छत्तीसगढ़ के बस्तरवासी बीते 4 दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहे हैं इन चार दशकों में कई जवानों की शहादत हुई है तो कई आम नागरिक भी मारे गए हैं. कई गांव उजड़ गए तो कई लोग बेघर हो गए है. ऐसे में एक बार फिर नक्सलवाद के खात्मे के लिए देश के अलग-अलग कोने से पहुंचे 15 सामाजिक कार्यकर्ता बस्तर में शांति वार्ता यात्रा कर रहे हैं.


15 अप्रैल से राजनन्दगांव के मदनवाड़ा से शुरू हुई यह यात्रा अगले 2 महीने में छत्तीसगढ़ के 12 नक्सल प्रभावित जिलों का दौरा करेगी और यहां गांव-गांव में जाकर आम नागरिकों, नक्सल हिंसा से पीड़ित परिवार और जिन परिवारों के सदस्य मुख्यधारा से भटक कर नक्सली संगठन में शामिल हो गए हैं.


उनके परिजनों से भी मुलाकात कर छत्तीसगढ़ समेत बस्तर में शांति वार्ता के लिए लोग क्या चाहते हैं. इस पर एक रिपोर्ट तैयार करेगी, इन सदस्यों का मानना है कि सरकार की तरफ से अब तक शांति के लिए नक्सलियों से किसी तरह से कोई वार्ता नहीं हुई है. ऐसे में छत्तीसगढ़ और बस्तर के लोग क्या चाहते हैं. नक्सलवाद को लेकर क्या सोचते हैं इस पर उनसे चर्चा करने के लिए यात्रा निकाली गई है और यह यात्रा 2 महीनों तक चलेगी.


15 सदस्यों की टीम 2 महीने तक करेगी यात्रा


शांति वार्ता यात्रा के प्रमुख और सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी ने बताया कि वे पिछले कई सालों से बस्तर में शांति का माहौल तैयार करने के लिए अपने स्तर पर काम कर रहे हैं. इसके लिए इससे पहले भी उन्होंने शांति वार्ता के लिए साईकिल यात्रा निकाली जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोग जुड़े और यह यात्रा कुछ हद तक सफल भी हुई, ऐसे में एक बार फिर शांति वार्ता यात्रा निकाली जा रही है और इस यात्रा का नाम चैकले मांदी रखा गया है उन्होंने बताया कि चैक ले मांदी बस्तर के गोंडी बोली का शब्द है जिसका अर्थ सुख शांति के लिए बैठक है.


उन्होंने कहा कि उनके साथ 15 सदस्य टीम पूरे 8 सप्ताह तक सभी 12  क्सल प्रभावित  जिले के इलाको में  जंगल और गांव में रहकर यहां के लोगों से शांति वार्ता के लिए उनकी राय लेंगे और उनसे जानेंगे कि क्या बस्तर में बम धमाकों की आवाज बंद होनी चाहिए या फिर जिस तरह से बस्तर में नक्सल गतिविधि जारी है वैसे ही रहने देना चाहिए. इसके अलावा अपने गांव के विकास और पूरी तरह से शांति बहाल के बारे में भी गांव वाले से पूछेंगे.


शुभ्रांशु चौधरी ने बताया कि नक्सली बस्तर में सिर्फ छिपने आए थे लेकिन उन्होंने यहां अपनी जड़े इस कदर मजबूत कर दी है कि पिछले 4 दशकों से बस्तर नक्सलवाद से पूरी तरह से जकड़ा हुआ है,और इन चार दशकों में कई बड़े नक्सली  हमले हुए हैं जिसमें कई जवानों की शहादत होने के साथ ही आम नागरिक भी मारे गए हैं.


शांति वार्ता यात्रा का उद्देश्य बस्तर में शांति लाना है


उन्होंने कहा कि दशकों से चल रही इस जंग में पुलिस और नक्सली दोनों तरफ के लोगों को नुकसान हो रहा है, जो नक्सली मारे जाते हैं वे भी बस्तर के ही आदिवासी हैं और जो जवान शहीद होते हैं वह भी इस देश के ही निवासी है, इसलिए यह लड़ाई बंद होनी चाहिए.


 उन्होंने कहा कि उनकी टीम शांति वार्ता के लिए प्रयास कर रही है और इन 8 सप्ताह में 12 जिलों के पूरे गांव  घूमकर एक रिपोर्ट तैयार करेगी और यह शांति वार्ता का पहला चरण होगा, अगर सरकार को इस रिपोर्ट की जरूरत होगी तो इसे हम सरकार को भी देंगे. उन्होंने कहा कि शांति वार्ता यात्रा का उद्देश्य बस्तर में शांति स्थापित करना है और आदिवासियों के उनके जीवन का उत्थान होना है और खून खराबा बंद होना  है.


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