Siyasi Scan: इस दिग्गज नेता ने 53 साल से नमक को क्यों नहीं लगाया हाथ? साल 2003 में BJP से थे सीएम पद के दावेदार, जानिए इनकी पूरी कहानी
Chhattisgarh Election: साल 1970 में मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़ वाले हिस्से के एक बड़े दबंग नेता ने नमक न खाने का प्रण ले लिया और आज 53 साल बाद भी उन्होंने नमक का स्वाद नहीं लिया.
Chhattisgarh Election 2023: एक समय में नमक किराना दुकानों में मिलता नहीं था. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में लोग नमक के लिए जंगल से बेर इकट्ठा करने जाते थे. इसी सूखे बेर के बदले शहर से आए व्यापारी मोटे दाने वाला नमक देकर जाते थे. ये 1970 के दशक में घर - घर की कहानी थी. तो आप उस दौर में नमक की अहमियत समझ चुके होंगे. लेकिन इसी दौर में मध्यप्रदेश राज्य के छत्तीसगढ़ वाले हिस्से के एक बड़े दबंग नेता ने नमक न खाने का प्रण ले लिया और आज 53 साल बाद भी नेता की प्रतिज्ञा पूरी नहीं हुई तो उन्होंने आज तक नमक का स्वाद नहीं लिया.
बीजेपी नेता का नमक न खाने का प्रण
दरअसल खाने के शौकीन इस बाद को समझ सकते हैं कि बिना नमक खाने के स्वाद की कल्पना नहीं की जा सकती है. आखिर ऐसा क्या किस्सा हुआ कि बीजेपी नेता नंदकुमार साय ने नमक खाना छोड़ दिया. ये सवाल अकसर चर्चाओं में बना रहता है. एक बार फिर चर्चा में इसलिए बना हुआ है क्योंकि उन्होंने एक बार फिर एक कसम खाई है. इस बार उन्होंने इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कसम खाई है. उन्होंने कहा है जब तक छत्तीसगढ़ से कांग्रेस की सरकार को हटाएंगे नहीं तब तक बाल नहीं कटवाएंगे.
नंदकुमार साय ने क्यों नमक छोड़ने का लिया प्रण?
साल 1970 के दशक में जब छात्रसंघ से राजनीति में उतरे नंदकुमार साय ने गांव-गांव में चौपाल लगाया करते थे. जशपुर के इलाके में पढ़े लिखे नेता के नाम पर साय मशहूर थे. इसलिए वे आदिवासियों को नशा मुक्ति की राह दिखाने के लिए शराब छोड़ो अभियान चलाते थे. इसी बीच एक गांव में ग्रामीण नंदकुमार से बोला कि शराब आदिवासियों के लिए उतनी ही आवश्यक है, जितना कि खाने में नमक. क्या तुम नमक त्याग सकते हो ? इसके तुरंत बाद नंदकुमार साय ने नमक छोड़ने का प्रण कर लिया और आज तक नमक को हाथ नहीं लगाया.
साल 1977 में पहली विधानसभा चुनाव में जीत मिली
नमक त्यागने के बाद नंदकुमार साय को छत्तीसगढ़ के हिस्से मध्य प्रदेश राज्य में प्रसिद्धि मिली. लोग उनको जानने लगे इसके बाद वो अपने बेबाक अंदाज में आदिवासियों की लड़ाई लड़ने लगे. साल 1977 में पहली बार बीजेपी की तरफ से नंदकुमार साय को मध्य प्रदेश विधानसभा जाने का मौका मिला. फिर ये सिलसिला चलता गया. अपने राजनीतिक सफर में वो अविभाजित मध्यप्रदेश में 3 बार एमएलए बन गए. 3 बार लोकसभा सांसद और 2 बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. इसके अलावा छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पहले विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता भी रहे हैं.
