Devbaloda Shiv Mandir: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर बसे घनी आबादी वाले देवबलोदा गांव में एक प्राचीन शिव मंदिर है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां शिवलिंग स्वयं ही भूगर्भ से उत्पन्न हुआ है. बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कलचुरी युग में 12वीं-13वीं शताब्दी में हुआ है और मंदिर का निर्माण एक ही व्यक्ति ने छमासी रात में की थी. यह पूरा मंदिर एक ही पत्थर से बना हुआ है और इसका गुम्बद आधा है.

 

लोगों की मान्यता के अनुसार बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण छमासी की रात में एक व्यक्ति द्वारा किया गया था. इसके पीछे की कहानी यह है कि वह व्यक्ति हर रात मंदिर का निर्माण करने से पहले पास के कुंड में नहाता था. उसके बाद नग्न अवस्था में ही इस मंदिर के निर्माण में जुट जाता था. उस कारीगर व्यक्ति की पत्नी भी उसके काम में सहयोग करती थी. जब उसका पति मंदिर निर्माण में काम करता था तो वह रोज उसके लिए खाना बना कर लाती थी लेकिन एक दिन जब वहां मंदिर का निर्माण कर रहा था तब उसकी पत्नी की जगह उसकी बहन खाना लेकर आ रही थी. जब उस व्यक्ति ने देखा कि उसकी पत्नी की जगह उसकी बहन खाना लेकर आ रही है और वह नग्न अवस्था में था तो लज्जा की वजह से मंदिर प्रांगण में बने कुंड में छलांग लगा दी. उसके बाद से आज तक वो व्यक्ति कहां गया पता नहीं चला पाया. बताया जाता है कि इसी वजह से मंदिर का गुम्बद पूरा नहीं हो पाया था. इसलिए यह प्राचीन मंदिरों में एकलौता ऐसा मंदिर है, जिसकी गुम्बद आधी बनी हुई है.

 



 

मंदिर के चारों तरफ अद्भुत की गई है कारीगिरी

 

इस मंदिर के चारों तरफ अद्भुत कारीगिरी की गई है. मंदिर के चारों तरफ देवी देवताओं के प्रतिबिंब बनाए गए हैं, जिसे देख कर ऐसा लगता है कि 12वीं-13वीं शताब्दी के बीच लोग कैसे रहते थे. भगवान भोलेनाथ त्रिशूल लेकर नाचते हुए, दो बैलों को लड़ते हुए, नृत्य करते हुए न जाने कई ऐसी कलाकृतियां की गई है. इसे देखकर लगता है कि उस समय जब लोग यहां रहते थे यह सब चीज यहां होता होगा.

 



 

कभी नहीं सूखता मंदिर परिसर में बने कुंड का पानी

 

मंदिर प्रांगण के अंदर एक कुंड बना हुआ है. बताया जाता है कि इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखता और पानी कहां से आता है इसका स्रोत भी किसी को नहीं पता. ऐसा लोगों की मान्यता है कि कुंड के अंदर एक सुरंग है जोकि छत्तीसगढ़ के आरंग जिले में कहीं पर निकलता है. हालांकि यह सिर्फ मान्यता है इसका अब तक वैज्ञानिक या क्या पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिले हैं. कुंड के अंदर कई सालों से बहुत बड़ी-बड़ी मछलियां, कछुआ देखे जा सकते हैं. बताया जाता है कि कुंड के अंदर एक ऐसी मछली है जो सोने की नथनी पहनी हुई है और कई सालों में कभी-कभार ही दिखाई पड़ती है.

 



 

मंदिर परिसर में है नाग नागिन का जोड़ा

 

बताया जाता है कि इस मंदिर प्रांगण में एक नाग-नागिन का जोड़ा भी है जो कई सालों में दिखाई पड़ता है. कई बार तो लोग इन्हें भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग में लिपटे हुए भी देखा गया है. लोगों का मानना है कि आज भी है नाग-नागिन का जोड़ा इस मंदिर में विचरण करते हैं. हालांकि अब तक यह नाग-नागिन के जोड़े से कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है.

 



 

महाशिवरात्रि में यहाँ लगता है विशाल मेला

 

हर साल महाशिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेला भी लगता है. इस मेले को देवबलोदा का मेला भी कहा जाता है. दरअसल, उस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और रात से ही भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग की पूजा करने के लिए कतार में खड़े होते हैं. यह मेला 2 दिनों तक चलता है. पूरे गांव में मेला लगने से गांव की रौनक बनी रहती है.

 



 

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