Chhattisgarh News: केरल की तर्ज पर छत्तीसगढ़ के इस जिले में भी होगी रबर की खेती, इन दो संस्थानों के बीच हुआ करार
Chhattisgarh: रबर की खेती को अगर बस्तर में सफलता मिलती है तो यहां के किसानों को भी केरल, तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारत के राज्य में रबर की खेती करने वाले किसानों की तरह अच्छा मुनाफा होगा.
Bastar News: केरल और तमिलनाडु के तर्ज पर छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी पहली बार रबर की खेती की जाएगी. बस्तर क्षेत्र की मिट्टी, आबोहवा और भू पारिस्थितिकी आदि रबर की खेती के लिए उपयुक्त पाए जाने पर प्रायोगिक तौर पर एक हेक्टेयर क्षेत्र में रबर के पौधों का रोपण किया जा रहा है. एक हेक्टेयर में की जा रही रबर की खेती के लिए अगले 7 सालों की अवधि में पौधा, खाद, उर्वरक, दवाएं और मजदूरी पर होने वाला खर्च इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय रायपुर को रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायाम द्वारा मुहैया कराया जाएगा.
बकायदा इसके लिए कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायाम के बीच समझौता भी किया गया है और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी और रबर रिसर्च इंस्टीट्यूट कोट्टायाम केरल की संचालक अनुसंधान डॉ. एम.डी जेस्सी के बीच हस्ताक्षर भी हुआ है.
बताया जा रहा है कि रबर की खेती को अगर बस्तर में सफलता मिलती है तो यहां के किसानों को भी भारत में केरल, तमिलनाडु और दक्षिणी राज्य में रबर की खेती करने वाले किसानों की तरह अच्छा मुनाफा होगा और रबर की खेती बस्तर के किसानों को भी संपन्न बनाने में अहम भूमिका निभाएगी.
बस्तर के किसानों को होगा फायदा
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक विवेक कुमार त्रिपाठी ने बताया कि लंबे समय से बस्तर में रबर की खेती के लिए प्लान तैयार किया जा रहा था. इसी कड़ी में रबर रिसर्च इंस्टीट्यूट कोट्टायाम केरल से संपर्क किया गया था, जिसके बाद उनके साथ बकायदा बस्तर का दौरा भी किया गया और बस्तर की आबोहवा ,मिट्टी और मौसम रबर की खेती के लिए काफी अनुकूल पाया गया, जिसे देखते हुए बस्तर के कृषि अनुसंधान केंद्र में एक हेक्टेयर में रबर की खेती करने का फैसला लिया गया. संचालक ने बताया कि रबर रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा यहां रबर के पौधे का रोपण किया जाएगा.
साथ ही इसकी देखरेख से लेकर इस प्लांटेशन के लिए लगने वाली सभी जरूरी संसाधन जिसमे खाद, उर्वरक, दवाएं और मजदूरी पर होने वाला खर्च रबर रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा ही मुहैया कराई जाएगी. रबर के उत्पादन के लिए 7 सालों का समय लगेगा.
जिसकी पूरी देखभाल रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों द्वारा की जाएगी. संचालक ने बताया कि अगर इसमें सफलता मिलती है तो बस्तर में ज्यादा से ज्यादा रबड़ के पेड़ों की खेती की जा सकेगी, जिससे बस्तर के किसानों को अच्छा खासा मुनाफा हो सके, देश में रबर की काफी डिमांड है और ऐसे में अगर बस्तर में इसकी खेती सक्सेस होती है तो निश्चित तौर पर यहां के सैकड़ों किसानों को इसकी खेती से अच्छा लाभ होगा, फिलहाल रबर रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों और बस्तर के प्रोफ़ेसरो के देखरेख में एक हेक्टेयर में रबर के पौधारोपण का काम जल्द ही शुरू किया जाएगा.
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