात्मा गांधी को भी साउथ अफ्रीका से वापस लौटे 5 साल ही हुए थे. इधर छत्तीसगढ़ के धमतरी इलाके में किसानों का एक बड़ा आंदोलन चल रहा था. अंग्रेजों ने किसानों पर पानी चोरी के आरोप लगाकर ग्रामीणों पर 4,033 रुपये का सामूहिक जुर्माना लगा दिया. इसके विरोध में किसानों ने कंडेल सत्याग्रह शुरू कर दिया. इस सत्याग्रह में शामिल होने के लिए महात्मा गांधी पहली बार छत्तीसगढ़ आए लेकिन अंग्रेजों ने गांधी की लोकप्रियता देखते हुए रायपुर के डिप्टी कमिश्नर ने सत्याग्रह स्थल पर जाकर जुर्माना माफ कर दिया.
पं. सुंदरलाल शर्मा ने गांधी को बुलाया
इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए राजिम के पं. सुदरलाल शर्मा गांधीजी को आमंत्रण देने कलकत्ता गए. उन्हीं के कहने पर 20 दिसंबर 1920 को महात्मा गांधी पं. शर्मा के साथ रायपुर रेलवे स्टेशन पर उतरे. उनके साथ खिलाफत आंदोलन के नेता मौलाना शौकत अली भी थे. गांधीजी ने रायपुर में आज के गांधी चौक पर सभा की इसके बाद दूसरे दिन वे धमतरी पहुंचे. मकईबांध चौक पर उनका स्वागत हुआ और जानी हुसैन बाड़ा में जनसभा हुई. भारी भीड़ के कारण गुरुर के एक व्यापारी ने उन्हें अपने कंधे पर बिठाकर मंच तक पहुंचाया. बापू के पतले होने के कारण कंधे में उठाकर मंच तक पहुंचना व्यापारी के लिए मुश्किल नहीं था.
बापू को कलकत्ता से लाने वाले ही गुरु
महात्मा गांधी को दुनियाभर में लोग जानते हैं, मानते हैं और उन्हें लाखों लोग गुरु मानते हैं लेकिन मोहनदास करमचंद गांधी को अपने दूसरे छत्तीसगढ़ यात्रा में गुरु मिल गए. दरअसल 1933 में गांधी 22 नवम्बर से 28 नवंबर 1933 तक कुल 5 दिन रुके थे. महात्मा गांधी का ये दौरा इस बार हरिजन उद्धार अभियान था. 22 नवम्बर को वे दुर्ग जिले में आये थे. गांधीजी के इस दौरे की व्यवस्था पं. रविशंकर शुक्ल और राजेन्द्र सिंह के हाथों में थी. गांधीजी का यह कार्यक्रम हरिजनों के उत्थान के लिए आयोजित किया गया था.
गांधी जी ने सुंदर लाल शर्मा को बताया गुरु
23 नवंबर को गांधीजी कुम्हारी होकर रायपुर पहुंचे. यहां आमापारा चौक पर भीड़ ने उनका स्वागत किया. इसी दिन गांधीजी ने तत्कालीन विक्टोरिया गार्डन (वर्तमान मातीबाग) में स्वदेशी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया. 24 नवंबर को उन्होंने लारी स्कूल (वर्तमान सप्रे स्कूल) में जनसभा को संबोधित किया. इसके बाद पं. सुदरलाल शर्मा द्वारा संचालित सतनामी आश्रम का निरीक्षण किया और मौदहापारा में हरिजनों को संबोधित किया. इसी दिन पुरानी बस्ती के एक मंदिर को हरिजनों के लिए खोला गया. इस यात्रा में गांधीजी ने पं. सुदरलाल शर्मा की प्रशंसा करते हुए अपने से बड़ा और अपने गुरु का दर्जा दिया.
सुंदर लाल शर्मा को माना जाता है छत्तीसगढ़ का गांधी
गौरतलब है कि महत्मा गांधी ने समाज में समानता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. इसी तरह छत्तीसगढ़ के पंडित सुंदर लाल शर्मा ने महात्मा गांधी से पहले ही समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरोध में कई आंदोलन किया है. शर्मा ने अछूत कही जाने वाली जातियों को जनवरी 1924 में संगठित कर मंदिर प्रवेश करने के आंदोलन का सूत्रपात किया. पुजारियों और पुलिस के घेराव के बावजूद उन्होंने अछूतों को मंदिर में प्रवेश कराया और उस दौर में मंदिर का द्वार अछूत कही जाने वाली जातियों के लिए खोल दिया. इतिहासकार बताते हैं कि अछूत कही जाने वाली जातियों को मंदिर प्रवेश करने वाले शर्मा गांधीजी के अभियान शुरू करने के 8 साल पहले राजिम में संपन्न कर चुके थे. पं. सुंदरलाल शर्मा अछूत कही जाने वाली जातियों को गांव-गांव घूमकर उन्हें जनेऊ पहनाया करते थे. इसकी जानकारी लगने पर महत्मा गांधी सुंदर लाल शर्मा से बड़े प्रभावित हुए.
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