Shardiya Navratri 2022: 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर (Bastar) दशहरा में रविवार को एक और महत्वपूर्ण रस्म अदा की गई. इस रस्म को बेल जात्रा या बेल पूजा कहा जाता है. इस रस्म में बेल वृक्ष और उसमें एक साथ लगने वाले 2 बेल फलों की पूजा की जाती है. ऐसे इकलौते बेल रस्म को बस्तर के लोग अनोखे और दुर्लभ तरीके से मनाते हैं. जगदलपुर शहर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर सरगीपाल गांव में सालों पुराना बेल वृक्ष है, जिसमें एक के अलावा दो फल भी एक साथ लगते हैं. इसी बेल वृक्ष और जोड़ी बेल फल की पूजा अर्चना परंपरा अनुसार बस्तर दशहरा पर्व में बस्तर के राजकुमार के द्वारा की जाती है, जिसे बेल पूजा कहते हैं.


शादी समारोह जैसा होता है गांव का माहौल


सर्गीपाल गांव के एक खेत में एक ही जगह दो बेल के पेड़ हैं, लेकिन इन दोनों पेड़ों में केवल एक ही फल लगता है, ऐसा यहां के ग्रामीण बताते हैं. आमतौर पर बस्तर दशहरा पर्व के प्रमुख विधानों की जानकारी आम लोगों तक पहुंचती रही है, लेकिन बेल पूजा विधान की वास्तविकता के बारे में पता लगाने पर एक रोचक कहानी सामने आई है. बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि यह रस्म विवाह उत्सव से संबंधित है. उन्होंने बताया कि बस्तर के चालुक्य वंश के राजा सर्गीपाल गांव के पास के जंगलों में शिकार करने गए थे.


वहां इस बेल वृक्ष के नीचे खड़ी दो सुंदर कन्याओं को देख राजा ने उनसे विवाह की इच्छा प्रकट की, जिस पर कन्याओं ने उनसे बारात लेकर आने को कहा. अगले दिन जब राजा बारात लेकर वहां पहुंचे तो दोनों कन्याओं ने उन्हें बताया कि वे उनके इष्ट देवी माणीकेश्वरी और दंतेश्वरी हैं. उन्होंने हंसी ठिठोली में राजा को बारात लाने को कह दिया था. इस वाक्ये से शर्मिंदा राजा ने दंडवत होकर अज्ञानता वश किए गए अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगते हुए उन्हें दशहरा पर्व में शामिल होने का न्योता दिया, और तब से यह विधान संपन्न की जा रही है. 


सैकड़ों साल पुरानी है परंपरा


सैकड़ों साल पुरानी इस परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है. राजकुमार ने बताया कि 2 जोड़ी बेल फल को दोनों देवियों का प्रतीक माना जाता है. हर साल बेल न्योता में राजा खुद इस गांव में आकर जोड़ी बेल फल को सम्मान पूर्वक पुजारी से ग्रहण करते हैं, और उसे जगदलपुर स्थित मां दंतेश्वरी के मंदिर में पूजा अर्चना के साथ रखा जाता है. बेल पूजा विधान के दौरान सर्गीपाल गांव में उत्सव जैसा माहौल रहता है. राजा का स्वागत और बेटी की विदाई दोनों का अभूतपूर्व नजारा यहां देखने को मिलता है. रविवार को इस रस्म को धूमधाम से मनाया गया. इस दौरान बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों के साथ दशहरा पर्व के समिति के सदस्य और राज परिवार भी मौजूद रहे.


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