नायब तहसीलदार के पद के लिए साय का हुआ था चयन
वर्तमान जशपुर जिले के ग्राम भगोरा में एक किसान परिवार में 1 जनवरी 1946 में नंदकुमार साय का जन्म हुआ है. उनकी बचपन से हिंदी साहित्य,भजन और लोक साहित्य में रुचि रही है. लेकिन कॉलेज के दिनों में छात्र राजनीति में सक्रिय हुए. कॉलेज में नंदकुमार साय छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे हैं. इसके बाद उन्होंने सरकारी नौकरी की तैयारी की और 1973 में नायब तहसीलदार के पद पर चयनित भी हुए लेकिन नौकरी पर नहीं गए. इसकी जगह उन्होंने समाज सेवा के जरिए राजनीति में जाना चुना. 1977 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीते, 1985 दूसरी बार और तीसरी बार 1998 में विधानसभा चुनाव जीते.
मोदी कार्यकाल में बने जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष
इसके अलावा 1989 में लोकसभा सांसद बने और 1996 में दूसरी बार और 2004 में राज्य गठन के बाद तीसरी बार लोकसभा सांसद बने. इसके बाद नंदकुमार साय का राजनीतिक सफर आगे बढ़ा और 2009 में राज्यसभा के सांसद के लिए चुने गए. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में नंदकुमार साय को 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया.
इसके साथ ही बीजेपी के संगठन में भी नंदकुमार साय प्रमुख जिम्मेदारियों में जुड़ते गए. 1996 में मध्यप्रदेश अनुसूचित जनजाति के प्रदेश अध्यक्ष बने इसके बाद पार्टी ने 1997 से 2000 के बीच मध्यप्रदेश बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी और 2000 में जब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश से अलग हुआ तो नंदकुमार साय राज्य के विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बने.
2003 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दावेदार
इसके बाद भी 2003 में राज्य में पहले विधानसभा चुनाव में नंदकुमार साय बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों में से एक थे. उस समय कांग्रेस के मुख्यमंत्री अजीत जोगी और नंदकुमार साय के बीच तीखी नोंकझोंक होती थी. छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र वर्मा ने बताया कि बीजेपी के दबंग नेता माने जाते हैं नंदकुमार साय, क्योंकि राज्य गठन के बाद दिलीप सिंह जूदेव, रमेश बैंस और नंदकुमार साय ही बिरले नेता हैं जो पार्टी के ताकतवर नेता थे. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहते हुए नंदकुमार साय में अजीत जोगी की सरकार के खिलाफ विधानसभा घेराव किया था. उस दौरान उनका पैर फ्रेक्चर हो गया था.
क्या सच में हुई फिरौती लेकर साय की हत्या की साजिश!
जानकारों ने नंदकुमार साय के राजनीतिक जीवन का किस्सा सुनाते हुए बताया कि 2017 में एक बार फिर नंदकुमार साय देशभर की मीडिया में सुर्खियों में छाए रहे, जब साय को जान से मारने का षड्यंत्र रचा जा रहा था. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय को जान से मारने के लिए फिरौती ली गई है. इसकी ज्यादा जानकारी मीडिया में सामने नहीं आई लेकिन आयोग के सचिव ने दिल्ली पुलिस से इस मामले शिकायत की और साय ने हत्या की साजिश को सही बताया लेकिन आजतक इस मामले में खुलासा नहीं हो पाया है.
इस बार के विधानसभा चुनाव में अहम रोल में होंगे साय!
एक बार फिर छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं तो बीजेपी के आदिवासी नेता नंदकुमार साय सुर्खियों में है. पिछले साल रायपुर में साय के बंगले में राज्य के आदिवासी नेताओं के बीच एक बैठक हुई है. इसमें छत्तीसगढ़ में आदिवासी लीडरशिप को बढ़ाने के बारे में चर्चा हुई. कुछ जानकर ये भी बताते है कि इस बार भी विधानसभा चुनाव में नंदकुमार साय एक अहम रोल में दिखाई दे सकते हैं. क्योंकि नंदकुमार साय का सरगुजा संभाग में बड़ा दबदबा है. इस संभाग के 14 विधानसभा सीट वर्तमान में कांग्रेस के कब्जे में है. ऐसे में नंदकुमार साय को पार्टी बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है.
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