Raipur: सैकड़ों साल पुराने हटकेश्वर महादेव मंदिर के लिए बजरंग बली ने लिया था ये फैसला, जानें क्या हैं मान्यताएं?
रायपुर में सैकड़ों साल पुराने हटकेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना को लेकर कई प्राचीन मान्याताएं और पौराणिक कथाये जुड़ी हुई हैं जिन्हें जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे. यहां जानें पूरी डिटेल.
महादेव की आराधना उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक हर कस्बे में होती है. देशभर में अलग अलग तरीके से भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती है. कई मंदिरों में महादेव की आराधना और स्थापना के लिए कई मान्यताएं हैं. इसमें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सैकड़ों साल पुराना हटकेश्वर महादेव मंदिर है जहां की मान्यताएं जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे.
दरअसल राजधानी रायपुर से केवल 10 किलोमीटर दूर खारुन नदी के किनारे एक अलौकिक मंदिर है. जहां महादेव के भक्तों की रोजाना भीड़ लगती है. महाशिवरात्रि के अवसर मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस मंदिर की स्थापना और मान्यता को विशेष महत्व दिया जाता है. मंदिर के परिसर में शिवलिंग के पास राम, जानकी और लक्ष्मण जी की प्रतिमाएं हैं.
महादेव को बजरंगबली अपने कंधों पर लेकर आए थे
महादेव घाट में शिवलिंग स्थापना की कहानी पुरानी है. मंदिर के पुजारी इसे त्रेता युग से जोड़कर बताते हैं. जब राम, सीता और भाई लक्ष्मण वनवास में थे तब इस शिवलिंग की स्थापना लक्ष्मण जी ने की है. वहीं बजरंग बली अपने कंधे पर महादेव को खारुन नदी के किनारे लेकर आए थे. इसके चलते इस मंदिर की लोकप्रिय केवल राज्य में ही नहीं देशभर में है. देशभर से लोग बोलेनाथ के भक्त दर्शन करने आते हैं.
शिवलिंग स्थापना को लेकर कई मान्यता लोकप्रिय
मंदिर में शिवलिंग स्थापना को लेकर एक और मान्यता लोकप्रिय मानी जाती है. इसमें कहा जाता है कि खारुन नदी को द्वापर युग में द्वारकी नदी के नाम से जाना जाता था. बताया जाता है कि महाकौशल प्रदेश के हैहयवंशी राजा ब्रह्मदेव जब नदी किनारे स्थित घने जंगल में शिकार करने आए थे तब नदी में बहता पत्थर का शिवलिंग दिखा जिसकी उन्होंने स्थापना की है. इससे अलग और भी मान्यताए हैं जो लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में पूछे जाते हैं. इसमें बताया गया है कि 1400 ईसवी में कल्चुरी शासक भोरमदेव के पुत्र राजा रामचंद्र ने इसका निर्माण करवाया है.
500 साल से जल रही अखंड धूनी
खारुन नदी राजधानी रायपुर की जीवन रेखा है. शहर को पीने का पानी इसी नदी से मिलती है. इसलिए इस इलाके को महादेवघाट के रूप में प्रसिद्धि मिली है. नदी के घाट से सीढ़ियां मंदिर के प्रवेश द्वार तक बनाई गई है. महादेव के भक्त खारुन नदी के बाद मंदिर में प्रवेश करते हैं और चढ़ावे के लिए भक्त चावल लेकर जाते हैं, जहां कई अलग अलग मूर्तियां हैं जहां भक्त चावल के दाने चढ़ाते हैं. वहीं मंदिर में 500 साल से लगातार अखंड धूनी प्रजवल्लित हो रही है. महादेव के भक्त धूनी की भभूत को प्रतिदिन माथे पर लगाने के लिए घर लेकर जाते हैं.
प्रदेश का पहला लक्ष्मण झूला
धार्मिक मान्यता के साथ पर्यटक को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने महादेव घाट में नदी के दोनों छोर को जोड़ते हुए एक लक्ष्मण झूला बनाया है. ये प्रदेश का पहला लक्ष्मण झूला है जो नदी के ऊपर श्रद्धालुओं के लिए बनाया गया है. प्रदेशभर से लोग यहां पहुंचते हैं और सुबह से शाम लक्ष्मण झूले का आनंद लेते हैं.
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