Siyasi Scan Chhattisgarh: समय है छत्तीसगढ़ गठन के बाद पहली बार 2003 में विधानसभा चुनाव के ठीक 2 सप्ताह पहले का. दिल्ली के ताजमहल होटल में एक ऑस्ट्रेलिया की कंपनी का प्रतिनिधित्व कर रहे व्यक्ति ने नोटों के बंडल को देते हुए छत्तीसगढ़ के साथ कई अन्य जगहों में खनन अधिकार की मांग की थी. इसके लिए पेपर में लपटे नोटों के बंडल को छत्तीसगढ़ में बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार दिलीप सिंह जूदेव ने माथे पर लगाया. इसके बाद देशभर तहलका मच गया. इस स्टिंग ऑपरेशन ने बीजेपी में खलबली मचा दी और बीजेपी के बड़े नेता पर रिश्वतखोरी के आरोप पार्टी घिर गई.


भारतीय जनता पार्टी के लिए मुसीबत का दौर था. जुदेव के चहरे में लगे दाग मिटाने के लिए पार्टी दूसरी गुंजाइश तलाश रही थी. पार्टी में रमेश बैंस, बृजमोहन अग्रवाल और नंदकुमार साय जैसे दिग्गज नेता थे. लेकिन पार्टी ने एक डॉक्टर को यानी उस समय के तत्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डॉ रमन सिंह को दिया. इसके पीछे वजह ये बताई गई कि रमन सिंह पढ़े लिखे और जनता से जुड़े हुए नेता थे.


 डॉक्टर रमन सिंह का राजनीतिक सफर?


पिता विघ्नहरण सिंह ठाकुर पेशे से वकील थे और रमन सिंह डॉक्टर बनने के सपने देखते थे, इसके लिए उन्होंने पीएमटी की परीक्षा दी क्वालीफाई भी हुए. लेकिन उम्र आड़े आ गई तो रमन ने बीएएमएस की डिग्री लेकर कवर्धा में हर शनिवार को फ्री में क्लिनिक लगाना शुरू कर दिया. रमन सिंह के इस पहले की वजह से लोग उन्हें शनिचर वाले डॉक्टर के नाम से पुकारते थे. वहीं रमन सिंह राजनीति में जाने की मंशा बना रहे थे. 1983 में पहली बार रमन सिंह पार्षद बने. इसके बाद 1990 में पहली मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए कवर्धा से निर्वाचित हुए.


कैसे मिली पहली बार बीजेपी से टिकट?


उस दौर में रमन सिंह पढ़े लिखे युवा राजनेता थे. इसलिए मध्यप्रदेश के बड़े बीजेपी नेता लखी राम अग्रवाल ने रमन सिंह को तैयार किया. पार्टी में अग्रवाल ने रमन सिंह को अपनी बैकिंग दे रखी थी. इसके अलावा सुंदर लाल पटवा ने बस्तर से झाबुआ तक पदयात्रा की थी तब भी रमन सिंह सक्रिय रहे थे. वहीं उस समय मध्यप्रदेश के युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान ने भी युवाओं पर जोर देने के लिए पैरवी की थी.


'रमन सिंह ने चुनाव हारने के बाद खुद को समेट लिया था'


अगर मध्यप्रदेश बीजेपी के बड़े नेता लखी राम अग्रवाल की बात न मानी होती तो आज रमन सिंह उसी क्लिनिक शायद बैठे होते. दरअसल 1998 के चुनाव में रमन सिंह को करारी हार का सामना करना पड़ा. दिग्विजय सिंह ने 1998 में छत्तीसगढ़ के हिस्से में 9 नए जिले का गठन किया इसमें रमन सिंह के विधानसभा सीट कवर्धा को जिला बनाया और फिर राज परिवार के योगेश्वर राज सिंह को कवर्धा से कांग्रेस ने चुनाव लड़वाया. इससे रमन सिंह हार गए. हार के बाद रमन सिंह ने खुद को समेट लिया और अपने क्लिनिक पर ध्यान दिया.


