Israel's farming technique in Surajpur: परंपरागत खेती से किसानों को अपने घर का गुजारा करना भी मुश्किल होता था. जिस कारण किसान धीरे-धीरे ही सही अब आधुनिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं. जिससे उनको कई गुना ज्यादा मुनाफा हो रहा है. ऐसे में छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के किसान वैज्ञानिक विधी से तैयार किए पौधों से सब्जी उगाकर मालामाल हो रहे हैं.


किसान इस तकनीक से कमा रहे लाखों रूपये


इन सब्जी में बैगन की खेती शामिल है. जिसके पौधे को जंगली बैगन के जड़ में तैयार किया गया है. छत्तीसगढ़ के कई इलाकों के साथ सूरजपुर के जिले के सिलफिली और आस पास के गांव के किसानों ने इस तकनीक का उपयोग किया है. किसान वैज्ञानिक तकनीक के तहत बैगन की खेती करके लाखों रूपए कमा रहें हैं. दरअसल इस वैज्ञानिक तकनीक के माध्यम से तैयार पौधे की जड़ और तना जंगली बैगन का होता है. जिसके ऊपर हाईब्रीड बैगन के पौधे को ग्राफटिंग (कलम लगाना) के माध्यम से तैयार किया जाता है. फिर इन पौधों को खेत में प्लांट (रोपा) किया जाता है.


किसानों ने इजरायल की तकनीक को अपनाया


इलाके के युवा किसान और सब्जी उत्पादन के जानकार दितेश राय के मुताबिक सब्जियों में इस तकनीक की शुरूआत सबसे पहले इजरायल देश ने की थी. जिसके बाद भारत ने इसे 2016-17 में अपनाया. इस तकनीक के सहारे सब्जी की फसल लगाने वाले किसान पंजाब और छत्तीसगढ़ के माने जाते हैं. दरअसल छत्तीसगढ़ के किसानों ने इस तकनीक को 2016 में ही अपना लिया था. लेकिन छत्तीसगढ़ में ग्राफटेड सब्जी के पौधे तैयार करने का सफल परीक्षण 2017 में हुआ. जिसको प्रदेश की एक प्रायवेट सीड कंपनी ने किया. आज देश के कोने-कोने में इस तकनीक से तैयार बैगन, टमाटर और मिर्च के पौधे जाते हैं. जिसको अपने खेतों में लगाकर वहां के किसान भी अच्छी खासी आमदनी कर रहे हैं. गौर करने वाली ये है कि देश में पेड़ों में ग्राफटिंग का काफी समय पहले से इस्तेमाल हो रहा है लेकिन सब्जी के पौधे में ग्राफटिंग की शुरूआत इजरायल की तकनीक पर हुआ है.


बैगन के इस ग्राफटेड पौधे इस लिए ज्यादा पैदावार देता हैं क्योंकि जंगली पौधे काफी दिन तक जिंदा रहते हैं. ऐसे में अगर ज्यादा दिन तक जिंदा रहने वाले पौधे के ऊपर हाईब्रीड पौधे को ग्राफ्ट कर दिया जाए तो लंबी आयु पाकर ग्राफटेड हाईब्रीड पौधा ज्यादा पैदावार देकर किसान को खुशहाल कर देता है.  


बैगन का एक पौधा 80-120 किलो करता है उत्पादन


सिलफिली से लगे गांव गणेशपुर के किसान संजय दास इस तकनीक के इतने मुरीद हो गए हैं कि जबसे इस तकनीक के पौधे छत्तीसगढ़ में तैयार होने लगे हैं तबसे वो लगातार बैगन की खेती कर रहे हैं. वो प्रति वर्ष लाखों रूपये कमा रहे हैं. संजय के अनुसार अगर कोई किसान ऐसी खेती करना चाहता है तो वो एक एकड़ में ग्राफटेड बैगन के लगभग 2500 पौधे लगा सकता है. इस खेती में लगने वाले खाद, दवाईयां, ड्रिप, मलचिन और देखरेख में करीब 70 हजार से 1 लाख रूपए प्रति एकड खर्च होता है. ग्राफटेड बैगन की पहली पैदावार 40 दिन में तैयार हो जाती है. मतलब 40 दिन में बैगन की तोड़ाई शुरु हो जाती है. इस ग्राफटेड बैगन के पौधे की औसतन उम्र 1 वर्ष है. लेकिन अच्छी देखरेख में ये पौधा डेढ़ से दो वर्ष तक भी प्रोडक्शन दे सकता है.


इस पौधे की हाईट एक सामान्य इंसान से 2 फिट ज्यादा लगभग आठ फिट तक चली जाती है. छत्तीसगढ़ के सिलफिली इलाके के किसान संजय और अन्य किसानों के अनुसार ग्राफटेड बैगन का सिंगल और स्वस्थ पौधे से साल में औसतन 80 से 120 किलो तक का उत्पादन लिया जा सकता है. ऐसे में अगर औसतन 20 रूपए प्रति किलो के हिसाब से एक पौधा साल में 2 हजार रूपए कमाई देता है तो एकड़ में लगे 2500 पौधे से होने वाली आमदनी का आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं. लेकिन जरूरत समय में खाद, पानी और विशेष देखरेख की होती है.


गांव में ही मिल जाता है बाजार


ग्राफटेड पौधे से तैयार बैगन को सिलफिली इलााके के किसानों को कहीं बेचने नहीं जाना पड़ता है. क्योकि किसानों के उत्पाद को देखते हुए सिलफिली सरगुजा संभाग की सबसे बड़ी सब्जी की थोक मंडी बन चुकी है. ऐसे में यहां उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार और उड़ीसा के थोक व्यापारी मंडी में आकर ही इस बैगन की फसल को अपने-अपने प्रदेश में ले जाते हैं. जिसके इलाके के किसानों को अपने उत्पाद को बेचने में कठिनाई भी नहीं होती है और अच्छी खासी आमदनी पाकर किसान खुशहला हो जाते हैं.


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