जब पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए रमन सिंह


इसी बीच एक दिन अचानक उनके पास फोन आया और कहा गया कि राजनांदगांव से लोकसभा संसद के लिए चुनाव लडना है. लेकिन रमन सिंह हैरान हो गए जिस लोकसभा सीट चुनाव लड़ने के लिए कहा जा रहा है वहां कभी चुनाव नहीं हारने वाले दो बार के मुख्यमंत्री रहे मोतीलाल वोरा के सामने खड़ा किया गया. राजनीतिक पंडितों को लगा कि रमन सिंह की बलि दी जा रही है.


लेकिन रमन सिंह मार्गदर्शक लखी राम अग्रवाल ने रमन सिंह को चुनाव लड़ने को कहा इसके बाद रमन सिंह ने खूब पसीना बहाया और चुनाव का रिजल्ट रमन सिंह के पक्ष में आया और 28 हजार वोट के अंतर से मोतीलाल वोरा को रमन सिंह ने हरा दिया. यही वजह थी की रमन सिंह को अटल बिहारी वाजपेई सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया.


2003 के चुनाव में कैसे मिली जीत? 


2000 में जब छत्तीसगढ़ बना तो बीजेपी से मुख्यमंत्री पद का दावा दिलीप सिंह जूदेव का था. जुदेव ने आदिवासी इलाकों में घूम घूम कर वनवासी आश्रम के लिए काम किया था. जुदेव ने कथित धर्म परिवर्तन को रोका था. लेकिन स्टिंग ऑपरेशन ने जुदेव की गिल्ली उड़ा दी. इससे बीजेपी के पास की मुसीबत बढ़ गई. लेकिन उस समय के राजनीतिक गतिविधियों ने बीजेपी को फायदा पहुंचाया. कांग्रेस पार्टी भारी गुटबाजी की शिकार थी.


पार्टी के बड़े दिग्गज नेता विद्या चरण शुक्ल ने कांग्रेस छोड़कर एनसीपी ज्वाइन किया और सभी 90 सीटों पर चुनाव भी लड़े और रिजल्ट में 7 फीसदी वोट ले गए. इससे कांग्रेस पार्टी को नुकसान हुआ और बीजेपी 90 में से 50 सीट जीत गई और कांग्रेस 37 पर अटक गई.


2003 में मुख्यमंत्री पद मिला


तब बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रमन सिंह का नाम सामने किया. हालांकि छत्तीसगढ़ में रमन के साथ बृजमोहन अग्रवाल,नंदकुमार साय और रमेश बैंस जैसे दिग्गज नेता भी थे. लेकिन रमन सिंह को साफ छवि और उनके मेहनत का इनाम मिला और छत्तीसगढ़ के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने. इसके बाद रमन सिंह 2008 और 2013 में भी रमन सिंह मुख्यमंत्री बने. राज्य में 15 साल मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया.


रमन सिंह पर लगे अबतक के तीन बड़े आरोप


इन 15 साल में रमन सिंह राजनीति के अच्छे खिलाड़ी बन गए. रमन सिंह को विकास के चेहरे के रूप में देखा जा रहा था. 2012 में इनके पीडीएस स्कीम ने गरीब आदिवासियों के लिए बड़ी राहत दी और राज्य में चाउर वाले बाबा यानी चावल वाले बाबा के नाम से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली हालांकि इसी पीडीएस घोटाले में रमन सिंह का नाम सामने आया. कांग्रेस ने नान घोटाले में एक डायरी में रमन सिंह और उनके रिश्तेदारों के नाम पर गंभीर आरोप लगाये. इसके अलावा बेटे अभिषेक सिंह पर भी बेनामी संपत्ति के आरोप भी कांग्रेस ने लगाया और पनामा पेपर में अभिषेक सिंह का नाम होने का दावा किया.


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